“संजय कनौजिया की कलम“
(खंड-1, अध्याय-1)
धोबी जाति की व्युत्पत्ति धावन या धोने से जानी जाती है लेकिन धोबी समाज की विडम्वना रही है कि इस समाज के इतिहास को कभी व्यवस्थित रूप से रेखांकित नहीं किया गया..इसका मूल कारण यह रहा कि इस समाज को भी शिक्षा की श्रेणी से बाहर रखा गया..तब की लेखनी किसी खास वर्ग तक ही सीमित रही थी, अतः वे वर्ग अपने ही, हर क्षेत्र की गाथाओं का उल्लेख करते आए हैं..लेकिन यदि धोबी समाज की गाथाओं को विस्तार से शब्दावली प्रदान कर दी जाए, तो कम से कम 500 पृष्ठों का एक शानदार ग्रन्थ तैयार हो सकता है, जो तथ्यों, तर्कों, शाश्त्रों, पुराणों व सहिंताओं और ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित सत्य होगा..!
वर्तमान में धोबी समाज की सबसे बड़ी जिज्ञासा का केंद्र है कि उसकी कुल आबादी कितनी है..? कोई कहता है, हम 8 करोड़ 22 लाख के लगभग हैं, तो कोई कहता है कि हम 7 करोड़ के लगभग हैं, तो कोई कुछ तो कोई कुछ..लेकिन आधिकारिक रूप से धोबी समाज की कुल आबादी को कभी आजाद भारत के इन 75 वर्षों, के बाद भी सार्वजनिक नहीं किया गया है..धोबी ही क्या किसी भी दलित जातियों का उल्लेख सार्वजनिक नहीं किया गया है..जबकि 2011 की जातिय-जनगणना में दलित वर्ग की जातियों कि गणना जातिगत आधार पर होने की व्यवस्था रखी गई थी..परन्तु वह आंकड़े किसी भी सरकार द्वारा आज तलक सार्वजनिक नहीं हुए, कि देश कि कुल आबादी में जाटव कितने प्रतिशत है, बाल्मीकि कितने प्रतिशत हैं, खटीक, धोबी, सासी, पासी आदि इत्यादि कितने प्रतिशत हैं..?..जबकि धोबी जाति अनेकों गोत्रों व उपजातियों में देश के हर राज्य में बंटे हुए हैं..जिन्हे कहीं रजक कहीं कनौजिया कहीं दिवाकर, वर्मा, माथुर, परदेसी, चौहान, तोमर, तंवर, मथुरिया, चौधरी, बैठा, बॉथम, मादीवाला, अगसर, पारित, खत्री, मंडोरा, कन्नोजिया, श्रीवास, चकली, मरेठिए, सिन्हा, राजाकुला, वेलुत्दार, एकली, सेठी, पन्निकार आदि हैं..शहरों और कस्बों को छोड़ दें, तो देशभर के गांव गाँव में 5-10-15-20 या कुछ और अधिक 30 तक मानलों, बस इतने ही परिवार या उनके घर होते हैं..कस्बो या तालुकाओं में काम पाने के उद्देश्य से ये समाज इन क्षेत्रों में एक अच्छी संख्या में दिखने लगता है..लेकिन शहरों में और राज्यों की राजधानियों में इनकी संख्या असरदार और प्रभावशाली हो रखी है..देश की राजधानी दिल्ली में, नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में ये समाज एकजुटता का परिचय दे दे तो चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है..ठीक इसी तर्ज़ पर इसी लोकसभा क्षेत्र की दो विधानसभा, जो नई दिल्ली विधानसभा के नाम से जानी जाती है और दूसरी है दिल्ली कैंट, जिसपर समाज अपनी एकता की उपस्थिति दर्ज़ करवा दे, तो परिणाम धोबी समाज के अनुकूल हो सकते हैं..वैसे दिल्ली की सभी 70 विधानसभा सीटों पर धोबी समाज अपनी अच्छी पहचान रखता है..लेकिन लीडरशिप का आभाव और अपनों को तरजीह न देकर, अन्य समाजों के नेताओं के संपर्क में आकर धोबी समाज सदा बिखरा हुआ दिखाई दिया है..धोबी समाज की विडम्वना रही है कि ये समाज, कभी अपना मजबूत नेता न बना सका..समाज इसे अपनी घोर विडम्वना भी मानता है, वह एकजुट भी होना चाहता है, प्रयास भी करता है..परन्तु राजनीति और अनुशाषित सामाजिक नीतियों की कूटनीतियों से अपनी समझ को सदैव रिक्त रख, समाज के उत्थान में कभी अग्रसर न हो सका और अत्यंत मेहनतीं ये समाज हर क्षेत्र में सबसे पिछली कतार में दिखाई देता है..!
समाज में कई बड़े संत- समाजसेवी- और देशभक्त हुए..यदि इतिहास में और गहरा जाया जाए तो धोबी जाति के राजाओं और उनके साम्राज्य व कार्यों की भी जानकारियां समाज को गौरान्वित करती हैं..लेकिन इतना सब होने और जिन्होंने अपना पूरा जीवनकाल समाज सेवा में लगा दिया था..परन्तु अशिक्षा और गरीबी के कारण हमारी नई-पुरानी पीढियों ने उन्हें भुला दिया या फिर वह इतिहास के पन्नो से गायब कर दिए गए..बात राम राज्य से ही नहीं बल्कि उस से भी पूर्व से, जब कभी श्रमणकाल हुआ करता था..जिस काल में तब न कोई धर्म था न ही कोई जाति लेकिन धावन कार्य तब भी था..कैसे ऋषि कश्यप के हम वंशज हुए, कैसे पापों से शुद्धिकरण हेतू धोबी के घर के पानी के छिड़काव द्वारा छुटकारा मिलने की परंपरा थी, कैसे केकसी नामक धोबन ने, रावण को जन्म दिया..वह कैसी जंग थी हुई जो राम-धोबी विवाद के रूप में जानी जाती है..कैसे दशरथ के एक धोबी मंत्री और एक सेनापनी को मनुवाद के सिद्धांत का शिकार होकर वनगमन होना पड़ा..कैसे कैसे धोबियों ने विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया और कैसे गुरु गोबिंद सिंह महाराज के पंज-प्यारों में अपना स्थान स्थापित किया..जलियांवाला बाग़ नरसंहार में नत्थू और दुलिया धोबी ने कैसे अपनी जान की आहुति दी..और कैसे संत बाबा गाडगे जी महाराज, बाबा साहब भीम राव अंबेडकर के गुरु कहलाये..इन्ही सभी कथाओं को तथ्यों सहित हर अध्यायों में किस्त अनुरूप प्रस्तुत करता रहूँगा..और साथ ही अपने धोबी समाज की एकजुटता पर भी काम करता रहूँगा..!!
(लेखक- राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)