सुसंस्कृति परिहार
यह हिंदुस्तान की गंगा-जमुना तहज़ीब ही है कि रामायण का ना केवल उर्दू में तर्जुमा किया गया बल्कि उर्दू में रामायण भी लिखी गई।आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बीकानेर वह शहर है जहां दीपावली पर श्रीराम और सीता जो पूरे चौदह वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या पहुंचते हैं, इस अवसर पर सालाना जश्न के मौके पर उर्दू रामायण पढ़ी जाती है और उस कृति पर चर्चा गोष्ठी और रामायण का वाचन भी आयोजित होता है। विदित हो उर्दू में रामायण 1935 में मौलाना बादशाह हुसैन खान राणा ‘लखनवी’ द्वारा रची गई। हिंदू महाकाव्य रामायण का यह उर्दू संस्करण, जो 81 साल पहले लिखा गया था उसे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया , पश्चिमी राजस्थान में सद्भावना के बंधनों को मज़बूत करता यह आयोजन महत्वपूर्ण है।औ खुशकिस्मती से यह परम्परा आज भी जारी है। हर साल बीकानेर में पर्यटन लेखक संघ और महफ़िल-ए-अदब की ओर से इसके वाचन और पाठ का आयोजन किया जाता है।मौलवी के हाथों लिखी नौ पन्नों की छोटी सी रामायण में रामसीता के वनवास की तस्वीर प्रस्तुत की गई है।उर्दू रामायण में राम के वनवास का कुछ यूँ बखान किया गया है-
“किस क़दर पुरलुत्फ़ है अंदाज तुलसीदास का/ये नमूना है गुसाई के लतीफ़ अंदाज़ का नक्शा/ रामायण में किस खूबी से खींचा, राम के चौदह साल वनवास का/ताज़पोशी की ख़ुशी में एक क़यामत हो गई/कैकेई को राम से अदावत हो गई /सुबह होते-होते घर-घर इसका चर्चा हो गया, जिसने किस्सा सुना उसको अचम्भा हो गया!
उर्दू में लिखी रामायण अब और भी ज़्यादा प्रासंगिक है. आप सोचिए एक मौलवी ने सालों पहले ये रामायण लिखी और आज भी उसका वाचन कोई इस्लाम का अक़ीदतमंद करता है। यह हमारी गंगा जमुनी तहजीब की गवाही देता है।उर्दू रामायण में राम वनवास की घड़ी पर सीता के मनोभाव को बहुत मार्मिक ढंग से पेश किया गया है-”रंजो हसरत की घटा सीता के दिल पर छा गई/गोया जूही की कली ओस से मुरझा गई.”
यकीनन राम को नैतिकता का मापदंड माना गया. मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र पूरी तरह दोषहीन, अच्छाइयों और पौरुष से भरपूर माना जाता है,उनकी शख्सियत में गौरव, बहादुरी और दया के गुण भरे हुए थे। इन गुणों ने सदियों तक विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवियों और रचनात्मक लेखकों की कल्पना को परवान चढ़ाया। विभिन्न भाषाओं और शैलियों में उनकी कहानी की अलग-अलग प्रकार से व्याख्या की गई है।
उर्दू के शायर भी इससे अछूते नहीं रहे. रामायण का विशाल हिस्सा गद्य और पद्य में उर्दू में लिखा गया।उर्दू शायरी का एक विशाल हिस्सा ग्रन्थ में वर्णित अलग-अलग कहानियों पर आधारित हैं। उर्दू में लिखी गई रामायण पर दो दशक से भी ज्यादा शोध करने वाले अली जव्वाद ज़ैदी के मुताबिक उर्दू में पहली रामायण कई सालों पहले उर्दू में जो पहली रामायण छंदबद्ध रूप में लिखी गई थी उसे जगन्नाथ खुशरा ने लिखा था इसको अदभुत रामायण का नाम दिया था. वहीं रामचरित मानस को उर्दू में नवाब वाजिद अली शाह के ज़माने में पहली बार छापी गई थी. रामायण का छंदबद्ध उर्दू अनुवाद पहली बार फिराकी साहब ने किया था. रामायण का पहली बार फारसी भाषा में अनुवाद करवाया था.
वहीं 1584 में अकबर के आदेश के बाद मुल्ला अब्दुल बदायुंनी ने पहली बार फारसी में रामायण का अनुवाद किया। इस काम को करने में बदायुंनी को चार साल लगे. इसको लिखने के दौरान अब्दुल बदायुंनी एक ब्राह्मण देवी मिश्र को नियुक्त किया था।1623 ईस्वी में फारसी के प्रसिद्ध कवि शेख साद मसीहा ने भी ‘दास्ताने राम व सीता’ शीर्षक से रामकथा लिखी थी। शाहजहां के शासनकाल के दौरान फ़ारसी में रामायण के दो अन्य अनुवाद मुल्ला शेख सादुल्लाह और गिरदास द्वारा किए गए थे। शेख सादुल्ला ने बनारस में 12 साल संस्कृत की पढ़ाई और फिर रामायण की रचना की थी।इसके अलावा शाहजहां के बेटे दारा शिकोह ने भी रामायण का फारसी में खुद अनुवाद किया था। इसकी पांडुलिपि वर्तमान में जम्मू के एक व्यवसायी शाम लाल अंगारा के पास है इस रामायण का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि यह “बिस्मिल्लाह-ए-रहमान अर-रहीम” से शुरू होता है।अब तक रामायण को 23 से ज्यादा बार फारसी में लिखा गया है। इनमें से कुछ का मूल संस्कृत से अनुवाद किया गया है जबकि अन्य तुलसीदास की रामायण पर आधारित हैं।
कहा जाता है कि मूल रूप से रामायण को वाल्मीकि ने लिखा था। वाल्मीकि रामायण में श्री राम और उनसे जुड़ी शख्सियत और घटनाओं का जिक्र किया गया है।सदियों तक राम कथाओं पर आधारित कई काव्य लिखे गए,इनमें डॉक्टर मोहम्मद इकबाल की लिखी ‘राम’ उल्लेखनीय है. इसमें ‘राम-ए-हिन्द’ को बेहद प्यार और सम्मान दिया गया है। राम का नाम ही हिंद के वासियों के लिए सम्मान का प्रतीक है और हर भारतीय को इस पर गर्व है
:-लबरेज है शराब-ए-हकीकत से जाम-ए-हिन्द/सब फलसफी है खित्ता-ए-मगरीब के राम-ए-हिन्द
आशय यह कि हिंद का प्याला हकीकत की शराब से भरपूर है
पश्चिम के तमाम दार्शनिकों पर हिन्द का राम भारी है
इसी प्रकार सागर निजामी के ‘राम’ में राम की विरासत के लिए सम्मान और प्यार भरा है. इसमें हिन्दू धर्मावलम्बियों और हिन्द के निवासियों में फर्क नहीं किया गया है, जो एक समान राम को प्यार करते हैं और सम्मान देते हैं-
जिंदगी की रुह था रूहानियत की शाम था
वो मुजस्सम रूप में इंसान का इरफान था
वो जीवन की आत्मा थे, आध्यात्म की रोशनी थे
इंसान के रूप में वो ज्ञान का अवतार
उर्दू शायरों में जफर अली खान का ‘श्री राम चन्दर’ भी उल्लेखनीय थे।उनका मानना था कि हिन्द की ‘संस्कृति’ सीता, लक्ष्मण और राम में गुंथी हुई है:
नक्श-ए तहजीब-ए हुनूद अभी नुमाया है अगर
तो वो सीता से है, लक्ष्मण से है और राम से है
मतलब ,अगर हिन्द में संस्कृति की कोई निशानी है,
तो वो सीता, लक्ष्मण और राम के कारण है।।बृज नारायण चकबस्त का ‘रामायण का एक सीन’ उर्दू शेरो-शायरी में बहुत ही पसंद किया गया-
उसका करम शरीक है तो गम नहीं
दास्तां-ए-दश्त दामन-ए-मादर से कम नहीं
यानिअगर ईश्वर का आशीर्वाद है तो उसे कोई दुख नहीं है जंगल का माहौल भी मां की ममता से कम नहीं है।
मुंशी बनवारी लाल शोला के ‘सीता-हरण’ में हमें घटनाओं का पारम्परिक वर्णन देखने को मिला
बाहर जो कुंडली से चलीं, धोखा खा गईं
रावण के चाल में, हैं महारानी आ गईं।
अर्थात जैसे ही महारानी लक्ष्मण रेखा से बाहर निकलीं,रावण के बिछाए जाल में फंस गईं।
वहीं शकील आज़मी ने भी रामायण के प्रमुख महिला किरदारों पर भी अपनी संजीदगी के ज़रिए एक नई इबारत लिखने की उम्दा कोशिश की है देखें उनकी अहिल्या पर एक नज़्म -“राम तुम क्यों मुझे छूकर ग़ुज़रे/तोड़कर क्यों मुझे पत्थर से निकाला तुमने/मूर्ति ही मुझे रहने देते/मूर्ति होती तो शायद मेरी पूजा होती/औरतें देवियां,मरकर ही बना करती हैं/ज़िंदा औरत तो फ़कत रूह है/ फ़कत जिस्म है/ जैसे मैं हूं/मुझे इस जिस्म से/रूह से आज़ाद करो/ऐसी दुनिया से मेरी रूह को/मेरे जिस्म को आबाद करो/जिसे घूरें ना कोई इन्द्र की आंखें/जिसमें फिर कोई गौतम,मुझे शापित ना करें/मेरी मर्जी के बिना कोई हुकूमत ना करें/फिर कोई मर्द मुझे औरत से देवी ना करे।”
इधर पिछले तीन दशक पहले राजनीतिक एंगल से मशहूर शायर कैफी आजमी के ‘दूसरा वनवास’ में हुए मार्मिक और मर्मस्पर्शी, पर राजनीतिक वर्णन में ये साफ है। इसमें वे उस भारतीय संस्कृति का खत्म होना बताया गया है जिससे हमारी पहचान थी, जो उस भारत में अलग-अलग विचारधाराओं के लोग एक साथ रहते थे, लेकिन 6 दिसम्बर 1992 की घटना से उसे गहरा आघात पहुंचा.
उनकी रचना दूसरे वनवास में शायर ने इसकी तुलना अयोध्या में मस्जिद गिराए जाने के बाद सरजू नदी के तट पर बिखरे खून के साथ करना ये दर्शाता है उन्होंने अयोध्या में दूसरी बार नफरत की आग महसूस की होगी इस नफरत के कारण ही उन्होंने सोचा होगा कि ये शहर राम का शहर नहीं हो सकता-देखेउनके दर्द को—
“राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये—–
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे “
आज वही अयोध्या सज धज के फिर तैयार है। मंदिर अपूर्ण है राम मूर्ति तैयार है 22जनवरी को इस मूर्ति का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह आयोजित है।आज कार सेवकों के बलिदान से रंगी जन्मभूमि कराह रही है जो इस बात के लिए शहीद हो गए मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन वह तीन किलोमीटर दूर बन रहा है। कारसेवक और उस आंदोलन के नेताओं की कोई। पूछ परख नहीं।राम जी जिन्होंने सत्ता मोह छोड़ वनवास के लिए प्रस्थान किया आज उसी राम को अपूर्ण मंदिर में बैठाकर हिंदु शास्त्र विरोधी कार्य सिर्फ इसलिए हो रहा है ताकि राममंदिर निर्माण का श्रेय लेकर सत्ता पर फिर सिक्का जमाया जाए।
1992में षड्यंत्र पूर्वक जब बाबरी मस्जिद का ढांचा तोड़ा गया तब मुसलमान और राम को अलग करने की चेष्टा की गई। दोनों समुदायों के बीच नफ़रत को फैलाकर वोट का ध्रुवीकरण किया गया।आज उस जन्मभूमि से दूर मंदिर बनाया गया है इस बात को सोचना चाहिए।ये बाबरी तोड़क और सरकार निश्चित तौर पर राम से कतई कोई अनुराग नहीं रखते है। इसलिए चारों शंकराचार्य महाराज इस राजनैतिक आयोजन के खिलाफ हैं तथा संपूर्ण विपक्ष भी इसे चुनावी एजेंडे के रुप में देख दूरी रख रहा है। लगता है आज सनातन धर्म ऐसे लोगों के कारण टूटने की कगार पर है।भला धर्म और राजनीति का साथ उचित नहीं है।भारत एक धर्म और पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है।
बहरहाल, हमें यह याद रखना होगा कि पिछले 10सालों से जिस धर्म से नफ़रत की बात की जा रही है वह भी राम से मोहब्बत करता है और उसे अपना मानकर उन्हें आत्मसात कर रामायण और राम सीता के बारे में लिखता रहा है और लिख रहा है। सोचिए ‘वो मुजस्सम रूप में इंसान का इरफान था’ यदि सागर निज़ामी राम से मोहब्बत ना करता तो ये कैसे लिख पाता?