अवधेश कुमार
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के दो स्थानों पर वीर सावरकर के विरुद्ध दिए गए राहुल गांधी के बयान पर बवंडर स्वाभाविक है। राहुल ने पहले वाशिम जिले में आयोजित रैली में सावरकर की निंदा की और जब इसका विरोध हुआ तो अकोला जिले में पत्रकार वार्ता में माफीनामे की एक प्रति दिखाते हुए उन्हें डरपोक तथा महात्मा गांधी और उस वक्त के नेताओं के साथ धोखा करने वाला बता दिया। राहुल के बयान और उसके प्रभावों के दो भाग हैं। पहला है इसका राजनीतिक असर और दूसरा उनके दावों की सच्चाई। दोनों हिस्सों पर अलग-अलग गौर करना ठीक रहेगा।
राजनीतिक असर
- एक, राहुल के बयान से उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी दोनों असहज हो गईं। दोनों खुद को इस बयान से अलग करने पर मजबूर हुईं।
दो, शिवसेना के संजय राउत ने यहां तक कह दिया कि इसका असर महाविकास आघाड़ी पर पड़ सकता है। - तीन, महाराष्ट्र में भारत जोड़ो यात्रा में जो आ रहे थे, उनमें उद्धव वाली शिवसेना और एनसीपी के साथ-साथ उन संगठनों और समूहों के भी लोग थे जो बीजेपी-आरएसएस के विरुद्ध रहे हैं।
- चार, महाराष्ट्र में वीर सावरकर के प्रति श्रद्धा और सम्मान समाज के हर वर्ग में है। इनमें बीजेपी और संघ के विरोधी भी शामिल हैं। इन सबके लिए राहुल गांधी ने समस्याएं पैदा कर दी हैं।
- पांच, आम लोगों में भी इसके विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई है। बीजेपी विरोधियों के लिए इस यात्रा का राजनीतिक लाभ उठाने की संभावनाएं राहुल के बयान के बाद धूमिल हो गई हैं।
- छह, राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों की यह भूल कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र में महंगी साबित होगी।
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के वाशिम में एक कार्यक्रम को संबोधित करते राहुल गांधी (फोटोः एजेंसी)
माफीनामे की सचाई
राहुल जो बोल रहे हैं वह सचाई का एक पक्ष है। आइए इसके विभिन्न पहलुओं पर गौर करें।
- एक, सावरकर 11 जुलाई ,1911 को अंडमान जेल गए और 6 जनवरी, 1924 को रिहा हुए। उनको करीब साढ़े 12 वर्ष काला पानी में बिताना पड़ा।
- दो, सावरकर ने 1911 से 1920 के बीच 6 बार रिहाई के लिए अर्जी दी। वे सभी अस्वीकृत हो गए।
- तीन, राहुल गांधी कह रहे हैं कि महात्मा गांधी को उन्होंने धोखा दिया जबकि उनकी छठी याचिका महात्मा गांधी के कहने पर ही डाली गई थी। गांधी जी ने स्वयं उनकी पैरवी की और ‘यंग इंडिया’ में रिहाई के समर्थन में लिखा।
दरअसल, प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 में जॉर्ज पंचम के आदेश पर भारतीय कैदियों की सजा माफ करने की घोषणा की गई थी। उनमें अंडमान के सेलुलर जेल से भी काफी कैदी छोड़े गए थे। इनमें सावरकर बंधु – विनायक दामोदर सावरकर और उनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर- शामिल नहीं थे। उनके छोटे भाई नारायणराव सावरकर ने महात्मा गांधी को पत्र लिखकर सहयोग मांगा था। इस अनुरोध पर गांधी जी ने क्या किया, यह देखिए।
- 25 जनवरी, 1920 को गांधी जी ने उत्तर दिया, ‘प्रिय डॉ. सावरकर, ….मेरी राय है कि आप एक विस्तृत याचिका तैयार कराएं जिसमें मामले से जुड़े तथ्यों का जिक्र हो कि आपके भाइयों द्वारा किया गया अपराध पूरी तरह राजनीतिक था।…. मैं इस मामले को अपने स्तर पर भी उठा रहा हूं।’
- गांधी जी ने 26 मई, 1920 को यंग इंडिया में लिखा, ‘कई कैदियों को शाही माफी का लाभ मिला है। लेकिन कई प्रमुख राजनीतिक अपराधी हैं जिन्हें अब तक रिहा नहीं किया गया है। मैं इनमें सावरकर बंधुओं को गिनता हूं।’
- एक और पत्र (कलेक्टेड वर्क्स ऑफ गांधी, वॉल्यूम 38, पृष्ठ 138) में गांधी जी ने लिखा, ‘राजनीतिक बंदियों के संबंध में, जो हत्या के अपराध में जेल में हैं, उनके लिए कुछ भी करना मैं उचित नहीं समझूंगा। हां, मैं भाई विनायक सावरकर के लिए जो बन पड़ेगा, वह करूंगा।’
- गांधी जी ने सावरकर बंधुओं की रिहाई की मुहिम में वे सारे तर्क दिए जो एक देशभक्त के पक्ष में दिए जा सकते हैं।
सावरकर की प्रशंसा में गांधीजी ने लिखा, ‘अगर देश समय पर नहीं जागता है तो भारत के लिए अपने दो वफादार बेटों को खोने का खतरा है। दोनों भाइयों में से विनायक दामोदर सावरकर को मैं अच्छी तरह जानता हूं। मेरी उनसे लंदन में मुलाकात हुई थी। वह बहादुर हैं, चतुर हैं, देशभक्त हैं…। उन्होंने सरकार की वर्तमान व्यवस्था में छिपी बुराई को मुझसे काफी पहले देख लिया था। भारत को बहुत प्यार करने के कारण वह काला पानी की सजा भुगत रहे हैं।’
ठीक है कि सावरकर महात्मा गांधी के अनेक विचारों से असहमत थे और कांग्रेस के आलोचक थे। किंतु उन्हें माफी मांगने वाला कायर, अंग्रेजों का पिट्ठू और स्वतंत्रता आंदोलन का विरोधी कहना एक महान देशभक्त, क्रांतिकारी, समाज सुधारक के प्रति कृतघ्नता होगी। कुछ और तथ्य देखिए।
- ऐसा प्रस्तुत किया जाता है मानो दया अर्जी डालने वाले सावरकर अकेले थे। ऐेसे स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी सूची है जो नियम के अनुसार माफीनामा/आवेदन भरकर बाहर आए।
- महान क्रांतिकारी शचींद्र नाथ सान्याल ने अपनी पुस्तक ‘बंदी जीवन’ में लिखा कि सेल्यूलर जेल में सावरकर के कहने पर ही उन्होंने दया याचिका डाली और रिहा हुए। उन्होंने लिखा है कि सावरकर ने भी तो अपनी चिट्ठी में वैसी ही भावना प्रकट की थी जैसी कि मैंने की। तो फिर सावरकर को क्यों नहीं छोड़ा गया और मुझे क्यों छोड़ा गया?
राहुल गांधी कहते हैं कि एक ओर आरएसएस और सावरकर की विचारधारा है तो दूसरी ओर कांग्रेस की। यह भी कि सावरकर बीजेपी और आरएसएस के प्रतीक हैं। सच यह है कि वीर सावरकर संघ के प्रशंसक नहीं रहे। बावजूद इसके, संघ और बीजेपी उनके बलिदान, त्याग, देशभक्ति और हिंदू समाज की एकजुटता के लिए किए गए उनके कामों को लेकर उनका सम्मान करती है। सावरकर जैसे महान व्यक्तित्व के मानमर्दन के विरुद्ध पूरे भारत में प्रतिक्रिया है। इसी कारण लोग कांग्रेस और नेहरू जी से जुड़े उन अध्यायों को सामने ला रहे हैं जिनका जवाब देना राहुल और उनके सलाहकारों के लिए कठिन है। कुल मिलाकर, राहुल गांधी ने अपने बयान से कांग्रेस के लिए ही समस्याएं पैदा की हैं।