प्रवीण मल्होत्रा
भाजपा ने जून 1989 में मंदिर आंदोलन को पहली बार अपने एजेंडे पर लिया था। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में भाजपा कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पारित कर अयोध्या में मंदिर निर्माण का संकल्प लिया, तब यह बात बड़े जोर से कही कि इस विवाद का हल कोई अदालत नहीं कर सकती क्योंकि यह जमीन जायदाद का नहीं, बल्कि आस्था का सवाल है और कोई अदालत आस्था के आधार पर फैसला नहीं दे सकती है। 1989 में भाजपा को यह मालूम था कि उसका और विश्वहिंदुपरिषद, जिसकी स्थापना 29 अगस्त 1964 को ही हो चुकी थी, का पक्ष कमजोर है। इसलिये वह दस्तावेजी प्रमाणों के आधार पर नहीं सिर्फ आस्था पर जोर दे रही थी।
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा मंदिर निर्माण का प्रस्ताव पारित करने से पूर्व ही प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर 1 फरवरी 1986 को बाबरी मस्जिद का ताला हिन्दू पक्ष को पूजा करने के लिये खोल दिया गया था। इसकी प्रतिक्रिया में 6 फरवरी 1986 को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हो गया। इसके बाद 1 अप्रैल 1989 को विहिप द्वारा बुलाई गई धर्म संसद में 30 सितंबर को राम मंदिर के शिलान्यास की घोषणा कर दी गयी।
भाजपा और विहिप तब तक सत्ता में नहीं थीं। इसलिये वे नहीं चाहते थे कि इस पूरे मामले में न्यायालय का हस्तक्षेप हो। इसलिये वे हिंदुओं की कई शताब्दियों में निर्मित हुई आस्था को ही आधार बना रहे थे। उनका तर्क था कि आस्था के लिये किसी प्रमाण की जरूरत नहीं होती है। करोड़ों हिंदुओं की यह मान्यता और आस्था है कि उनके इष्टदेव भगवान श्रीराम का जन्म उसी स्थान पर हुआ था, जहां पुरातन मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाई गई है।
1990 आते-आते भाजपा ने मंदिर निर्माण आंदोलन को अपना मुख्य एजेंडा बना लिया था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने मंडल आयोग की सिफारिशों के कारण पिछड़े वर्गों में पैदा हुई राजनीतिक चेतना के प्रभाव को कुंद करने तथा व्यापक हिन्दू एकता के लिये सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा निकालने की घोषणा की। उनकी इस रामरथ यात्रा के संयोजक थे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
बहरहाल, राम रथ यात्रा के रथ को बिहार में लालूप्रसाद यादव की सरकार ने रोक दिया और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। इसके परिणामस्वरूप भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। अंततः 2014 में पहली बार भाजपा को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का अवसर मिला। तब तक भाजपा हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और मंदिर निर्माण को अपना लक्ष्य निर्धारित कर चुकी थी।
2019 के आम चुनाव में भाजपा को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में और व्यापक सफलता मिली। अब तक मंदिर निर्माण के मार्ग में न्यायालय भी कोई बाधा नहीं रह गया था। अंततः दिसम्बर 2019 में सुप्रीमकोर्ट की पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व में सर्वानुमति से हिंदुओं की आस्था को मान्यता देते हुए मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दे दिया। इसप्रकार भाजपा के एक प्रमुख राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति हो गयी।
अब 2024 का आमचुनाव बहुत बड़े बहुमत से जीतने के उद्देश्य से 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन किया गया है जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं करेंगे। यह आयोजन रामनवमी के दिन न करके 22 जनवरी को इसलिये किया जा रहा है क्योंकि चुनाव आयोग मार्च में आमचुनाव की घोषणा कर देगा। रामनवमी की तिथि उसके बाद आ रही है।
इसलिये विशुद्ध रूप से चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से यह भव्य आयोजन किया जा रहा है। तिथि, मंदिर का अधूरा निर्माण तथा प्रधानमंत्री द्वारा प्राणप्रतिष्ठा किये जाने को लेकर दो प्रमुख शंकराचार्यों ने अपना विरोध प्रकट किया है। लेकिन संघ, विहिप तथा भाजपा को उनके विरोध की कोई चिंता नहीं है, क्योंकि आरम्भ से ही राममंदिर निर्माण का मुद्दा उनका राजनीतिक एजेंडा रहा है। अब आखिरी बार वे पुनः इसका भरपूर लाभ उठा लेना चाहते हैं और इसमें उन्हें सफलता मिलने की पूर्ण सम्भावना भी है।