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नहीं जलेगा रावण, बल्कि रावण की होगी पूजा……!

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आयुषी त्यागी 

दशहरा पर जहां देशभर में रावण दहन किया जाएगा। वहीं कुछ स्थान ऐसे हैं जहां रावण दहन नहीं जाता बल्कि रावण की पूजा अर्चना की जाती है। इतना ही नहीं हमारे देश में रावण का एक मंदिर भी है जो केवल विजयदशमी के दिन ही खुलता है। आइए जानते हैं सबके बारे में विस्तार से।

दशहरा पर रावण का दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। देशभर में लोग रावण का दहन कर खुशियां मनाते हैं। इस साल विजयदशमी यानी दशहरा 24 अक्टूबर को है। लेकिन, क्या आप जानते हैं हमारे देश में कई जगह ऐसी भी हैं जहां दशहरा के दिन रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि शोक मनाया जाता है रावण की पूजा अर्चना की जाती है। आज हम आपको ऐसी ही दो स्थानों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां रावण दहन पर शोक व्यक्त किया जाता है।

कानपुर में स्थित रावण मंदिर साल में एक बार ही खुलता है
कानपुर के शिवाला स्थित देश का एकलौता रावण मंदिर हैं जहां लोग आकर दशानन की पूजा करते हैं। हालांकि, यह मंदिर सालभर में बस विजयदशमी के दिन ही खुलता है। दरअसल, इस मंदिर में रावण को शक्ति के रूप में पूजा जाता है। यहां तेल का दिया जलाकर मन्नत मांगने की मान्यता है। दशहरा के दिन जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो सबसे पहले रावण का श्रृंगार किया जाता है।

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 100 वर्ष पूर्व महाराज प्रसाद शुक्ल ने कराया था। दरअसल, रावण एक पंडित होने के साथ साथ भगवान शिव का परम भक्त था। इसलिए शक्ति के प्रहरी के रूप में यहां रावण मंदिर बनाया गया है। ऐसी मान्यताएं है कि रावण भगवान शिव के साथ साथ माता का भी बड़ा भक्त था। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उसे वरदान दिया था कि उनकी पूजा तभी सफल होगी जब भक्त रावण की पूजा भी करेंगे। इसलिए दशहरा के दिन छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद रावण की आरती की जाती है और मंदिर में सरसों का तेल और पीले फूल चढ़ाए जाते हैं।

बिसरख गांव में नहीं किया जाता रावण दहन
नोएडा से करीब 15 किमी दूर बिसरख गांव है। इस गांव के लोग रावण दहन नहीं करते हैं। बल्कि रावण को अपना बेटा मानते है। ऐसी मान्यताएं है कि रावण का जन्म इसी गांव में हुआ था। यहां रावण के पिता ने शिवलिंग की स्थापना की थी। यहां न हो रामलीला होती है और न ही रावण दहन। दशहरा पर यहां रावण की पूजा की जाती है और शस्त्रों की पूजा की जाएगी।

कहा जाता है कि करीब 60 साल पहले यहां रावण दहन और रामलीला का आयोजन किया गया था। इस दौरान गांव के एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। इसके बाद इसे संयोग समझकर दोबारा रामलीला का आयोजन किया गया तो फिर एक व्यक्ति की मौत हो गई। इतना ही नहीं गांव के कुछ हिस्से में आग की घटना घट गई।

रावण के पिता विश्रवा ब्राह्मण थे। उन्होंने राक्षसी राजकुमारी कैकसी से शादी की थी। जिसके बाद रावण का जन्म हुआ। रावण के साथ साथ उनकी बहन सूपर्णखा, कुंभकरण और विभीषण का जन्म भी इसी गांव में हुआ है। शिवपुराण में भी बिसरक गांव का जिक्र किया गया है। मान्यता है कि बिसरख गांव में ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था। उन्होंने यहां अष्टभुजी शिवलिंग की स्थापना की थी। यह शिवलिंग बाहर से केवल 2.5 फीट की है, लेकिन जमीन के नीचे इसकी लंबाई लगभग 8 फीट है। इस गांव में कुल 25 शिवलिंग मिले हैं। वहीं, गाजियाबाद के पुरा महादेव, दूधेश्वरनाथ शिवलिंग और बिसरख स्थित शिवलिंग की स्थापना रावण ने की थी।

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