सुसंस्कृति परिहार
इन दिनों जब प्रधानमंत्री अमेरिका प्रवास पर हैं देश में एक संत की आत्म हत्या,असम की दुर्दांत गोलीबारी में मदमस्त फोटो ग्राफर का लाश पर कूदना, नाबालिग बच्चे का मारा जाना, किसान मोर्चे की 27 को भारत बंद की तैयारी,कोरोना की तीसरी लहर,21करोड़ की हैरोइन पकड़ी जाना ।इन सब घटनाओं से भारत की जो छवि दुनिया में जा रही है ।इसी वक्त अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने प्रधानमंत्री मोदी से जो कुछ सार्वजनिक तौर पर अमेरिकी कैमरे के सामने कहा, उसका हिन्दी में अनुवाद पढ़िए और अपने देश की फ़ज़ीहत का अनुमान लगाइए।
“क्योंकि दुनिया भर में लोकतंत्र इस समय खतरे में है, इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम अपने अपने देशों में, और दुनिया भर में लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संस्थाओं का बचाव करें। यह हमारा फ़र्ज़ है, कि हम अपने घर में लोकतंत्र को मज़बूत करें। अपने देशों के लोगों के हित में लोकतंत्र की रक्षा करें।”
ये भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश की इतनी बड़ी तौहीन है कि आज सारा देश अपने को शर्मिंदा महसूस कर रहा है।इसका मतलब यह है कि देश के अंदर जिस तरह लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को अव्यवस्थित किया जा रहा है उससे अमेरिका भी चिंतित है और भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति कमला जी भी बहुत दुखी हैं।अभी तक तो देश के बुद्धिजीवीलेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता इस बात को सामने लाते रहे हैं जिन्हें राष्ट्र द्रोही माना जाता रहा है। अब इस पर मोदी के मित्र राष्ट्र अमेरिका ने भी मुहर लगा दी है तो क्या उससे भी इंकार कर देंगे या अपने रिश्ते तोड़ देंगे।
कमला हैरिस वे नेत्री हैं जिन्होंने सीमा पर हैती के शरणार्थियों के साथ अमेरिकी पेट्रोलिंग टीम के द्वारा किये जा रहे बर्बर सुलूक की जानकारी मिली जिसमें घोड़ों पर सवार पेट्रोल टीम शरणार्थियों पर घोड़े चढ़ा देती थी उन्हें बांधकर घोड़ा दौड़ा देती थी। कमला हैरिस ने महज़ दो दिन पहले घोड़ों की पेट्रोलिंग पर प्रतिबंध लगा दिया खुद मौके पर गई और जांच की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा यह कतई बर्दाश्त नहीं होगा ।यह है लोकतांत्रिक व्यवस्था जिसमें आम आदमी की बात पर ध्यान दिया जाता है।
दूसरी तरफ आपने कल दरांग असम के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में क्रूरतम पुलिस गोलीबारी की जघन्यतम घटना देखी ही होगी जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के एक पुरुष और एक नाबालिग बच्चे को मारा गया।उस पर बेशर्म फोटोग्राफर की शव पर उछल-कूद की जितनी निंदा की जाए कम होगी।इस खौफनाक और मानवता विरोधी घटना पर असम के मुख्यमंत्री, पीएम छोड़िए, गृह मंत्री के मुंह से एक शब्द नहीं निकला। कमला हैरिस , मोदी की नीयत को समझती हैं। आज वाशिंगटन पोस्ट ने कायदे से मोदी सरकार को रगड़ भी डाला है। दुनिया मे रहने का सलीका आना चाहिए।
शांतिपूर्वक दस माह से चल रहे किसान आंदोलन को भी दुनिया देख रही है पांच सौ से अधिक किसान इस बीच शहादत दे चुके हैं।इसी मुल्क का एक अधिकारी किसानों के सिर फोड़ने का आदेश सरे आम देता है जिसमें एक किसान मारा भी जाता है पर इस अलोकतांत्रिक क्रूर सरकार के मुंह से प्राश्चियत के दो शब्द नहीं निकलते।दो जजों की हत्या पर भी सरकार ख़ामोश रहती है।एन आर सी के बहाने अल्पसंख्यकों को परेशानी में डालना, हत्यारों, बलात्कारियों और दंगा करने का आव्हान करने वालों को महत्त्व देना भी इस सरकार को कहीं से लोकतांत्रिक नहीं कह सकते हैं। स्वायत्त संस्थाओं मसलन चुनाव आयोग,सी सी आई,ई डी आदि के साथ न्यायाधीशों को प्रलोभन देकर मनोनुकूल फैसले , मंत्रियों को उनके अधिकारों से वंचित रखना, विपक्ष की महत्ता से इंकार, मीडिया और नेताओं की खरीद फरोख्त, देश की संपत्ति को कारपोरेट को सौंपना, निजीकरण कर अपनी जिम्मेदारी से बचना ऐसे अनेकों मामले हैं जहां सरकार पूरी तरह फासिस्ट नज़र आती है ।सबसे बड़ी बात संविधान विरोधी सरकार कैसे लोकतांत्रिक हो सकती है जो सिर्फ गाय, पाकिस्तान, हिंदू मुस्लिम, लव-जिहाद,जय श्रीराम के सहारे हो।देश की मंहगाई, बेरोजगारी जैसे ज़रूरी मसले जिसकी कार्यसूची में ना हो।जो सरेआम हिंदू धर्म को बदनाम कर रही हो, हिंदुओं को ख़तरे में बताती हो उस पूर्ण बहुमत की सरकार को धिक्कार है।
अचरज तब भी होता है जब मोदी जी अमेरिका में जाकर विज्ञान और टेक्नोलॉजी की बात जोर-शोर से करते हैं और भारत में इंजीनियरिंग के छात्रों के पाठ्यक्रम में यहां वेद को शामिल करवाते हैं। अंधश्रद्धा, अंधविश्वासों को ढोंगी बाबाओं और साध्वियों के ज़रिए प्रचारित और प्रसारित करने वाली सरकार कैसे देश को आगे ले जा सकती है।अब तो और मुश्किल यह है कि ये जमात सरकार को परामर्श देती है। सरकार में शामिल है और सरकार इन्हें सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए की मदद देती है।हाल ही में योगी आदित्यनाथ के परम सहयोगी महंत महेंद्र गिरि की आत्हत्या या हत्या के पीछे उनके सामंती रंग-ढंग और अकूत संपदा का होना ही बताया जा रहा है।बाबा रामदेव के गुरु की हत्या का भी आज तक रहस्य उजागर नहीं हुआ है।ये तमाम हिंदू संतों को राजनीति में प्रवेश देकर,उनकी बातों को मानकर उन्हें जिस तरह का स्वरूप दिया जा रहा है वह भी पूरी तरह अलोकतांत्रिक है।घर द्वार छोड़कर आने वाला संत पिता की अन्त्येष्टि में शरीक नहीं हो सकता है मुख्यमंत्री बन सकता है ये कैसी रीत है?कहां तो ये जाता है संतन कहां सीकरी कौ काम ।
भारत में जो एक धर्मनिरपेक्ष और सत्यमेव जयते वाला राष्ट्र है यहां की झूठ और एक धर्म विशेष को महत्व देने वाली सरकार कभी लोकप्रिय और कल्याणकारी नहीं हो सकती।हम भले भूल जाएं लेकिन अमेरिका को भली-भांति याद है कि भारत की सत्ता में वही लोग बैठे हैं जो गुजरात नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैं। अमेरिका ही वह पहला देश था जिसने मोदी को अमेरिका आने पर रोक लगाई थी।
अंधभक्तों को यह सब समझ ना आए तो क्या कहा जाएगा ।कम से कम अमेरिका से आने वाले संदेश को ही समझ लें तो देश का भविष्य बचाया जा सकेगा हालांकि बहुसंख्यक देशवासी अब इस तथाकथितमहान व्यक्तित्व को भली-भांति जान और पहचान गए हैं। भारतवंशी कमला हैरिस की यह महत्वपूर्ण चिंता है । इसमें हम सब को शामिल होना होगा।