पुष्पा गुप्ता
_शिवालों की खोज जारी है । इस मुहिम में इबादतगाहों पर वक्र दृष्टि डाली जा रही है। जिस खेमे के लोग इस काम में लगे हैं यह उनका बहुत पुराना अजेंडा है जिसका इस्तेमाल समय-समय पर मास्टर स्ट्रोक की तरह किया जाता रहा है। इसलिए आवाम का जो हिस्सा इन कारगुजारियों को लेकर हैरतज़दा है उसे इतिहास पढ़ना चाहिए।_
यूं भी एक जागरूक नागरिक को अपने देश के इतिहास की सलीके से मालूमात करनी चाहिए। तटस्थता और तार्किकता के साथ । नहीं तो राजनीति का जो धड़ा सत्ता पर काबिज होगा अपने नजरिए से आपके सामने इतिहास पेश करेगा और आप वास्तविक इतिहास से पहचान बढ़ाने की जगह महज उस नजरिए से रूबरू होंगे।
_इतिहास जन-पक्षधर नहीं होता। वह तो जो है वह है। आपके धर्म , जाति , भाषा , क्षेत्र , लिंग से उसका सरोकार नहीं होता न ही वह आपकी रुचि और संवेदना का ख्याल रखता है।_
वह पूरी क्रूरता और नंगेपन के साथ अपने तथ्यों का हाथ थामे आपके सामने खड़ा रहता है।
जनपक्षधरता की अपेक्षा राजनीतिक सत्ता और शासन प्रशासन से होती है। अगर वह जनतांत्रिक है तो तार्किकता और तटस्था के साथ अपने नागरिकों के प्रति संवेदनशील रहेगा यदि नहीं तो सांप्रदायिकता के चिंगारी को हवा दे देगा। इस चिंगारी को शोला बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगता है।
_महज कुछ वक्त में हम जिस तरह से झुलस रहे हैं वह ‘हाथ कंगन को आरसी क्या’ मुहावरे में पैबस्त है।_
बहरहाल अपने देश की साम्प्रदायिक राजनीति के सारे विवाद इन बिंदुओं के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं :
* कश्मीर
* आर्य मूल स्थान
* अयोध्या की प्राचीनता
* कर्मकांड और बौद्ध धर्म
* वैदिक साहित्य को देववाणी मानना
* वैदिक साहित्य की प्राचीनता
* मांसाहार ( बीफ ईटिंग )
* मृतक संस्कार खासकर शव दफ़न का प्रचलन
* निकट संबंधियों में विवाह
_अंतिम तीन सीधे-सीधे इस्लाम के मानने वालों से दो-दो हाथ करते हैं। इनका इस्लाम पूर्व भारत में प्रचलित होना हिंदुत्व वादियों की अस्मिता को कमजोर बनाता है। इसलिए इन पर कलह का माहौल अक्सर पैदा होता है।_
इतिहास में इन सारे मुद्दों पर बहुत विस्तृत और दीर्घकालिक डिबेट रही है। जो भी हिंदुस्तान के इतिहास में रुचि लेता है इनसे वाकिफ़ है। इसलिए ज्ञानवापी , शाही ईदगाह के मसलों को हवा दिए जाने से चौंकिए मत। धार्मिक अस्मिता सहिष्णुता के अभाव में नफ़रत की आँच पर ही पकती , पलती , पनपनती है।
_’अस्मिता’ के पैमाने को बदलने की जरूरत है। उसे ‘धर्म की धुरी’ पर परिक्रमा करवाने से बेहतर है किसी नई धुरी की तलाश कर ली जाए। धर्म को व्यक्तिगत ही रखा जाए तो बेहतर होगा। उसका सार्वजनिक परचम लहराने से बचना होगा।_
[चेतना विकास मिशन)