सुधा सिंह
इस बात में भला किसको शंका हो सकती है कि राष्ट्रीय-अन्दोलन के दिनों में महाराणा के वीर -चरित्र ने देश की स्वतन्त्रता के लिये समष्टि-चेतना को आन्दोलित किया था.
वह प्रसंग हिला देता है ,जब उनकी पुत्री भूखी थी और घास की रोटी को भी वन-बिलाव ले गया था। उन्होंने संधि के प्रस्ताव पर भी सोच लिया था!
इतिहास की बात इतिहासकार जानें. महाराणा की महिमा का आधार तो लोककाव्य और लोकगाथाएं हैं।
वे भूभरिया ,जो आजतक महाराणा की आन को निभा रहे हैं , कोई मानवशास्त्री उनके बीच रह कर उनको पहचाने तो सही :
मूं भूख मरूं मूं प्यास मरूं ,घास्याणी रोटी खाऊं सूं।
सुख-दुख रौ साथी चेतकड़ौ राणा री पार लगावै सै।
रहीम खानखाना की बेगम को अत्यन्त प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ रहीम के पास क्षमायाचना के साथ पंहुचवाया था और रहीम ने अकबर से कहा था कि ऐसा शत्रु भी भाग्य से ही मिलता है।
जयशंकर प्रसाद ने महाराणा का महत्त्व में इस प्रसंग को लिया है। रांगेय राघव ने आंधी की नींव उपन्यास लिखा। निराला ने लिखा। जगन्ना्थ प्रसाद मिलिन्द की प्रताप प्रतिज्ञा, गोकुलचन्द्र जी का प्रणवीर प्रताप, ब्रजेन्द्र अवस्थी का चेतक। हरिपाल निराश का प्रताप परिताप।
मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा नवीन, रामनरेश त्रिपाठी ,श्यामनारायण पांडेय, माखनलाल चतुर्वेदी, रामधारी सिंह दिनकर, शान्तिप्रिय द्विवेदी, कन्हैयालाल जी सेठिया, लाला भगवान ‘दीन आदि ने महाराणा को अपने काव्य में नमन किया है।
हिन्दी के साथ ही तेलुगु, गुजराती, बंगाली, मराठी, कन्नड़, अंग्रेजी और संस्कृत में भी महाराणा को आधार बना कर काव्य ,नाटक , उपन्यास लिखे गये हैं।
गणेश शंकर विद्यार्थी कहते हैं :
प्रताप! संसार के किसी भी देश में तू होता तो तेरी पूजा होती! तेरे नाम पर लोग अपने को न्यौछावर करते! अमेरिका में होता तो वाशिंगटन और अब्राहम लिंकन से तेरी किसी तरह कम पूजा न होती! इंगलैंड में होता तो वेलिंग्टन और नेल्सन को तेरे सामने सिर झुकाना पडता।
स्काट्लेंड में बलस और राबर्ट ब्रूस तेरे साथी होते! फ्रांस में जोन आफ आर्क तेरी टक्कर की गिनी जाती!
इटली तुझे मैजिनी के मुकाबले में रखता!
एक भारतीय युवक आंखों में आंसू भरे हुए अपने हृदय को दबाता हुआ , लज्जा के साथ तेरी कीर्ति गा नहीं, रो नहीं, कह भर लेने के सिवा और कर ही क्या सकता है?