अग्नि आलोक

असली क्रांतिकारी गांव में रहते हैं, झोपड़ियों में रहते हैं, कारखानों में रहते हैं-भगत सिंह 

Share

मुनेश त्यागी

     आज शहीदे आजम भगत सिंह का 115 वां जन्मदिन है। वे 28 सितंबर 1907 को लायलपुर में पैदा हुए थे। जब हम भारत के शहीदों का नाम लेते हैं तो उनमें सबसे पहले भगत सिंह का नाम याद आता है। भगत सिंह को आजादी की विरासत अपने परिवार से मिली थी क्योंकि उनके पिताजी और चाचा जी भी भारत को अंग्रेजी गुलामी और साम्राज्यवाद से मुक्त कराने के लिए जनता आंदोलन में शामिल थे और कई बार जेल गए थे। भगत सिंह पूरी जिंदगी इसी नक्शे कदम पर चले और भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के संघर्ष में शामिल हो गए। 23 मार्च को उन्हीं का शहादत दिवस था। भगत सिंह के साथ उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को भी 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने जानबूझकर उन को मारने के इरादे से इन तीनों साथियों को फांसी पर लटका दिया था। भगत सिंह ने जेल में राजनीतिक सुधार और वहां फैले भेदभाव के खिलाफ 116 दिन की भूख हड़ताल की। 1926 में भारत नौजवान सभा की नींव रखी, 1929 में असेंबली में बम फेंकने के बाद इंकलाब जिंदाबाद, रूस की क्रांति जिंदाबाद, सोवियत सत्ता जिंदाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, के नारे लगाए। आजादी और समाजवादी क्रांति के दीवाने शहीदे आजम भगत सिंह की याद में यह प्यारा सा लेख आप की खिदमत में पेश कर रहे हैं। आशा है आपको अच्छा लगेगा और भगत सिंह की बातें और विचारों पर आप गौर करेंगे।

     भारत के आजादी के संघर्ष और भारत के क्रांतिकारी के संघर्ष में भगत सिंह और उनके साथी ही सबसे पहले क्रांतिकारी थे, जिन्होंने साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और उसका विकल्प “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाकर पेश किया था और तभी से आज तक इंकलाब जिंदाबाद का नारा मजदूर वर्ग और किसान वर्ग का मुख्य नारा बना हुआ है। यह भगत सिंह की सबसे बड़ी देन है और साम्राज्यवादी नीतियां ही हमारे देश की जनता, किसानों, मजदूरों विद्यार्थियों और नौजवानों की सबसे बड़ी दुश्मन बनी हुई हैं। इनका खात्मा इंकलाब जिंदाबाद यानी समाजवादी क्रांति के द्वारा ही किया जा सकता है। हालांकि इंकलाब जिंदाबाद का नारा सबसे पहले 1921 में मौलाना हसरत मोहनी ने रचा था जिसका बाद में, भगत सिंह और उनके साथियों ने जमकर प्रयोग किया और आज भी भारत की जनता उसका सबसे ज्यादा प्रयोग कर रही है।

      भगत सिंह ने क्रांति के संदेश को जनता में ले जाने के लिए बलवंत, रंजीत और विद्रोही नाम से अखबारों में लेख लिखे। उन्होंने क्रांति के बारे में विस्तृत रूप से लिखा और मार्क्सवादी दर्शन के आधार पर समाजवादी समाज की स्थापना के लक्ष्य को अपने सामने रखा। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में समाजवादी शब्द जोड़कर इसे हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाने का काम भगत सिंह की पहल पर ही किया गया था।

      उन्होंने सीधे सादे और साधारण लेखों के द्वारा क्रांति की अलख जगाने की बात की। उन्होंने मांग की कि समाज में आमूलचूल परिवर्तन और सरकार को अपने हाथों में लेकर किसानों मजदूरों की सरकार बनाने का आह्वान किया और भारत के क्रांतिकारी आंदोलन में यह भगत सिंह ही सबसे पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने एक पार्टी बनाने की बात की थी और जिसका नाम “कम्युनिस्ट पार्टी” रखने की बात अपने लिखों में कही थी। भारत के क्रांतिकारी इतिहास में भगत सिंह की यह भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। 

    भगत सिंह सबसे बड़े पुस्तक प्रेमी थे। उनके साथी शिव वर्मा का कहना था की भगत सिंह के पास हमेशा कोई ना कोई किताब होती थी, वे किताब पढ़ते नहीं थे, निगलते थे। भगत सिंह बहुत बड़े क्रांतिकारी लेखक थे। भारत के क्रांतिकारी इतिहास में अब तक क्रांतिकारियों द्वारा 139 लेख लिखे पाये गए हैं, जिनमें 97 लेख भगतसिंह ने लिखे थे।  क्रांतिकारी भगतसिंह ने कहा था कि क्रांति का अलख जगाने के लिए नौजवानों को गांव-गांव, खेत, खलिहानों में और गंदी बस्तियों में जाना पड़ेगा और लोगों को कांति के लिए तैयार करना होगा। क्रांति को विस्तार देने के लिए पर्चे पंपलेट और लेख लिखने की वकालत की। भाषा ऐसी हो कि वह साधारण आदमी की समझ में आ जाए।

     गदरी बाबाओं की विरासत को आगे बढ़ाते हुए राजनीति को धर्म से अलग किया यह भगत सिंह और उसके साथियों का बहुत बड़ा काम है और धर्म को व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला बताया और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आजादी की मांग की। तमाम तरह के शोषण, गुलामी और  अन्याय को खत्म करने की वकालत की। भगत सिंह और उनके साथी व्यक्ति द्वारा व्यक्ति और देश द्वारा देश के शोषण और गुलामी के खिलाफ थे और उन्होंने इसका कठोर प्रतिवाद किया।भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा देखे गए उनके सपने अधूरे हैं।

      दो फरवरी 1931 को लिखे अपने लेख में भगत सिंह ने कहा था असली क्रांतिकारी गांव में रहते हैं, झोपड़ियों में रहते हैं, कारखानों में रहते हैं। हमारे नौजवानों को उन लोगों को क्रांति के लिए तैयार करने के लिए उनके बीच में जाना होगा और एक पार्टी बनानी होगी जिसका नाम कम्युनिस्ट पार्टी होगा।

     भगत सिंह और उनके साथियों का एक और बहुत बड़ा कारनामा है और वह यह है कि उन्होंने भारत में धर्मनिरपेक्षता की नीव डाली, धर्म को राजनीति से अलग किया और सांप्रदायिक दंगों की मुखालफत की और कहा की किसानों और मजदूरों की यूनियन ही बना कर, वर्ग संघर्ष के आधार पर सांप्रदायिकता की राजनीति को खत्म किया जा सकता है। उन्होंने नौजवानों का आह्वान किया कि वह क्रांति के रास्ते पर चलें और क्रांति की अलख जगाए और क्रांति की चिंगारी को  गांव गांव, गली, मोहल्लों और कारखानों में ले जाएं और जनता को किसानों मजदूरों नौजवानों को क्रांति के लिए जागृत करें और संगठित करें यह उनका सबसे जरूरी और मुख्य काम है इसको किए बिना हमारे देश में क्रांति नहीं हो सकती और जनता को शोषण अन्याय जुल्म भेदभाव और देशी विदेशी गुलामी से छुटकारा नहीं मिल सकता।

     जब भगत सिंह को फांसी लगाने का समय आया तो वे उस समय रूस के महान क्रांतिकारी लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे तो उस समय उनके जेलर से आखिरी शब्द थे कि,,,,, ठहरो एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से बात कर रहा है, यह कहकर उन्होंने वह पर्चा मोड़ा और उस किताब को आकाश में उछाल दिया और फांसी के फंदे की तरफ चल पड़े। आज हमें उस मुड़े हुए सफे से आगे बढ़ने की जरूरत है और शहीदे आजम भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के सपनों को साकार करना है और भारत में एक क्रांतिकारी सरकार की और राज सत्ता की स्थापना करने की जरूरत है।

    भगत सिंह को फांसी लगने से पहले उनके वकील प्राणनाथ मेहता उन्हें क्रांतिकारी लेनिन की एक किताब लेकर आए थे। जब प्राण नाथ मेहता भगत सिंह से मिलकर वापस आने लगे तो उन्होंने भगत सिंह से पूछा कि आपका देशवासियों के लिए अंतिम पैगाम क्या है? तो इस पर भगतसिंह ने प्राणनाथ नेता से कहा था कि देशवासियों को “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” और “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे की बात कहना, यही मेरा अपने देशवासियों के नाम अंतिम पैगाम है। आज सरकार शहीदों के सपनों को रौंद रही है। सच में यह शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके साथियों के सपनों का भारत नहीं है।

     आज हमारा और इस देश के समस्त किसानों नौजवानों और मजदूरों का यह क्रांतिकारी कर्तव्य है कि वह भगत सिंह के नारों साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद के नारों को लेकर जनता के बीच जाएं और उसे क्रांति के लिए जागृत करें और संगठित करें और क्रांति के द्वारा किसानों और मजदूरों की सरकार और सत्ता कायम करें, तभी इस देश से हजारों साल पुराने शोषण, जुल्म, अन्याय, भेदभाव, अत्याचार, गरीबी, गुलामी और जुल्मों सितम का खात्मा और विनाश हो सकता है और इन सब से अस्थाई तौर पर निजात मिल सकती है और मुक्ति मिल सकती है। इसके अलावा और कोई चारा या रास्ता नहीं है। पूंजीवादी समाज और उसकी सरकार, हमारे देश की जनता की समस्याओं को कभी भी हल नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास इनका इलाज है ही नहीं।

Exit mobile version