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राहुल का संसद में आना, कांग्रेस, इंडिया और हमारे लिए शुभ संकेत

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अमिता नीरव

भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अच्छी खबर है कि राहुल गाँधी की संसद सदस्यता बहाल कर दी गई है। इस सरकार का विपक्ष, आलोचना और विरोधियों को लेकर जो अप्रोच है, इसमें यह तत्परता चौंकाने वाली है। जब कोर्ट से राहुल को राहत दी गई थी, तब भी यह आशंका तो थी ही कि ये सरकार पता नहीं सारी प्रक्रिया में कितना वक्त ले?

इस लिहाज से फैसला आने के दो दिन के अंदर ही संसद में राहुल को आने की अनुमति के कई निहितार्थ हो सकते हैं। 2014 के चुनाव में कांग्रेस सबसे यूँ लोकसभा में सबसे बड़ा विपक्षी दल था, लेकिन उसके अध्यक्ष को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा पाने के लिए पर्याप्त सीट्स नहीं मिली थी।  

ऐसे में जाहिर है सोनिया गाँधी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देना या न देना सत्तारूढ़ दल की मर्जी पर निर्भर था। उस वक्त लगा था कि इतनी बड़ी जीत के साथ सत्ता में आई पार्टी इतना बड़प्पन तो दिखाएगी ही कि सोनिया को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दे, लेकिन बीजेपी वो बड़प्पन नहीं दिखा पाई। 

तब से ही बीजेपी से किसी उदात्त जेस्चर की उम्मीद न के बराबर है। जो घटिया बयानों, आरोपों, भाषा और हरकतों से सत्ता में आए हैं, आ रहे हैं, उनसे किसी भी किस्म की सभ्यता चाहे दिखावे के लिए ही सही, ऐसी नैतिकता की उम्मीद रही ही नहीं। ऐसे में राहुल की तुरंत बहाली कहीं हवा के रूख को भाँप लेने का परिणाम तो नहीं है?

राहुल की संसद सदस्यता रद्द किए जाने के फैसले पर कई विश्लेषकों की राय यह थी कि इस फैसले को चेलैंज नहीं किया जाना चाहिए था औऱ राहुल को सजा भुगतनी चाहिए। इससे पूरी दुनिया में सरकार की इमेज खराब होती और राहुल के जेल में होने को लेकर देश की जनता की भी राय बदलेती।

इस सरकार के नौ साल के इतिहास को गौर से देखें, इस सरकार को कब विदेशी आलोचना से फर्क पड़ा? जब भी राजा बाबू ने अपने बयानों की लाइन बदली, लगभग तभी देश में ऐसी घटनाएँ घटी जो उनकी बदली लाइन पर शक पैदा करती रही। 

दूसरी बात ये है कि जिस देश की जनता को एक बेवकूफाना मुद्दे पर राहुल की सदस्यता रद्द किए जाने को लेकर फर्क नहीं पड़ा, आपको लगता है कि उसे राहुल के जेल में रहने से फर्क पड़ता? ध्यान दीजिए कि राजा बाबू के कार्यकाल में हमारा डीएनए तक बदला जा चुका है।

जनता के पास कोई नैतिक मूल्य रहने की नहीं दिया गया है। नैतिकता के तमाम पैमानों की सरकार ने गठरी बनाकर हिंद महासागर में फेंक दी है। तमाम भ्रष्टाचार, अनैतिक तरीके से विधायकों की खऱीद-फरोख्त कर बनाई गई सरकारें, बलात्कार के आऱोपी बाबाओं, सांसदों औऱ विधायकों का निर्लज्ज तरीके से बचाव।

फेक न्यूज, गलत तथ्य, झूठ पर झूठ और बेवकूफी पर बेवकूफी के बावजूद इस देश की जनता को फर्क नहीं पड़ता है तो आपको क्या लगता है राहुल के जेल चले जाने से कोई फर्क पड़ता? याद कीजिए राहुल की सदस्यता रद्द किए जाने के वक्त लोगों की प्रतिक्रियाएँ क्या थीं?

सरकार के एक भी समर्थक ने ये कहा कि ये गलत किया जा रहा है! नहीं, क्योंकि इतने वक्त में देश की जनता को यह समझा दिया गया है कि ‘साम, दाम, दंड, भेद किसी भी तरह से यदि जीत हासिल की जा सकती है तो वह जायज है, नैतिक है’। यही सरकार कर रही है औऱ यही जनता उसका समर्थन कर रही है।

इसलिए राहुल की सदस्यता बहाल होने और सरकार की तत्परता को गुजरात हायकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के मद्देनजर बीजेपी को देश भर से मिल रहे फीडबैक का परिणाम समझा जाना चाहिए। जेल जाने का आदर्श पुराने वाले इंडिया पर असर करता, ये नया इंडिया है।  यहाँ नैतिक मूल्यों के लिए कोई जगह ही नहीं है। 

राहुल का संसद में आना, कांग्रेस, इंडिया और हमारे लिए शुभ संकेत है।

अमिता नीरव

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