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*पुरूरवा और उर्वशी : एक तटस्थ विवेचन*

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       ~ पुष्पा गुप्ता 

ऋग्वेद दशम मंडल में (१०.९५.१ से १८) १८ मंत्रों में पुरूरवा (पुरूरवस्) और उर्वशी का आख्यान वर्णित है।

 संक्षेप में आख्यान इस प्रकार है:-

    उर्वशी नामक अप्सरा राजा पुरूरवा से गान्धर्व विवाह करती है। वह चार वर्ष पुरूरवा के साथ विवाहित जीवन व्यतीत करती है। उनके आयु नामक पुत्र होता है।

     अन्त में प्रतिज्ञाभंग के कारण उर्वशी पुरूरवा को छोड़कर जाना चाहती है। तब पुरूरवा उसे रोकना चाहता है। उर्वशी किसी भी प्रकार से रुकने को तैयार नहीं होती है। राजा विलाप करता है कि- मैं मर जाऊँगा, मैं किसी प्रकार से जीवित नहीं रहूँगा, तुम्हारे बिना मेरा जीवित रहना व्यर्थ है, आदि।

     उर्वशी राजा को समझाती है कि तुम मेरे लिए न मरो, न विलाप करो, तुम्हें हिंसक पशु न खावें। स्त्रियों का प्रेम चिरस्थायी नहीं होता। वे कठोर हृदय की होती हैं।

   उर्वशी कहती है :

पुरूरवो मा मृथा मा प्र पप्तो मा त्वा वृकासो अशिवास उक्षन्।

 न वै स्त्रैणानि सख्यानि सन्ति, सालावृकाणां हृदयान्येता।

   इस मंत्र से संकेत मिलता है कि प्रणय विवाहों का अन्त प्रायः इसी प्रकार दुःखद होता है।

यह प्रणय-आख्यान इतना अधिक प्रचलित हुआ कि कुछ ब्राह्मण-ग्रन्थों, पुराणों और महाभारत आदि में भी इसका वर्णन है। शतपथ ब्राह्मण (११.५.१) में यह कथा विस्तार से दी गई है। कालिदास के ‘विक्रमोर्वशीय’ नाटक में इस कथा का सुन्दरतम रूप प्राप्त होता है। 

     इस कथा की अनेक व्याख्याएं प्रस्तुत की गई हैं। पाश्चात्त्य विद्वानों में से अधिकांश का विचार है कि पुरूरवा सूर्य है और उर्वशी उसकी प्रेयसी उषा है। सूर्य के उदय होने पर उषा लुप्त हो जाती है। यह ही कथानक का भाव है।

      प्रो० गेल्डनर (Prof. Geldner). प्रो० रुडोल्फ रोठ (Prof. Rudolf Roth) और प्रो० गोल्डस्ट्रकर (Prof. Goldstucker) आदि इसी मत के समर्थक हैं। 

प्रो० ग्रिफिथ (Prof. R.T.H. Griffith) ने अपने ऋग्वेद के पद्यानुवाद (ऋग्०१०.९५) के नोट्स में प्रो० मैक्समूलर और डॉ० गोल्डस्ट्रकर का मन्तव्य इस प्रकार उद्धृत किया गया है :

   Prof. Max Muller considers the story to be one of the Vedas, which expresses the correlation of the dawn and the sun. According to Dr. Goldstucker Urvashi is the morning mist which vanishes away as soon as Pururavas, the sun, displays himself.

ऋग्वेद और यजुर्वेद के मंत्रों से ज्ञात होता है कि उर्वशी अप्सरा है और वह विद्युत् है। यजुर्वेद में उर्वशी को अप्सरा बताते हुए उसे विद्युत् बताया गया है। 

   उर्वशी च पूर्वचित्तिश्चाप्सरसौ, अवस्फूर्जन् हेतिः, विद्युत् प्रहेतिः।

          ( यजु०१५. १९)

ऋग्वेद के इस सूक्त के मंत्रों में कुछ शब्द हैं, जिससे उर्वशी के विद्युत् होने का संकेत मिलता है । 

विद्युन्न या पतन्ती (मंत्र १०) उर्वशी बिजली की तरह चमकती है। 

दुरापना वात इवाहमस्मि (मंत्र २) मैं उर्वशी वायु की तरह दुष्प्राप्य हूँ। 

 अप्या (मंत्र १०) उर्वशी जल या मेघ से उत्पन्न हुई है।

अन्तरिक्षप्राम् (मंत्र १७) उर्वशी अन्तरिक्ष में विचरण करती है। 

रजसो विमानीम् (मंत्र १७) उर्वशी जल को बनाने वाली है। इन सन्दर्भों से ज्ञात होता है कि उर्वशी विद्युत् है । 

   निरुक्त ने पुरूरवस् की व्याख्या की है पुरु- बहुत अधिक रवस् शब्द करता गड़गड़ाता है । अतः पुरूरवा मेघ है।  पुरूरवा बहुधा रोरूयते।

     (निरुक्त १०.४६)

उर्वशी की निरुक्ति यास्क ने दी है- उरु- अधिक, अशी व्याप्त, जो बहुत दूर तक। पुरूरवा और उर्वशी का पुत्र आयु है। आयु का अर्थ आयुदाता और अन्न है। पुरूरवा व्याप्त है। उर्वशी के संयोग से वर्षा होती है। वर्षा से अन्न होता है, उससे मनुष्य दीर्घायु होता है।

  उर्वशी अप्सरा। उरु-अभ्यश्नुते।

        (निरुक्त ५.१३)

अप्सरा अप्सारिणी। यदि वा अप्स इति रूपनाम।

           (निरुक्त ५.१३)

अप्सरा का अर्थ है- अप्स रूप, रा-वाली, सुन्दर रूप वाली। अप्स शब्द का अर्थ रूप है। अप्सरा का दूसरा अर्थ है- अप्सु सरतीति अप्सरा। जल में विचरण करने वाली। आकाशीय विद्युत् जल में विचरण करती है।

     इस आख्यान का भाव है :

 पुरूरवा (मेघ) का उर्वशी (विद्युत्) से वर्षाकाल में समागम होता है। वर्षा-काल में मेघ और विद्युत् अभिन्न होकर रहते हैं। यही इनका प्रणय-मिलन है।

    वर्षा ऋतु की समाप्ति पर विद्युत् मेघों को छोड़कर चली जाती है। यही इनका वियोग है। वर्षा से अन्न होता है। यही दोनों का पुत्र आयु है।

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