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उदारवादी दलों के नैरेटिव और जनता से कनेक्ट करने की क्षमता पर सवाल?

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 नरेन्द्र नाथ

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के बाद एक बार फिर पूरी दुनिया में उदारवादी दलों के नैरेटिव और जनता से कनेक्ट करने की उनकी क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं। चुनाव के दौरान वहां दोनों उम्मीदवारों ने अपने हिसाब से नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की थी। लेकिन चुनाव परिणाम ने साबित किया कि डेमोक्रेटिक पार्टी और कमला हैरिस ज्यादातर लोगों तक अपनी बात प्रभावी अंदाज में नहीं पहुंचा सकीं।

सभी तबकों से समर्थन : चुनाव बाद आए आंकड़े बताते हैं कि रिपब्लिकन नेता ट्रंप को महज दक्षिणपंथी खेमे के नहीं बल्कि उन तबकों के भी अच्छे खासे वोट मिले, जिनके बारे में अनुमान था कि वे लिबरल ताकतों का समर्थन करेंगे। लैटिन अमेरिकी मूल के लोगों ने ही नहीं, अश्वेत पुरुषों ने भी ट्रंप को कमला हैरिस से अधिक वोट किया। ऐसा नहीं कि उन्होंने वोट देकर ट्रंप की नीतियों का सपोर्ट किया। उनके सामने ‘आज की रात बचेंगे तो सहर देखेंगे’ वाली स्थिति थी।

महंगाई और रोजगार : अधिकतर अमेरिकी मानते हैं कि उनका मौजूदा जीवन चुनौतियों से भरा है। पिछले कुछ सालों में महंगाई ने उनके घरों का बजट बिगाड़ दिया है। उनके लिए नौकरी के मौके कम हुए हैं। वे आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। वे सबसे पहले इन मुद्दों को सुलझाना चाहते हैं। उन्हें लगा कि कमला हैरिस और डेमोक्रेट्स ने अपने पूरे चुनाव प्रचार से इन मुद्दों को या तो अलग रखा या इन पर अपने स्टैंड को स्पष्ट नहीं किया। इन वोटरों ने वैचारिक तौर पर कमला हैरिस के साथ दिखने की बात कही, लेकिन आखिरकार वोटिंग पैटर्न अलग रहा।

तात्कालिकता का दबाव : जानकारों के मुताबिक, यह सामान्य ट्रेंड रहा है कि जब लोगों को अपने रोजमर्रा की जिंदगी में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है तो वे तात्कालिक तौर पर अपनी आयडियॉलजिकल लड़ाई को विराम दे देते हैं। वे पहले अपने जीवन की प्राथमिक दिक्कतों को दूर करने का रास्ता तलाशते हैं। अमेरिका में इस बार के चुनाव में ऐसा ही हुआ। कई कोर डेमोक्रेट्स समर्थकों ने भी इस चुनाव में ट्रंप को वोट दे दिया। वे तत्काल अपने जीवन में आर्थिक चुनौतियों के मोर्चे पर हल चाहते थे और उन्हें लगा कि कमला हैरिस के लिए इसे दूर करना प्राथमिकता में नहीं है।

हालिया ग्लोबल ट्रेंड : अमेरिका में जो हुआ वह हाल के वर्षों में ग्लोबल ट्रेंड के रूप में भी उभरा है। लिबरल राजनीति कहीं न कहीं अपने नैरेटिव को आम जन की जरूरतों, उनकी अपेक्षाओं के साथ कनेक्ट करने में विफल साबित हो रही है। इसका मूल कारण है आयडियॉलजिकल मुद्दों पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित कर इसी के इर्द-गिर्द चुनाव लड़ने की उनकी रणनीति। इस कवायद में वे जनता को यह बताने-समझाने में या तो देरी कर जाते हैं या कहीं न कहीं विफल हो जाते हैं कि बुनियादी मुद्दों को सुलझाने के लिए उनके पास भी कोई ब्लू प्रिंट है।

अबॉर्शन एकमात्र मुद्दा नहीं : यह सही है कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान अबॉर्शन एक बड़े मुद्दे के रूप में सामने आया था। कमला हैरिस और उनकी टीम ने इसे प्रमुखता से उठाया भी। वह इस उम्मीद के साथ चुनावी मैदान में थीं कि इस पर उन्हें सभी महिलाओं का समर्थन मिलेगा। महिलाओं ने इस मुद्दे पर कमला हैरिस को मुखर समर्थन दिया भी। लेकिन जैसा कि ग्राउंड जीरो पर महिलाओं से हुई NBT की बातचीत में स्पष्ट हुआ, उनके लिए यह एक मुद्दा तो जरूर था, लेकिन सिर्फ यही मुद्दा नहीं था। एक महिला ने कहा, ‘हमें अपने बच्चों की शिक्षा, घर के बढ़ते बजट, कम होते नौकरी के मौके के बारे में भी तो सोचना होगा। ये मुद्दे भी तो हमारे ही हैं।’ ऐसी सोच वाली कई महिलाओं ने अबॉर्शन के मुद्दे पर कमला हैरिस को समर्थन दिया, लेकिन वोट नहीं। कमला हैरिस यहीं चूक गईं।

कोई हनीमून पीरियड नहीं : शानदार जीत के बावजूद ट्रंप की आगे की राह आसान नहीं है। लिबरल नैरेटिव में आई शून्यता का लाभ उठाकर उन्होंने सत्ता तो हासिल कर ली, लेकिन अब उनके सामने उन वादों पर अमल करने की चुनौती होगी। उनके पास कोई हनीमून पीरियड नहीं होगा। आर्थिक मोर्चे और रोजगार जैसे मुद्दों पर आम लोगों को राहत देने के साथ ही उन पर अवैध प्रवासियों के खिलाफ अभियान चलाने का भी दबाव होगा। ध्यान रहे, ये दोनों काम साथ-साथ करना बहुत कठिन होगा। दोनों मकसद परस्पर विरोधी दिशा के हैं।

परस्पर विरोधी वादे : अधिकतर लोग मानते हैं कि ट्रंप को इस चुनाव में जनादेश वास्तव में देश की आर्थिक सुधारने के लिए मिला है। उन्होंने कई ऐसे वादे किए हैं, जिन्हें पूरा करना खासा मुश्किल साबित हो सकता है। कई मुद्दे ऐसे हैं, जो एक दूसरे के खिलाफ बैठते हैं। मसलन- वे बड़ी कंपनियों के लिए टैक्स कम करने की बात करते हैं, बड़े रेट कट की बात करते हैं और साथ में महंगाई कम करने की भी बात कर रहे हैं। जाहिर है, दोनों मकसद एक साथ नहीं साधे जा सकते। देखना होगा कि इन स्थितियों में कमला हैरिस और डेमोक्रेट्स आने वाले दिनों में अपनी राजनीति को किस तरह आगे बढ़ाते हैं।

नई बहस : कुल मिलाकर डॉनल्ड ट्रंप की जीत ने ग्लोबल राजनीति में नई बहस की शुरुआत की है और उदारवादी राजनीतिक दलों के आगे के रोडमैप पर सवाल उठा दिया है। इसका जवाब काफी हद तक आने वाले समय के घटनाकम पर निर्भर करेगा।

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