प्रखर अरोड़ा
कोई हिंदू-घर में पैदा हो गया तो हिंदू है; मां-बाप ने एक आवरण ओढ़ा दिया। हिंदू-घर में पैदा हो गया तो वेद पढ़ता है, गीता को पूजता है।
यही बच्चा जैन-घर में पैदा होता तो इसे कभी फिक्र न रहती गीता की और वेद की और यह कभी हिंदू-मंदिर न जाता। यह जैन-मंदिर गया होता। इसने महावीर को पूजा होता। इसके मां-बाप ने इसे दूसरे कपड़े ओढ़ा दिए होते।
आप जो अभी हो, उधार हो, नगद नहीं। कृत्रिम हो। दूसरों ने आप पर कुछ रंग दिया है; अभी आपने अपना रंग जाना नहीं। चेहरे पर दूसरों ने मुखौटे लगा दिए हैं और आईनों के सामने खड़े होकर उन्हीं मुखौटों को देखकर समझते हो यह मेरा चेहरा है।
यह आपका चेहरा नहीं है। आपका चेहरा और परमात्मा का चेहरा भिन्न ही नही। आपका चेहरा वही है जो जन्म के साथ लेकर आये थे, जिसका कोई नाम था; न जिसका कोई रूप; न जो हिंदू था, न मुसलमान न ईसाई न बौद्ध, जो न शूद्र था न ब्राह्मण जो बस था वह था।
वह रूप या वह अरूप अब भी आपके भीतर मौजूद है। कितने ही कपड़े पहना दिये गये हों, आपका स्वभाव अब भी उन कपड़ों के भीतर मौजूद है। अपनी नग्नता में अब भी अगर जाग जाओ तो उसे जान लो जो आपकी निजता है। मगर आपने तादात्मय कर लिया है।
वस्त्रों को जोर से पकड़ लिया है। कहते हो यही वस्त्र मैं हूं! वहीं भूल हो गई है, वहीं चूक हो गई है।
अपने नाम को समझ लिया कि यह मैं हूं। नाम लेकर आये थे? कोई तो नाम लेकर आता नहीं है। अपनी भाषा को समझ लिया कि यह मैं हूं। भाषा लेकर आये थे? कोई भाषा तो लेकर आता नहीं। न कोई धर्म लेकर आता है, न कोई देश लेकर आता है।
ये सब बातें सीखा दी गई हैं। ये तोतों की तरह रटा दी गई हैं। तोते बन गये हो और बड़े अकड़ रहे हो, क्योंकि वेद मंत्र याद हैं, क्योंकि कुरान की आयतें कंठस्थ है।
अपनी अकड़ तो देखो! जरा भी होश नहीं है कि जब आए थे, न कुरान थी पास न वेद थे पास। आप थे, एक कोरे कागज थे!
जब कोरे कागज थे तब परमात्मा से जुड़े थे। जब से आपका कागज गूद दिया गया है तब से समाज से जुड़ गये हो। तब से अपने से टूट गये हो और भीड़ से जुड़ गये हो। तब से भीड़ के हिस्से हो गये हो, आपकी आत्मा खो गई है।
झूठी पहचान हटाओ तब तो खुद को पाओ. खुद को गुम किये रहोगे तो ख़ुदा को कौन पायेगा और भला कैसे.