Site icon अग्नि आलोक

सवाल ही नीयत पर?

Share

शशिकांत गुप्ते

इस रंग बदलती दुनिया में*
इंसान की नीयत ठीक नहीं
निकला ना करो तुम सज-धजकर
ईमान की नीयत ठीक नहीं

गीतकार हसरत जयपुरी रचित उक्त पंक्तियों का यकायक स्मरण हुआ।
उक्त पंक्तियों में उन युवतियों को आगाह किया है,जो यौवन की दहलीज पर कदम रखती हैं।
गीत की पंक्तियों में गीतकार ने लोगों के ईमान पर भी संदेह व्यक्त करते हुए लिखा है,ईमान की नीयत ठीक नहीं
उपर्युक्त पंक्तियां सन 1964 फिल्म राजकुमार के गीत हैं।
समाज में रहकर जो असामाजिक कहलाते हैं उनकी नीयत साठ वर्ष के बाद ठीक नहीं हुई है।
ईमान शब्द का अर्थ सत्य, न्याय, और धर्म पर निष्ठा, सच्चाई। धर्म और ईश्वर के प्रति होने वाली आस्था; विश्वास।
आज देश पवित्र सदन में जो जनप्रतिनिधि शपथ लेते हुए यह वाक्य पढ़ते हैं, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण रखूंगा
यह तो हुई शपथ लेने की औपचारिकता?
व्यवहार में आचरण फिल्मी ड्रामे जैसा ही प्रतीत होता है।
फिल्मों में कृत्रिम न्यायालय में पवित्र धार्मिक ग्रंथ पर हाथ रखकर मै कसम खाता हूं, जो भी कहूंगा,सच ही कहूंगा सच के शिवाय कुछ नहीं कहूंगा।
फिल्मों में खालनायक का अभिनय करने वाला,अपराधी का रोल अदा करने वाला अभिनेता,
सभी कृत्रिम अदालत में उपर्युक्त संवाद का ही उच्चारण करते हैं।
फिल्मों में न्यायाधीश का अभिनय करने वाला कलाकर बहुत सी फिल्मों में खलनायक का भी अभिनय करता है। इसे ही फिल्मी ड्रामा कहते हैं।
क्या वर्तमान सियासत में जो हो रहा है,वह हुबहू फिल्मी ड्रामा तो नहीं?
एक ओर समस्याओं का अंबार है, दूसरी ओर कानों में जूं नहीं रेंग रही है?

देश का नाम रोशन करने वाली युवतियां के साथ जो भी अमानवीय कृत्य हुआ वह सर्वथा निंदनीय है।
ऐसे कृत्य की भर्त्सना करते हुए,प्रारंभ उद्धृत फिल्म की पंक्तियों में जो संदेश है वह सिर्फ युवतियों के लिए सीमित न रखते हुए आम जनता को आगाह करते हुए दोहराना चाहिए।
सिर्फ दुनिया शब्द की जगह सियासत लिखना पर्याप्त होगा।
जिनके कानों में जूं नहीं रेंगती है।
ऐसे लोगों के लिए शायर बशीर बद्रजी का यह शेर सटीक है।
खुदा हमको ऐसी खुदाई ना दे
के अपने सिवा कुछ दिखाई ना दे

शशिकांत गुप्ते इंदौर

Exit mobile version