23 नवंबर को महाराष्ट्र की सत्ता में कौन आएगा? ये सवाल महाराष्ट्र और राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले हर शख़्स ने ज़रूर जानना चाहा होगा. इस समय पूरे प्रदेश में विधानसभा चुनाव की चर्चा चल रही है.
इस चुनाव में कौन सा फैक्टर काम करेगा? किन जातीय समीकरणों का गणित चलेगा? मराठवाड़ा में क्या होगा? विदर्भ में कौन आगे होगा? कौन जीतेगा मुंबई की जंग? अख़बार और मीडिया में अब ऐसे कई सवालों के जवाब दिए जा रहे हैं.
कुछ ही महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को मिली सफलता के बाद कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना था कि यही जीत लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव में भी दोहराई जा सकती है.
लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने राज्य भर में विभिन्न योजनाओं को लागू करके चुनाव में वापसी करने की कोशिश की है.
इन वजहों से नतीजा किसके पक्ष में जाएगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा. बीबीसी मराठी ने यही जानने के लिए महाराष्ट्र के प्रमुख राजनीतिक विश्लेषकों और संपादकों से बात की कि चुनावी हवा वास्तव में किसके पक्ष में है.इनमें वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुहास पलशिकर, प्रकाश पवार, लोकसत्ता के संपादक गिरीश कुबेर, वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले और राही भिडे शामिल हैं.
ये विशेषज्ञ विधानसभा चुनाव को लेकर क्या सोचते हैं? नतीजे किसके पक्ष में हो सकते हैं? अभी चुनावी अभियान का नेतृत्व कौन कर रहा है? ऐसे कई सवालों के जवाब हमने इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश की है.
क्या किसी को बहुमत मिलेगा?
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक डाॅ. सुहास पलशिकर कहते हैं, ”बीजेपी 2014 के बाद महाराष्ट्र में एक प्रमुख पार्टी बनकर उभरी. इसलिए, भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में भी प्रमुख पार्टी के रूप में उभरने की कोशिश करेगी. एक और संभावना यह है कि जिस तरह से गठबंधन और गठबंधन की राजनीति अब की जा रही है यह राजनीति अगले पांच से दस साल तक जारी रह सकती है.”
“तीसरी संभावना यह है कि राज्य में कई छोटी पार्टियां उभरी हैं, इसलिए नतीजों के बाद एक बड़ी पार्टी और ऐसी छोटी पार्टियां एक साथ आकर एक नया समीकरण बना सकती हैं.”
इस चुनाव में कौन से मुद्दे निर्णायक हो सकते हैं? इस सवाल पर पलशिकर ने कहा, “अगर हम अर्थव्यवस्था को देखें तो हमें महंगाई, बेरोज़गारी नज़र आती है. महाराष्ट्र में कृषि क्षेत्र की दुर्दशा यह न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, बल्कि इसका असर शहरी क्षेत्रों पर भी पड़ता है.”
पलशिकर कहते हैं, ”ये शहर उन लोगों की वजह से बढ़ रहे हैं जो कृषि में आजीविका की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से आए थे. महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा प्रवासन होता है जिसे इन-माइग्रेशन कहा जाता है. इसलिए, कृषि का मुद्दा शहर में भी महसूस किया जाएगा.”
पलशिकर ने कहा, “तीसरा प्रमुख मुद्दा है कि मराठा समाज क्या करने जा रहा है. फिर चौथा मुद्दा है कि ये चार, पांच, छह दलों का गठबंधन कैसा होगा. उनका समीकरण और उनके वोटों का ट्रांसफर किसी उम्मीदवार को किस तरह से होगा. किसी एक पार्टी के वोटर गठबंधन की दूसरी पार्टी के लोग को वोट देंगे?”
डॉ. सुहास पलशिकर ने कहा, “मुझे लगता है कि लोग जब बात करते हैं तो अलग-अलग चीज़ों के बारे में बात करते हैं, लेकिन दिन के अंत में आजीविका का मुद्दा महत्वपूर्ण होता है. लोगों के मन में यह बात कहीं न कहीं रहेगी कि वर्तमान समय में लोगों का जीवन खुशहाल नहीं है. हालाँकि यह सच है कि कोई भी राजनीतिक दल हमें यह नहीं दे रहा है.”
पलशिकर ने कहा, “इसलिए मुझे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी, शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस इस नाराज़गी को महसूस कर सकती हैं. अगर आप विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की घोषणाओं को देखेंगे, तो आपको एहसास होगा कि यही कारण है… क्योंकि वे भी जानते हैं कि लोग नाराज़ हैं और इससे उन्हें नुकसान हो सकता है.”
इन सभी मुद्दों के आधार पर चुनाव में किसके लिए मुश्किल नज़र आ रही है? इस सवाल का जवाब देते हुए डॉ. पलशिकर ने कहा, ”अभी ऐसा नहीं लगता कि लोग किसी पार्टी के पक्ष में झुक रहे हैं. लोकसभा चुनाव में इन दोनों पार्टियों को मिले वोटों के बीच एक फीसदी का अंतर था. दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों की ताक़त एक जैसी थी. इसलिए संभावना है कि अधिकांश मुकाबले करीबी होंगे.”
‘परिणाम क्या होगा यह कोई नहीं बता सकता’
विधानसभा चुनाव के बारे में बात करते हुए लोकसत्ता के संपादक गिरीश कुबेर ने कहा कि उन्हें लगता है कि यह चुनाव ऐतिहासिक रूप से बहुत जटिल हो गया है.हर चुनाव क्षेत्र में कम से कम 6-7 प्रभावी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए कुबेर को लगता है कि इस चुनाव की भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता.
महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच आंतरिक प्रतिस्पर्धा के बारे में बात करते हुए कुबेर कहते हैं, ”महाराष्ट्र की राजनीति में पहली बार हर राजनीतिक दल को लगने लगा है कि उसकी अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की सफलता से ज़्यादा उसकी साथी पार्टी के उम्मीदवारों की विफलता महत्वपूर्ण है.'”
“मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को लगता है कि बीजेपी को ज़्यादा सीटें नहीं मिलनी चाहिए जबकि यही हाल बीजेपी और अजित पवार का भी है. इसलिए अपनी ही पार्टी के उम्मीदवारों को चुनने के बजाय सहयोगी पार्टी के उम्मीदवारों को हराने के लिए अधिक प्रयास किए जा रहे हैं.”
चुनाव में अहम मुद्दों के बारे में बात करते हुए कुबेर ने कहा, ”इस चुनाव में सोयाबीन, गन्ना, कपास और प्याज के मुद्दे अहम हो सकते हैं. इन फसलों को उगाने वाले किसानों की समस्याएं इस चुनाव के नतीजे पर असर डाल सकती हैं.””इसके साथ ही पूरे राज्य में भड़के मराठा बनाम ओबीसी विवाद का भी असर पड़ सकता है.”
गिरीश कुबेर ने कहा, “एक और महत्वपूर्ण मुद्दा जिसे नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, वो है बढ़ते शहरीकरण की वजह से पैदा होने वाले रोज़गार के अपर्याप्त अवसर. महाराष्ट्र में पिछले कुछ दशकों में कोई नई फैक्ट्री शुरू नहीं हुई है. महाराष्ट्र का ज़ोर सेवा क्षेत्र पर है और इसमें लगे व्यक्तियों का रोज़गार स्थायी नहीं है और इसकी कोई सम्मानजनक स्थिति भी नहीं है. इस वजह से जिन मतदाताओं को ऐसा रोज़गार नहीं मिला वो इस बार के चुनाव में क्या करेंगे, बहुत कुछ उस पर निर्भर करेगा.”
महिला मतदाताओं और ‘लाड़की बहिण’ योजना के बारे में बात करते हुए गिरीश कुबेर ने कहा, “दुर्भाग्य से, महाराष्ट्र और देश की पुरुष-प्रधान राजनीतिक व्यवस्था में महिलाओं की राजनीतिक राय को ज़्यादा महत्व नहीं दिया जाता है. इसलिए, ऐसा नहीं लगता है कि इस योजना का फ़िलहाल इतना बड़ा असर होगा. इस वजह से यह 1500 रुपये महिलाओं को उनकी राजनीतिक राय बनाने में सक्षम होगा, फ़िलहाल ऐसा लगता नहीं है.”
गिरीश कुबेर ने कहा, “यह एक तरह से अच्छी बात होगी अगर महिलाएं यह पैसा लेने के बाद भी महायुति को अस्वीकार कर देती हैं. क्योंकि इससे वोट पाने के लिए ऐसी घोषणाओं की परंपरा टूट सकती है. और ऐसी योजनाएं कमज़ोर हो सकती हैं.”
इस चुनाव में कौन सा मुद्दा सबसे अहम होगा, इस पर कुबेर ने कहा, ”फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति में सफलता शरद पवार, महायुति और महाविकास अघाड़ी में से किसी एक के गणित पर निर्भर करेगी. अगर महाविकास अघाड़ी सत्ता में आती है तो यह कहा जा सकता है कि लोगों ने शरद पवार फ़ैक्टर को स्वीकार कर लिया है. अगर महायुति जीतता है तो यह कहा जा सकता है कि मतदाताओं ने शरद पवार फ़ैक्टर को ख़ारिज कर दिया है. दरअसल अभी किसी भी राजनीतिक दल या नेता का क्या होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है.”
यह चुनाव एक ‘अभूतपूर्व लड़ाई’ है- निखिल वागले
वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने कहा, ”मैं आगामी महाराष्ट्र चुनाव के लिए दो शब्दों का इस्तेमाल करूंगा और वह है ‘अभूतपूर्व अराजकता.’ महाराष्ट्र की राजनीति के पतन का प्रतिबिंब हम इस चुनाव में देख सकते हैं. अगर आप चुनाव में उम्मीदवारों की सूची देखेंगे तो आपको यह बात नज़र आएगी.”
“महाराष्ट्र में बगावत कोई नई बात नहीं है, 1995 के चुनाव में पैंतालीस निर्दलीय उम्मीदवार चुने गए थे और मनोहर जोशी की सरकार बनी थी. लेकिन इस बार बागी ज़्यादा होंगे, जो ख़ुद तो खड़े होंगे लेकिन दूसरे उम्मीदवार को जिताने के लिए.”
चुनाव में हुई धनबल के बारे में वागले ने कहा, ”अभी अरबों रुपये मिले हैं. अगर चुनाव आयोग की जांच में सौ करोड़ रुपये पाए गए, तो कम से कम पांच सौ करोड़ या उससे अधिक बाहर गए हैं. महाराष्ट्र चुनाव में तमाम गड़बड़ियां हुई हैं. महाराष्ट्र में चुनावी कदाचार की परंपरा रही है, यहां तक कि यशवंतराव चव्हाण पर भी आरोप लगे थे कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में मतपेटियां उनके ही कार्यकर्ताओं ने लूट ली थीं, लेकिन अब कदाचार का स्तर कम हो गया है. मुझे लगता है कि इस साल के चुनाव में अभूतपूर्व गुंडागर्दी होगी.”
वागले ने दावा किया, ”इस चुनाव में सड़क के गुंडों का इस्तेमाल किया जाएगा. इस चुनाव में पैसे और अपराधियों का बड़ा प्रभाव हो सकता है. अगर आप उम्मीदवारों की सूची देखें तो इसे सिर्फ भाई-भतीजावाद कहा जा सकता है. इस तरह से उम्मीदवार खड़ा कर ये नेता यही संदेश दे रहे हैं कि साधारण कार्यकर्ताओं को जीवन भर साथ ही लेकर चलना चाहिए. अब देखिए शरद पवार के घर में कितने सांसद और विधायक हैं. मेरा मानना है कि नेताओं को उदाहरण स्थापित करना चाहिए. आपके पास युवा कार्यकर्ता हैं, आपको परंपरा तोड़नी होगी और उन्हें मौका देना होगा, लेकिन इसके बजाय परिवारों का प्रभाव बढ़ गया है.”
क्या लोकसभा चुनाव का नतीजा दोहराया जा सकता है? इस सवाल का जवाब देते हुए निखिल वागले ने कहा, ”लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की सफलता जैसा एकतरफा नतीजा विधानसभा में नहीं होगा. इसका कारण यह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में यात्रा के दौरान मैंने जो माहौल देखा था वो विधानसभा चुनाव में अब दिखाई नहीं दे रहा है. महाविकास अघाड़ी के प्रति जो माहौल था, वह मुझे नहीं दिखता.”
निखिल वागले कहते हैं, “महाविकास अघाड़ी ने पांच महीनों में अपनी गति खो दी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद महाविकास अघाड़ी के नेता आलसी हो गए. पांच महीनों में उन्होंने उस माहौल को बनाए रखने के लिए कुछ नहीं किया. ये नेता वहां बैठकर अपने अहंकार का बखान कर रहे थे. उनकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ीं. इसलिए लोकसभा के समय महाविकास अघाड़ी में जो एकता थी, वह अब नहीं रही.”
क्या महायुति गठबंधन में मतभेद नहीं हैं? इस सवाल पर निखिल वागले ने कहा, “महायुति गठबंधन में भी मतभेद हैं लेकिन अमित शाह वहां डंडा लेकर बैठे हैं. उनके अंदर एक डर है, उनके अंदर एक आतंक है, इसलिए कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता. महाविकास अघाड़ी में कोई किसी को नहीं पूछता. शरद पवार का अलग कैंप है, उद्धव ठाकरे का अलग कैंप है. उद्धव ठाकरे बनाम नाना पटोले चल रहा है.”
“आपको (महाविकास अघाड़ी) मुसलमानों, दलितों ने वोट दिया था. आपने उनके लिए क्या किया? मुसलमानों ने जीवन में पहली बार उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी को इतने वोट दिए. मुस्लिम और साठ फीसदी मराठी वोटों के कारण मुंबई में उद्धव ठाकरे की ताकत बढ़ी. आपने मुसलमानों के लिए क्या किया है? जब विशालगढ़ में घर जलाये गये थे तब भी आप वहाँ नहीं गये थे.”
निखिल वागले ने कहा, “महाविकास अघाड़ी के पास यह साबित करने का मौका था कि वह महायुति से कैसे अलग हैं. उन्होंने यह मौका गंवा दिया. दूसरी तरफ महायुति ने लोकसभा चुनाव में हार से उबरने की कोशिश की. उनकी कल्याण योजना ही उनका सबसे बड़ा हथियार है. जिनमें लाड़की बहिण, एचपी पंप, किसानों के लिए बिजली माफ़ी जैसी योजनाएं शामिल हैं. जब सरकार के खज़ाने में पैसे नहीं थे तब उन्होंने लाड़की बहिण योजना के लिए 46,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने इस योजना का खूब प्रचार-प्रसार किया.”
आख़िर में निखिल वागले ने कहा, “इस योजना के प्रचार-प्रसार के कारण लोगों को लगा कि महायुति कुछ दे रही है. इसके जवाब में महाविकास अघाड़ी ने कुछ नहीं किया. मुझे लगता है कि इस बार शिंदे को लोकसभा से ज्यादा सफलता मिलेगी क्योंकि उनके प्रति थोड़ी सहानुभूति है.”
महायुति को होगा बड़ा नुक़सान- राही भिडे
वरिष्ठ पत्रकार राही भिडे ने कहा, “पहली बात तो यह है कि महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच सत्ता संघर्ष के बारे में किसी को कुछ पता नहीं है. हर कोई बड़ा होने का दावा कर रहा है. महायुति को लगता है कि लाड़की बहिण योजना से महिलाओं के बहुत सारे वोट मिलेंगे. लेकिन मामला ऐसा नहीं है. मेरे संपर्क में रहने वाली महिलाओं का कहना है कि वो उद्धव ठाकरे के बदले हुए संकेत को समझती हैं.”
राही भिडे ने कहा, “लोग जागरूक हो गए हैं. वे निश्चित रूप से जानते हैं कि किसे वोट देना है. महायुति को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि जो मध्य प्रदेश में हुआ वह महाराष्ट्र में किया जा सकता है. महाराष्ट्र अन्य राज्यों से अलग है. महाराष्ट्र की अपनी स्थिति है इस राज्य को एक प्रगतिशील राज्य कहा जाता है. लेकिन इस राज्य में कई बड़े झगड़े और दंगे हुए हैं, लेकिन आख़िरकार महाराष्ट्र की मुख्य संरचना नहीं बदली है.”
राही भिडे ने कहा, “देवेंद्र फडणवीस को सत्ता बरकरार रखने के लिए क्या-क्या कारनामे करने पड़े. सभी लोग गुवाहाटी चले गए. पहले भी बगावत हुई थी. 1999 में शरद पवार ने बगावत की थी.”
शरद पवार के बारे में बात करते हुए राही भिडे ने कहा, ”महायुति सरकार पहले भी एक कार्यकाल से ज़्यादा नहीं चली है. उन्हें सिर्फ़ एक टर्म मिला. मुझे लगता है कि बीजेपी को बड़ा नुक़सान होने वाला है.”
“जाति फैक्टर रहेगा अहम- डॉ. प्रकाश पवार
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. प्रकाश पवार ने कहा, “महाराष्ट्र चुनाव में जाति सबसे बड़ा फैक्टर बनने जा रही है. महाराष्ट्र में जातिवाद का कोई रूप नहीं है लेकिन आरक्षण और क्षेत्र के कारण जाति बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. इसलिए अगर आप मराठवाड़ा के बारे में सोचें, तो आरक्षण के लिए जारांगे पाटिल का आंदोलन, उनके ख़िलाफ़ ओबीसी का आंदोलन, मुद्दा बना था. राजनीतिक दलों का पहला लक्ष्य जातिगत गणित को सुलझाना प्रतीत होता है.”
प्रकाश पवार ने कहा, ”बीजेपी और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दो ऐसी पार्टियां हैं जो महाराष्ट्र की राजनीति में नेतृत्व के मामले में बराबर हैं. इन दोनों पार्टियों ने ओबीसी और मराठों को एक साथ लाने की योजना बनाई है. इसमें हर ज़िले में एक ओबीसी और एक मराठा को टिकट बांटा गया है.”
मराठा आरक्षण के बारे में बात करते हुए डॉ. प्रकाश पवार ने कहा, “बीजेपी ने मराठा आरक्षण की मांग के कारण होने वाले नुकसान से बचने के लिए मराठा उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की योजना बनाई है. ताकि ये उम्मीदवार अपने मराठा वोट लेकर आएं और बीजेपी ओबीसी वोटों को अपने खेमे में कर ले और वह उम्मीदवार जीत जाए.”
ओबीसी के बारे में बात करते हुए प्रकाश पवार ने कहा, ”मुझे नहीं लगता कि महाराष्ट्र में ओबीसी बीजेपी के पीछे एकजुट होंगे. ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले पांच वर्षों में देवेंद्र फडणवीस ने मराठा एकीकरण के पैटर्न को लागू किया है. उदाहरण के लिए, उदयनराजे, राधाकृष्ण विखे पाटिल जैसे नेताओं के भाजपा में आने से स्थानीय ओबीसी आहत हुए थे और तब से शरद पवार और कांग्रेस ने इन असंतुष्ट ओबीसी को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है.”
शरद पवार के बारे में बात करते हुए प्रकाश पवार ने कहा, ”पहले से ही शरद पवार की छवि सिर्फ मराठा नहीं बल्कि ओबीसी और मराठा की है, इसलिए जो हरियाणा में हुआ वह महाराष्ट्र में होता नहीं दिख रहा है.”
आख़िर में प्रकाश पवार ने कहा, ”लोकसभा चुनाव के बाद महाविकास अघाड़ी बहुत आगे थी. लेकिन अब दोनों पक्ष बराबरी पर चल रहे हैं. पिछले डेढ़ महीने में महायुति ने अंतर पाट दिया है. आज कोई भी मोर्चा जीत का दावा नहीं कर सकता. महाराष्ट्र का चुनाव हरियाणा की तर्ज़ पर नहीं, बल्कि महाराष्ट्र को आकार देने वाला चुनाव है. अगर इसमें बीजेपी जीतती है तो कहा जा सकता है कि बीजेपी ने राजनीति का पूरा चेहरा ही बदल दिया है. और अगर महाविकास अघाड़ी सत्ता में आई तो राष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ भी हो सकता है.”