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राहुल की अपील पर सवाल

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पलाश सुरजन

23 मार्च को सूरत की अदालत से मिली सजा के खिलाफ अपील करने कांग्रेस नेता राहुल गांधी सोमवार को सूरत पहुंचे। जहां राहुल गांधी के वकीलों ने दो याचिकाएं दायर कीं, पहली जमानत के लिए और दूसरी सज़ा पर स्थगन के लिए। सेशन कोर्ट ने राहुल गांधी को ज़मानत दे दी है, जबकि सज़ा पर रोक संबंधी याचिका पर सुनवाई की तारीख़ 13 अप्रैल तय की गई है। पिछले 10 दिनों से देश की राजनीति में एक सवाल तेजी से घूम रहा था कि मानहानि मामले में सूरत की अदालत से राहुल गांधी को जो सजा दी गई है, क्या वे उसके खिलाफ ऊंची अदालत में अपील करेंगे। क्योंकि राहुल गांधी को दो साल की सजा के तुरंत बाद जमानत भी मिल गई थी और अपील दायर करने के लिए 30 दिनों की मोहलत भी। आमतौर पर अपील करने में देर नहीं की जाती है, लेकिन राहुल गांधी के मामले में यह स्पष्ट ही नहीं हो रहा था कि आखिर वे क्या फ़ैसला लेने वाले हैं। क्योंकि सज़ा मिलने के अगले दिन ही लोकसभा से उनकी सदस्यता खत्म करने का फ़रमान भी आ गया और चंद दिनों के भीतर सरकारी बंगला ख़ाली करने का नोटिस भी मिल गया। राहुल गांधी ने संसद सदस्यता समाप्त होने के बाद अपने ट्विटर के परिचय में अयोग्य सांसद लिख दिया और बंगला निर्देशानुसार खाली कर दिया जाएगा, यह जवाब भी अधिकारियों को दे दिया। 

राहुल गांधी की ये प्रतिक्रियाएं पहली नजर में यही दिखला रही थीं कि वे नियमों-कानूनों का सम्मान करते हुए सारी प्रक्रियाओं का पालन कर रहे हैं, लेकिन इसके साथ ये भी दिख रहा था कि वे सारी कानूनी सख़्ती के बावजूद माफी मांगने या पीछे हटने तैयार नहीं हैं। इसलिए इस सवाल से धुंध छंट ही नहीं रही थी कि राहुल गांधी अदालती मामले में क्या कदम उठाएंगे। क्या वे जेल जाने के लिए तैयार रहेंगे या फिर अपील कर फैसले का इंतजार करेंगे। उनका राजनैतिक भविष्य, कांग्रेस की भावी रणनीति और आने वाले तमाम चुनाव के लिए योजनाएं सब इस मामले से जुड़ चुके हैं।

इस बीच लक्षद्वीप से सांसद पीपी मोहम्मद फैजल की संसद सदस्यता फिर से बहाल हो गई। श्री फैजल को 11 जनवरी को हत्या के प्रयास में दोषी करार देते हुए स्थानीय अदालत से 10 साल की सजा सुनाई गई थी, तब उनकी सदस्यता भी रद्द हो गई थी। और उनकी सीट पर उपचुनाव की घोषणा हो गई थी। लेकिन फिर केरल हाईकोर्ट ने इस सजा को खारिज किया तो लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता को फिर से बहाल कर दिया। इसलिए अटकलें लगने लगी थीं कि क्या राहुल गांधी के मामले में भी ऐसा ही होगा। अगर राहुल गांधी फिर से लोकसभा के सदस्य बन जाते हैं, तो इसके राजनैतिक परिणाम क्या होंगे। क्या इसका कोई नकारात्मक असर भाजपा पर पड़ेगा। क्योंकि राहुल गांधी को सजा भले अदालती प्रक्रिया से मिली, लेकिन सवाल भाजपा पर ही उठ रहे थे कि मानहानि मामले में मिलने वाली अधिकतम सजा राहुल गांधी को क्यों दी गई और इसी समय यह 4 साल पुराना मामला क्यों खुला। क्या इसका कोई संबंध संसद में दिए गए राहुल गांधी के उस भाषण से है, जिसमें उन्होंने अदानी समूह और प्रधानमंत्री मोदी की नजदीकियों पर सवाल उठाए थे। 

भाजपा अपने ऊपर उठ रहे इन सवालों से बेचैन दिख रही थी और जवाब देने के लिए केन्द्रीय मंत्रियों और तेजतर्रार प्रवक्ताओं की पूरी टीम लगा दी गई थी। भाजपा के कई लोगों ने सवाल उठाए कि क्या राहुल गांधी कानून से परे हैं, जो उन्हें सजा मिलने पर सवाल उठाए जा रहे हैं। भाजपा ने राहुल गांधी की टिप्पणी को ओबीसी के अपमान से भी जोड़ने की कोशिश की। हालांकि जल्द ही यह जवाब सबके सामने आ गया कि ललित मोदी या नीरव मोदी ओबीसी नहीं हैं। भाजपा के कुछ नेताओं ने यह सवाल भी उठाया कि राहुल गांधी ऊंची अदालत में अपील क्यों नहीं कर रहे हैं।

बहरहाल, जब सोमवार को राहुल गांधी अपील करने सूरत पहुंचे, तो इस पर भी भाजपा के कई नेताओं ने असहज होते हुए टिप्पणियां कीं। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने सोमवार सुबह प्रेस से कहा कि राहुल गांधी अपने परिवार के लोगों और मुख्यमंत्रियों के साथ सूरत कोर्ट जाने वाले हैं। रास्ता रोको, नौटंकी करो, इस तरह का माहौल गुजरात में कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का परिवार बनाने वाला है। वहीं केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सिलसिलेवार ट्वीट में कांग्रेस और राहुल गांधी पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि नेताओं और सहयोगियों की टीम लेकर राहुल का व्यक्तिगत रूप से कोर्ट जाना महज एक ड्रामा है। इसके साथ ही उन्होंने इसे अदालत पर दबाव बनाने की कोशिश बताया। पूर्व मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल उठाए कि यह क्या मतलब है मुख्यमंत्री कोर्ट में जा रहे हैं। यह नई परंपरा को शुरू कर रहे हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण, शर्मनाक है। इसी तरह कुछ और भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी के अपील करने जाने पर फ़िकरे कसे।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबके लिए है, तो भाजपा भी अपने मन के भावों को प्रकट कर रही है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर उसे असली दिक्कत किस बात से है। राहुल गांधी अपील करने पहुंचे, यह बात भाजपा को ठीक नहीं लग रही या फिर उसे राहुल गांधी का साथ देने पहुंचे लोगों से तकलीफ़ है। राहुल गांधी के लिए कांग्रेस ने ‘सूरत चलो’ जैसा कोई अभियान नहीं छेड़ा। अगर उनके साथ उनकी बहन और पार्टी के साथी जाते हैं, तो यह उनका निजी मामला है। इस पर किसी को कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए। रहा सवाल अदालत पर दबाव बनाने का, तो क्या भाजपा न्यायपालिका को इतना कमज़ोर समझती है कि कुछ लोगों के साथ आ जाने से वह दबाव में आ जाएगी। राहुल गांधी कानूनी प्रक्रिया के तहत ही अपील करने पहुंचे हैं, भाजपा को इस अदालत प्रदत्त अधिकार का सम्मान करना चाहिए। लेकिन भाजपा सवाल उठाकर न्यायपालिका की प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा कर रही है। राहुल गांधी के समर्थन में बहुत से कांग्रेस कार्यकर्ता सूरत पहुंच रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें पहले ही हिरासत में ले लिया। इस तरह की कार्रवाईयों से भाजपा की नीति और नीयत पर सवाल उठते हैं। देश में लोकतंत्र है, तो वह रोज़मर्रा के व्यवहार में नज़र भी आना चाहिए।

देशबन्धु में संपादकीय

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