अग्नि आलोक

संविधान के उसूलों को लागू किये बिना रामराज के कोई मायने नही 

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मुनेश त्यागी 

     आजकल अयोध्या में राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे समाज में कोतूहल सा छा रहा है। कुछ लोग इस आयोजन का दिलों जान से समर्थन कर रहे हैं तो कई सारे लोग और कई सारी विपक्षी पार्टियां इसे धर्म और राजनीति का गठजोड़ बता कर सत्ता प्राप्ति का अभियान बता रहे हैं। कई सारे लोग इसे लेकर ज्ञान विज्ञान की संस्कृति पर बहुत बड़ा हमला बता रहे हैं। कई सारे लोग इसे अंधविश्वास और धर्मांधता के साम्राज्य को दोबारा से मजबूत करने की जी-तोड़ कोशिश बता रहे हैं। 

    राम की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर कई सारे लोग इसे धर्म और राजनीति का एकीकरण बता रहे हैं। उनका कहना है कि इस कार्यक्रम को बीजेपी और आरएसएस के लोगों द्वारा हड़प लिया गया है। इसमें उन्होंने जान पूछ कर विपक्षी दल के नेताओं से बात नहीं की है, ईमानदार और निष्पक्ष पत्रकारों को विश्वास में नहीं लिया है, उन्हें जानबूझकर इस अवसर पर निमंत्रण नहीं दिया गया है और सरकार एक चालबाजी के तहत अपने गोदी मीडिया के लोगों को बुला रही है और अपनी सोच के कुछ खिलाड़ियों और पत्रकारों को बुला रही है।

       यहीं पर कई सारे लोग इसे ज्ञान विज्ञान विवेक और तर्क की कसौटी पर बहुत बड़ा हमला बता रहे हैं। उनका कहना है कि इसे लेकर हमारे देश में अंधविश्वासों और पाखंडों के बढ़ावे को बल मिलेगा। उनका कहना है कि रामायण एक महाकाव्य है जिसमें कल्पनाओं का सहारा लिया गया है जो ज्ञान विज्ञान की कसौटी पर खरे नहीं उतरती। इसे लेकर वे कई सारे सवाल खड़े कर रहे हैं जैसे,,,,,

,,,,,हम अपने बच्चों, सगे संबंधियों, परिचितों और देश के समस्त नागरिकों से कहेंगे कि वे इस बात पर विश्वास न करें कि कोई आदमी, लड़का या बच्ची जमीन में गड़े हुए घड़े से पैदा हो सकती है।

,,,,, हम उनसे कभी नहीं कहेंगे कि वे यह मानकर चलें कि खीर खाने से या फल खाने से बच्चे रातो-रात में पैदा हो सकते हैं।

,,,,, हम उनसे कभी नहीं कहेंगे कि पांच हजार साल पहले कोई पुष्पक विमान था, क्योंकि दुनिया में विमान की तकनीक केवल सवा सौ साल पहले ही आई है,

,,,,,, हम उनसे कभी नहीं कहेंगे कि वे यह मान ले कि पांच हजार साल पहले पत्थरों पर नल और नील लिखकर उन्हें समुद्र में फेंका गया था और वे जुड़ते गए और कोई रामसेतु नाम का पुल बन गया। आज तो पुल बनाने की तकनीक ने बहुत उन्नति कर ली है मगर आज भी कोई पत्थर पानी में नहीं तैर सकता और ऐसा करके कोई पुल नहीं बनाया जा सकता है।

,,,,,, हम उनसे यह भी कभी नहीं कहेंगे कि की कोई बंदर रात के अंधेरे में उड़ सकता है और पूरे पहाड़ को उखाडकर ला सकता है,

,,,,, हम उनसे यह भी नहीं कहेंगे कि वे यह बात स्वीकार कर लें कि कोई औरत धधकती हुई आग में से निकल कर जिंदा रह सकती है, जिसे अग्निपरीक्षा के नाम से जाना जाता है,

,,,,,हम उनसे यह भी कहेंगे कि वे इस बात को भी स्वीकार ना करें कि किसी के कहने पर, कोई भगवान किसी शूद्र ,(शम्बूक) का सर काट सकता है,

,,,,,, हम उनसे यह भी कहेंगे कि वे इस बात को भी कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि घास से कोई बच्चा पैदा हो सकता है जैसे लव कुश में कुश को घास से पैदा करना बताया जाता है,

,,,,, हम उनसे यह भी कहेंगे कि वे इस बात को कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि कोई औरत धरती से कहे कि वह फट जाए ताकि वह उसमें समा जाए। क्योंकि धरती में कोई गड्ढा खोदने से ही बनाया जा सकता है, किसी के कह देने भर से धरती नही फटती।

,,,,, अब वे कह रहे हैं कि वे अयोध्या के राम मंदिर में पत्थर की राम की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। क्या कोई समझदार और विवेकशील आदमी इस बात को स्वीकार करेगा? क्या किसी पत्थर की मूर्ति में प्राण डालकर उसे जिंदा किया जा सकता है? यह कितना बड़ा वैज्ञानिक झूठ है? इस अवैज्ञानिकता से भरपूर असत्य को कैसे स्वीकार किया जा सकता है?

     इसके अलावा पांच सौ रामायणों में और भी बहुत सारी बातें लिखी हुई है जिन्हें अगर विवेक और तर्क की कसौटी पर कसा जाए तो वे रत्ती भर भी खरी नहीं उतरती और उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता।

     आजकल हमारे देश में गोदी और गुलाम टेलीविजन, अखबारों और मीडिया में सत्ता प्राप्ति के अभियान में राम के नाम को भुनाने की कोशिश की जा रही है और उनके नाम पर सत्ता प्राप्ति का धर्मांध अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें तमाम तरह के अंधविश्वास और पाखंड फैलाये जा रहे हैं। पूरी की पूरी हिंदुत्ववादी धर्मांध ताकतें इस काम में लगी हुई है।

      धर्म किसी भी आदमी का व्यक्तिगत मामला हो सकता है। किसी भी राजनीतिक दल द्वारा धर्म को राजनीति के साथ नही मिलाया जा सकता है। हमारा संविधान कहता है कि भारत की कोई भी राजनीतिक पार्टी धर्म के नाम पर राजनीति नहीं कर सकती। भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपने अनेक फैसलों में स्थापित कर चुका है कि भारतीय राज्य का कोई धर्म नहीं है। उसके लिए सब धर्म बराबर हैं।

    ऐसे में आरएसएस और बीजेपी खुलकर 2024 के चुनाव जीतने के लिए खुलकर धर्म का दुरुपयोग कर रही हैं, उसे राजनीति में मिला रही है और उसका गैर संवैधानिक इस्तेमाल कर रही है और राम के नाम को बदनाम कर रही हैं। इन तत्वों का रामराज स्थापित करने में कोई यकीन नहीं है। हमारे देश में तो रामराज तभी स्थापित किया जा सकता है कि जब यहां के हर एक आदमी को शिक्षा मिले, स्वास्थ्य मिले, रोजगार मिले, देश के संसाधनों का सारी जनता के विकास के लिए इस्तेमाल हो और हमारे देश में हजारों साल से व्याप्त गरीबी, अंधविश्वास, जुल्मों सितम, अन्याय, बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, महंगाई और भ्रष्टाचार का साम्राज्य खत्म किया जाए।

      इस मुद्दे को लेकर भारत के चार सबसे बड़े शंकराचार्यों ने इस प्राण प्रतिष्ठा अभियान का विरोध किया है। उनका कहना है कि यहां धार्मिक और शास्त्रीय परंपराओं का पालन नहीं किया जा रहा है। अधूरे मंदिर में राम की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है जो शास्त्रों के प्रावधानों के एकदम विपरीत है। ऐसी स्थिति में वे इस प्राण प्रतिष्ठा पर कार्यक्रम में नहीं जाएंगे और उन्होंने इसका बहिष्कार करने की घोषणा कर दी है। इन सब विपरीत परिस्थितियों के बाद भी आरएसएस और बीजेपी इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को पूरा करने में डटी हुई हैं। वे इसमें उठाई जा रही आपत्तियों का निराकरण करने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।

     हम मीडिया और अखबारों में लगातार सुनते चले आ रहे हैं कि “वे राम को लेकर आएंगे, वे राम को लेकर आएंगे,” मगर सवाल यह उठता है कि राम कहां चले गए थे? राम तो यही हैं। हमारे कई धर्म शास्त्रों का कहना है कि “घट-घट में राम हैं, कण-कण में राम व्याप्त है।” तो फिर भाई राम कहां चले गए थे? राम तो यही हैं। इस सब को देखकर लगता है कि यह सिर्फ राम के नाम पर राजनीति हो रही है, इसके अलावा और कुछ भी तो नहीं हो रहा है।

        बेहद अफसोस की बात है कि राम का नाम बदनाम करने वाली इन तमाम ताकतों का भारत की जनता द्वारा फेस की जा रही बुनियादी समस्याओं को हल करने या उनका समाधान करने के बारे में कोई विश्वास नहीं है। बस ये सिर्फ धर्म के नाम पर, राम के नाम पर, 2024 के चुनाव जीत कर भारत के चंद पूंजीपतियों के साम्राज्य का और घनघोर विस्तार करना चाहती हैं, इसके अलावा इनका और कोई एजेंडा नहीं है। 

     भारत की कई विपक्षी पार्टियों जैसे सीपीआईएम, कांग्रेस, सपा और कई सारे दूसरे दल भाजपा और आरएसएस के इस राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा अभियान से खुश नहीं हैं। उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जाने से ससम्मान इंकार कर दिया है। उनका कहना है कि भाजपा और आरएसएस 2024 में फिर से सत्ता में आने के लिए, राम के नाम पर यह धार्मिक और राजनीतिक आंदोलन चला रहे हैं जो भारत के संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के एकदम खिलाफ है।

      राम के इन चहेतों ने पिछले 10 साल में सत्ता में रहने के बावजूद, इस देश की अधिक संख्य जनता किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों और महिलाओं की बुनियादी समस्याओं का कोई हल नहीं किया है और अब तो हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि वे भारत को आजादी के पहले की स्थिति में ले जाने पर आमादा हैं। इन्होंने भारतीय संविधान के रहते, संविधान के अधिकांश जन कल्याणकारी सिद्धांतों को ताक पर रख दिया है। आज हालात इतने खराब है कि मोदी सरकार अपने 10 साल के शासन के बावजूद भी जनता की बुनियादी समस्याओं पर चर्चा करने की स्थिति में नहीं है और इसी चर्चा से बचने के लिए उसने राम मंदिर का सहारा लिया है।

      कितना अच्छा होता कि यदि मोदी सरकार इस देश में राम के नाम पर, दुनिया के सबसे बड़े  आईआईटी, आईआईएम, आधुनिक शिक्षा सुविधाओं से लैस विश्वविद्यालय और कई बड़े शिक्षण संस्थान राम के नाम पर खोलती और राम के नाम पर ही आधुनिकतम सुविधाओं से संपन्न, आधुनिकतम मेडिकल कॉलेज की स्थापना करती, जिससे भारत की जनता और छात्रों नौजवानों के ज्ञान विज्ञान में वृद्धि होती, उन्हें स्वास्थ्य की मुफ्त आधुनिक सेवाएं मिलती, उन्हें पढ़ने के लिए विदेश में नहीं जाना पड़ता। मगर अफसोस कि भारत की सरकार ने राम के नाम पर मंदिर बनाने का फैसला लिया है जिसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता और जो कतई भी जन हित में नहीं है। हां इससे चंद पंडे पुजारी के हितों की रक्षा होगी, देश में ज्ञान विज्ञान की संस्कृति के बढ़ाने के बजाय, अंधविश्वास और धर्मांधता और दूसरे कई सारे कर्मकांडों में घनघोर वृद्धि होगी।

       इन तमाम विपरीत परिस्थितियों में भारत की तमाम धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील, जनवादी और समाजवादी दलों और ताकतों की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन गई है कि वे राम के नाम पर सत्ता प्राप्ति के अभियान से, जनता को अवगत करायें और जनता को बताएं कि केवल संविधान के प्रावधानों के अनुसार ही भारत में तथाकथित रामराज की स्थापना की जा सकती है। इसके अलावा रामराज के और कोई मायने नहीं हैं। भारतीय संविधान के उसूलों को लागू किए बिना रामराज के कोई मायने नहीं हैं।

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