संजयकनोजिया की कलम से
श्री लालू प्रसाद यादव जी के 5 जुलाई 2021 के वर्चुअल सम्बोधन ने, मानो वर्तमान राजनीति की दशा को सैद्धांतिक दिशा की लौ प्रवज्जलित कर सामाजिक-न्याय समता मूलक समाज की स्थापना के संघर्षरत कार्येकर्ताओं में एक नई तरो-ताज़ा ऊर्जा का संचार उत्त्पन कर दिखाया..ऐसा प्रतीत हुआ मानो उनकी वाणी की गूँज की अनुगूंज, इस लोक में परलोक के हमारे महान आदर्श पुरुषों, गांधी-अंबेडकर-लोहिया-जयप्रकाश नारायण-कर्पूरी ठाकुर-चौ० चरण सिंह-बीजूपटनायक-चौ० देवीलाल के अरमानो को विस्तार देने कि झलक साफ़-साफ़ झलक रही थी..और अंत में अम्बेडकरवादी लोहिया की बोलती तस्वीर उभरकर एक नई क्रांति का उद्धघोष करती दिखी..!
जगविदित है कि अंबेडकर और लोहिया समकालीन थे, दोनों का जातिवाद के विरोध का एक ही एजेंडा था..लोहिया ने जाति के विरोध संघर्ष में अंबेडकर से ही प्रेरणा ग्रहण करते हुए अंबेडकर की परियोजनाओं को आगे ही नहीं बढ़ाया बल्कि अधिक व्यावहारिक व सकल स्वरुप भी दिया..1960 के आखिरी दौर में में लोहिया ने तब की जनसंघ जो आज भाजपा जानी जाती है और वामपंथियों को, कांग्रेस के विरोध में एक मंच पर खड़ा कर दिया था..वर्तमान में भाजपा के विरोध में सभी सामान विचारधाराओं वाली धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को एक मंच पर लाने की शक्ति केवल श्री लालू प्रसाद जी में ही है..ऐसा नहीं कि भाजपा विरोध में ऐसे प्रयास पहले नहीं हुए लेकिन इसे दुर्भाग्य ही समझा जाए कि मंच पर तो सब एक हो जाते हैं परन्तु चुनाव के आने के वक्त टिकटों के बॅटवारे को लेकर जो अहम टकराते हैं और यही टकराहट विपक्ष को लक्ष्य-विहीन बना डालती है..जिसका सीधा-सीधा लाभ भाजपा को मिलता आ रहा है..!
वर्ष 1989 के बाद देश में दो धूरियों ने एक साथ जन्म लिया “मंडल और कमंडल” और दोनों धूरि एक साथ चलीं..परन्तु मंडल की धूरि ने कांग्रेस की अल्पमत की सरकार को तीन बार समर्थन भी दिया (नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह)..मंडल और कमंडल की धूरियों के प्रयोगों ने देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाब पैदाकर दिया था..जहाँ मंडल ने देश की कुल आबादी के 85% मतदाताओं को सामाजिक न्याय व समतामूलक आधार पर प्रभावित कर रही थी तो दूसरी ओर कमंडल देश की कुल आबादी के 80% मतदाताओं को हिंदुत्व के नाम पर आकर्षित कर रही थी..परन्तु मंडल धूरि के असली नायक बिहार प्रदेश के श्री लालू यादव उभरकर आए..उन्होंने कमंडल के रथ को रोका ही नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन ही कर डाला और उन बेजुबान छोटी-छोटी दलित-पिछड़ी-आदिवासियों जातियों के लोगों को जुबान दे डाली जो कभी सामंतवादियों की कठपुतली बनकर अपने-अपने जीवन को खींच रहीं थी तथा उनको उनके अधिकारों की पहचान का सफल जन-जागरण भी छेड़ दिया..साथ-साथ नक्सलवादी और सामंतियों की रणवीर सेना जैसे आतंकी संगठनो को अंकुश लगाया बल्कि पनपने का मौका ही खत्म कर दिया..इससे कमंडल की मनुवादी सोच तिलमिला गई और इस बेगैरत सोच ने, लालू जी के खिलाफ षड्यंत्र रचने शुरू कर दिए और बिहार में लालू जी के राज को जंगलराज कि उपमा दे डाली, लालू जी के विनोदी शैली को जोकर-ग्वाला-दूधवाला-नचनियां आदि शब्दों का प्रयोगकर उनके शासन को बदनाम करते रहे..जब भी इस ब्राह्मणवादी सोच का मन नहीं भरा तो इन्होने साजिश के तहत लालू जी पर झूठे मुक़दमे लदवा दिए (जिसका लालू जी को अपनी राजनीति और सम्मान का बहुत बड़ा खामियाजा भी चुकाना पड़ा है) इसके बावजूद भी जब लालू इनके काबू में नहीं आ पाए तो फिर इन बेगैरतों कमण्डलीयों ने, लोहिया के उन नालायक-नाकारा जिनको सत्ता की ज्वलंत महत्वकांक्षा की पिपासा सदैव सताती रहती थी, ऐसे राका-शाका और महाजंगलराज के जनक खलनायक ठग कुमार जैसों की बैशाखी का सहारा लेकर लालू को सत्ता से बहार कर दिया..लेकिन तब भी लालू अडिग रहे समय के थपेड़ों ने लालू और जनता के मध्य कुछ-कुछ वक्त की दूरी जरूर बना दी थी..परन्तु तेज-तेजश्वी और मीसा जी ने बिहार के तमाम वरिष्ठ नेताओं को व कार्येकर्ताओं को लेकर लालू की प्रयोगशाला की लालटेन बुझने नहीं दी..लालू के रहते कमंडल की विचारधारा कभी बिहार में अपनी जड़ें ना जमा पाईं..यदि आज कुछ कमण्डलीये साँसे ले भी रहे हैं तो वो वो ठगकुमार जैसे खलनायक की बदौलत..!
बात गौर करने लायक है बल्कि बेहतर ही होगा अन्य राज्यों के उन दलों के लिए बल्कि इसे स्वीकार भी किया जाए और साथ-साथ सावधान भी हुआ जाए..कि सामाजिक न्याय व समता के 85% के आधार वाली शक्ति से, 80% हिंदुत्व कि शक्ति देश के अन्य राज्यों में कैसे आगे बढ़ने में कामयाब हो गई ?..शायद इसलिए भी कि भाजपा के हिंदुत्व के आधार पर अन्य सहयोगी संगठनो में सबसे असरदार संगठन आरएसएस है..बल्कि इस संगठन को एक प्रयोगशाला समझा जाए तो कोई अतिश्योक्ति ना होगी, आरएसएस के प्रयोग होते ही रहते हैं..वर्ष 1974 के व्याख्यानमाला के उस कार्येकर्म के, बाला जी देवरस के व्याख्यान को समझा जाए..उसी व्याख्यान के बाद आरएसएस के माध्यम से भाजपा ने अपने राजनैतिक चरित्र में अमूल-चूल परिवर्तन करना शुरू कर दिया था और आरएसएस तथा भाजपा दलित-पिछड़े-आदिवासी वर्ग में काम शुरू कर दिया था और तभी से भाजपा ने अपनी ब्राह्मण-बनिया वाली छबि में सुधार लाकर हिन्दुओं कि पार्टी का चरित्र सामने लाना शुरू किया..इसी कारण शुरूआती दौर में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ना शुरू हुआ और चुनावों में कुछ-कुछ स्थानों पर वो अपनी जमानत भी बचा लेती थी, तथा उसके संगठन के निर्माण में वृद्धि भी होने लगी..संगठन कि शक्ति को आजमाने के लिए बड़े ही रहस्यमय तरीके से कि कम से कम समय में हम एक अफवाह को कितनी दूरी तक पहुंचा सकते हैं, वर्ष 1977 के मध्य एक प्रयोग किया था..प्रयोग में इन लोगों ने लोकनायक जयप्रकाश जी की मौत की अफवाह उड़ा दी..ये खबर इतनी तेजी से फैली की दूरदर्शन एवं रेडियों तक ने इस मौत की घोषणा कर दी यहाँ तक की विदेशों तक से शोक-सन्देश आने शुरू हो गए थे..लेकिन एक डेढ़ घंटे पश्चात फिर से दूरदर्शन और रेडियो ने माफ़ी मांगते हुए इस मौत की खबर का खंडन किया और इसे एक अफवाह बताया..ठीक इसी तरह की एक अफवाह 21 सितम्बर 1995 को उड़ाई गई कि गणेश दूध पी रहे है..इसके आलावा आरएसएस ने पिछले 30 वर्षों से संघ.लोक.सेवा.आयोग की परीक्षा का एक विशाल कोचिंग सेंटर खोल रखा है..समझने की बात है कि यहाँ से निकले पास हुए विद्यार्थियों कि वैचारिक निष्ठाएं कहाँ पर होंगी, जबकि ना जाने कितने बैच यहाँ से निकल भी चुके हैं..इन्होने शिक्षा से सम्बंधित अधिकतर फॉउण्डेशनो को अपने आधीन कर रखा है चाहे वो विवेकानंद फाउंडेशन हो या रिलायंस आदि-आदि..हर लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर अपना कब्ज़ा कर लिया है या दवदबा बना रखा है..बड़े ही गुप्त तरीके से मंडल के लोगों का सोशल-इंजीनियरिंग का हथियार चुराकर सामाजिक न्याय कि तीन शक्तियों यादव-जाटव-मुसलमान का डर अन्य अति दलित-पिछड़ी जातियों को ये समझकर कि तुम्हारे अधिकारों कि सारी मलाई ये तीन शक्तियां खातीं है और इन छोटी जातियों को वो हिंदुत्व के आधार पर साथ लेकर चुनाव लड़कर वो सरकारें बनाती हैं..इन छोटी जातियों की हिन्दू आबादी के मुताबिक 40 से 45 फीसदी आबादी है..जब ये हिंदुत्व के आधार पर भाजपा के साथ होती है तब मुसलमान वोट की पहचान गौण हो जाती है..अब नया प्रयोग जन-संख्या नियंत्रण पर किया जा रहा है, मेरा मानना है की तमाम विपक्ष एकजुट होकर गंभीरता से इसकी गहराई के महत्व को समझते हुए जन-जागरण कर दे तो जन-संख्या नियंत्रण भाजपा के लिए भष्मासुर की कथा साबित हो सकती है..हिंदुत्व-राष्ट्रप्रेम-अल्पसंख्यकों का भय व उनके खिलाफ नफरत पैदाकर आदि-आदि कुचक्रों का प्रयोग कर ये सत्ता में बने हुए हैं..अंग्रेजी में छपने वाले कॉलम या इंग्लिश स्पीकिंग इलीट का बड़ा हिस्सा अब मोदी में ही राष्ट्रीय सहमति देखता है, समझने वाले समझ लें यदि एक चुनाव मोदी और जीत गया तो स्थिति वैसे ही हो जायेगी जो एक समय नेहरू के साथ होती थी..!
सत्ताधारियों को केवल बिसात बिछानी होती है जबकि विपक्ष को अपनी बिसात सहित सत्ता की बिछाई बिसात की काट भी ढूंढनी होती है और समाज को अहित पहुंचाने वाले मुद्दों पर संघर्ष कर समाज को उनके हक़-अधिकारों के प्रति जागृत भी करना पड़ता है..सांस्कृतिक क्षेत्र में भाजपा कोई खास असर नहीं रखती है वो केवल बात करती है या इनका ढोंग रचाती है..वैसे तो स्वार्थी बुद्धिजीवी वर्ग अक्सर सत्ता की ओर झुका रहता है इसीलिए पिछले 7 वर्षों से इन सारी तख़लीफ़ों से दूर अभिजातीय संस्कृति के ग्लैमर को बढ़ाने वाला साहित्य रचा जा रहा है..लेकिन एक बड़ा बुद्दिजीवी-विद्वान-साहित्यिक-लेखन-नाटक-कला-कविता-निबंध का वर्ग जो आम जनता के संघर्ष को प्रमुखता देने और जनसंघर्षों को वाणी देने वाला आज भी है..जबकि यही वर्ग अपनी योग्यता अनुसार, रोटी-बेरोजगारी-महंगाई-नारी उत्पीड़न-शोषितों के उत्पीड़न-व्यथा-अत्याचार-अवसर आदि हेतू नागरिकों की जिंदगी की तख़लीफ़ों का दर्द झलकाता है..ये वर्ग सत्ता की आलोचना और ताक़तवर लोगों के ख़िलाफ़ बोलने से इसलिए बेबसी महसूस करता है कि विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली नहीं दिखता..हम सब आज इसलिए सौभाग्यशाली है कि आज हमारे बीच लालू यादव हैं..राजनीति कि अपनी दूसरी पारी के नायक लालू जी एकमात्र नेता हैं जो देश के तमाम विपक्षी दलों को एक सूत्र में पिरोकर क्रांतिकारियों का एक मंच बना सकते हैं..लालू जी ही है जिन्होंने अपनी पहली राजनैतिक पारी में 5-5 प्रधानमंत्रियों को बनाने में सहयोग किया है..अपनी दूसरी पारी में तो लालू जी सुपर किंग-मेकर कि छबि लेकर उभरे है..लोहिया जी ने अपनी पारी शून्य से शुरू की थी परन्तु अनुभवी-दूरदर्शी-राजनीति के चाणक्य लालू जी के जीवन में उनकी दूसरी पारी में बिहार से तेज-तेजशवी, उ० प्र से अखिलेश यादव और जयंत चौधरी, झारखण्ड से शिबू सोरेन, जैसे ऊर्जावान-ओजशवी-जोशीले युवा क्रांतिकारियों की टीम है तो हरियाणा-उड़ीसा-कर्णाटक से जनता दल शाखाओं के नेताओं के अनुभव का साथ, जम्मू-कश्मीर से गुपकार संगठन तो बंगाल-महाराष्ट्र से ममता-शरद पवार और उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु-आंध्रा-तेलंगाना के क्षेत्रीय दल तो दिल्ली कैसे पीछे रहेगी, वामपंथियों का सहारा और यदि कांग्रेस भाजपा-मुक्त भारत का लक्ष्य को साध ले तथा बड़ी पार्टी के गुमान एवं फ्रंट-फुट पर खेलने की जिद को त्याग दे और सीटों के बंटबारे पर अपना उदार दृश्टिकोण रखे तो राजस्थान-मध्यप्रदेश-आसाम-पंजाब-केरला-उत्तराखंड आदि वे राज्य जहां कांग्रेस पहले व दूसरे स्थान पर है, नार्थ-ईस्ट जैसे देश के सभी राज्यों में लालू जी के नेतृत्व में अलख जलाई जा सकती है..वही ऐसे वे साथी जो सदैव मजदूरों-आदिवासियों-किसानो के मध्य रहकर सिर्फ इस आशा पर संघर्षरत रहते और लड़ते हुए एक विश्वाश संजोये इस नारे का उद्धघोष करते है कि लड़ेंगे और जीतेंगे..इस तरह के छोटे राजनैतिक दल व सामाजिक संगठन जो समाजवाद व बहुजन मिशन-समागम-आर्मी या ट्रेड यूनियन के माध्यम से समाज में सामाजिक न्याय व समता का बिगुल फूंके हुए है ऐसे विचारक और लड़ाके जो नित्य भाजपा-मुक्त भारत का सपना लेकर जागते हैं..इन सब का साथ लेकर प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ क्रांति को ही चेहरा और क्रांति को ही विकल्प बनाया जाए..!
प्रख्यात राजनैतिक वैज्ञानिक रजनीकोठरी के अनुसार कि भारत में दल नहीं जातियां चुनाव लड़ती है..लालू जी के नेतृत्व में आने वाले दलों को भी चाहिए कि वे उन जातियों के संगठन व उन अदृश्य समुदायों को जो सदा उपेक्षित रहतीं है जिन्हें टिकट नहीं मिलता ना ही आरक्षण का लाभ ना सम्मान ना राजनैतिक नुमाइंदगी ना शिक्षा में प्रोत्साहन ना नौकरियां ये वो वर्ग हैं जो हर लाभ से सदा विमुख ही रहते है..उनका भरोसा पुनः जीतना होगा, इन लोगों की घर वापसी हो सकती है क्योकिं भाजपा में इनका दम घुटता है और भाजपा ने ही अपने शासन के हर राज्य में इनके मौलिक अधिकारों को नुक्सान पहुँचाया..ये वर्ग आज भी अंबेडकर और लोहिया कि दिखाई दिशा को ही अपनी असली राह समझता है..बस जरुरत है इनको दिए वचन को सत्ता पाने के बाद निभाने की..दूसरा विपक्ष को, जनता में जाकर यह भी समझाना होगा की भाजपा की हार हिंदुत्व की हार नहीं है..हिंदुत्व अपनी जगह पर ज्यों का त्यों ही बना रहेगा..कमंडल के लोग हिंदुत्व का नारा देकर हिन्दुओं को ही छलते आए है, क्या महंगाई, स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक मार, बढ़ती बेरोजगारी, किसी भी तरह के सांप्रदायिक दंगों का, बढ़ते अपराधों, लूट आदि आदि का असर हिन्दुओं पर नहीं पड़ता ?..जबकि मंडल की विचारधारा दलित-पिछडो को अवसर देकर हिंदुत्व का ही सम्मान करती है..अभी भी समय है कि विपक्ष एकजुटता का परिचय दे और “मोदी बनाम क्रान्ति” (यानी जनता ) की लड़ाई का अभियान छेड़ दे..जीत होने पर संयुक्त-मोर्चा की तर्ज़ पर नेता भी चुन लिया जाएगा..!!
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लेखक
सक्रिय राजनैतिक कार्येकर्ता है