मुनेश त्यागी
सोच समझ कर फांसी
के फंदे चूमे थे शहीदों ने,
हमें यूं ही खैरात में नहीं
मिली थी हमारी आजादी।
आज हमारा सिर ऊंचा करने वाले राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह का शहादत दिवस है। आज के दिन हमें गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों ने भारत माता के इन तीन सपूतों को हमसे छीन लिया था। 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने अपनी सनक और एक सोची समझी साजिश के तहत, हमारे इन तीन वीर क्रांतिकारी शहीदों को फांसी देकर, मौत के घाट उतार दिया था।
आखिर हमारे क्रांतिकारी शहीद क्या चाहते थे, क्यों इनको इतनी छोटी छोटी उम्र में अंग्रेजों द्वारा फांसी दे दी गई? जब हम अपने इन साथियों के जीवन का अध्ययन करते हैं, तो पाते हैं कि राजगुरु सबसे ज्यादा निडर और त्याग की मूर्ति थे, सुखदेव अपने समय के सबसे बड़े संगठनकर्ता थे और भगत सिंह अपने सभी साथियों में वैचारिक रूप से सबसे ऊंचे स्तर के और मजबूत थे।
अंग्रेजों का मानना था कि अगर इनको फांसी ना दी गई और इनको छोड़ दिया गया तो ये फिर से जनता में इंकलाब की बात करेंगे, जनता का राज कायम करने के बात करेंगे, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद करेंगे और अंग्रेजों की तानाशाही का विनाश करेंगे। इन्हीं सब मुद्दों को विचार में रखते हुए भारत माता के इन तीन अमर शहीदों को साम्राज्यवादी अंग्रेजों द्वारा तय समय से पहले ही फांसी दे दी गई थी।
राजगुरु महाराष्ट्र से थे, सुखदेव और भगत सिंह लायलपुर, पंजाब से थे। सुखदेव का मानना था कि मौके के अनुसार सर्वोत्तम का प्रयोग किया जाना चाहिए। वे समाजवाद के बड़े पढ़ाकू थे। उनका कहना था कि हमारे दल का, क्रांतिकारियों का मकसद देश में समाजवादी प्रणाली स्थापित करना है। उनका मानना था कि हम तीनों के फांसी पर चढ़ने से देश की जनता का भला होगा।
राजगुरु का मानना था कि दुनिया से भागकर इस दुनिया को नहीं बदला जा सकता। वह क्या कमाल के इंसान थे कि मरने के मामले में उनकी भगत सिंह से होड़ लगी थी। वह संघर्षों में सबसे आगे रहना चाहते थे और उनकी इच्छा थी कि उनकी मौत भगत सिंह से पहले हो। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि कम्युनिज्म या समाजवाद का रास्ता ही, देश के भविष्य का रास्ता हो सकता है। समाजवाद के तो जैसे दीवाने ही थे शहीद राजगुरु।
हमारे इन तीनों शहीदों को समाजवाद में गहरा विश्वास था। ये तीनों क्रांतिकारी शहीद अपने को देश के लिए मरना, बहुत ही सौभाग्यशाली समझते थे। सुखदेव एक खूबसूरत दुनिया बनाने का ख्वाब लेकर इस दुनिया से चले गए। वे मानते थे कि हमारे देश में गरीबी है, अभाव है और हमारी जनता के बीच में प्यार का अभाव है।
भगत सिंह अपने सब साथियों में, जिसमें हिंदुस्तान समाजवादी गणतंत्र संघ के लोग भी शामिल थे, सबसे बड़े विद्वान और विचारक थे। वे पढ़ने के शौकीन थे, उनकी जेब में हमेशा पुस्तक मौजूद होती थी। वे जब भी खाली समय में होते तो पुस्तक ही पढ़ते रहते थे और लिखते रहते थे। उनका मानना था कि संगठन का बनाना और जनता में अपने विचारों का प्रचार करना, क्रांति के लिए सबसे जरूरी है।
उन्होंने शोषण, दरिद्रता, असमानता, अन्याय और भेदभाव का गहन रूप से अध्ययन किया। आजादी को बारे में उनका मानना था कि राजनीतिक ही नहीं आर्थिक और सामाजिक आजादी भी इस देश को चाहिए, इसके बिना हमारा देश आगे नहीं बढ़ सकता। वे साम्राज्यवाद विरोधी भावना को जनता में जगाना चाहते थे। वे सामाजिक बदलाव के लिए, क्रांतिकारी आंदोलन के लिए, जनता में सहानुभूति पैदा करना चाहते थे।
वे तमाम तरह के शोषण के खिलाफ थे। शोषण चाहे मनुष्य द्वारा मनुष्य का हो या एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का हो। भगत सिंह क्रांति के एक बहुत बड़े प्रचारक थे। वाणी और लेखनी के धनी थे, पुस्तक प्रेमी थे। अभी तक प्राप्त 140 लेखों में भगत सिंह द्वारा 97 लेख लिखे गए थे। वे एक बहुत बड़े लेखक थे। अपने जेल जीवन में उन्होंने 143 लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन किया था और अपने नोट्स बनाए थे। जेल में बनाए गए इन नोट्स को अब “भगत सिंह की जेल डायरी” का रूप दे दिया गया है। उनका मानना था कि सामाजिक और आर्थिक आजादी के बिना राजनीतिक आजादी के कोई अर्थ नहीं हैं।
समाजवाद की जनहितकारी आवाज की अहमियत को सबसे पहले हमारे शहीदों और भगत सिंह ने सुना था और समाजवादी समाज और समाजवादी राजसत्ता की बात सबसे पहले अपने साथियों में भगत सिंह ने ही की थी। उनका लक्ष्य किसानों मजदूरों का राज काम करना और समस्त मानवता को सुखी बनाना था। भगत सिंह के आने से संगठन का जनतांत्रिककरण हुआ और संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन यानी एचएसआरए के सबसे पहले सेनापति शहीद चंद्रशेखर आजाद को चुना गया था और भगत सिंह अपने इस संगठन के प्रचार मंत्री बने थे। भगत सिंह समाजवाद के सबसे बड़े मुरीद थे। भगत सिंह की पहल पर ही हिंदुस्तानी रिपब्लिकन एसोसिएशन को हिंदुस्तानी समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाया गया था।
हमारे इन शहीदों ने अदालत को राजनीतिक प्रचार का माध्यम बनाया और एसेंबली में नारे लगाए,,,, “सर्वहारा जिंदाबाद”, “साम्राज्यवादमुर्दाबाद”, “समाजवाद जिंदाबाद”, “इंकलाब जिंदाबाद”। हमारे ये साथी क्रांति से क्या मतलब रखते थे? क्रांति से उनका मतलब था,,,क्रांति यानी मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का खात्मा। वाद विवाद में भगतसिंह उत्तेजित नहीं होते थे। उनका कहना था कि शोषकों को खत्म कर यह दुनिया हमें स्वर्ग बनानी पड़ेगी। उन्होंने भगवान और धर्म की निरर्थकता पर सवाल उठाए। मैं नास्तिक क्यों जैसी महत्वपूर्ण किताब लिखी। अपने लेखों में उन्होंने सांप्रदायिकता और अछूत समस्या का निदान पेश किया और जरुरत पड़ने पर छात्रों का किताबें छोड़कर राजनीति में आने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा था कि हमारा काम इस धरती को स्वर्ग बनाना है। उन्होंने अदालत को क्रांतिकारी प्रचार का माध्यम बनाया। साम्यवाद और समाजवाद भगत सिंह का प्रिय विषय थे। हमारे इन शहीदों ने नौजवानों को क्रांति के राही बताया, लोगों को जगाया और संगठित होना सिखाया, समाज में फैली मायूसी और लाचारी को दूर किया और खोए और सोये आत्मविश्वास को जगाया।
गदर पार्टी से लेकर, हमारे सारे क्रांतिकारी और उनके दल के लोग, धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे। हमारे शहीद धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहते थे और वे धर्म को व्यक्ति का निजी मामला समझते थे। धर्म के बारे में भगत सिंह ने कहा था “जो धर्म इंसान को इंसान से अलग करे, मोहब्बत की जगह उन्हें एक दूसरे से नफरत करना सिखाए, अंधविश्वासों को बढ़ावा देकर लोगों के बौद्धिक विकास में बाधक हो, वह धर्म, कभी भी मेरा धर्म नहीं हो सकता।”
हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन एसोसिएशन के सभी सदस्य ऊंच- नीच छोटे-बड़े की सोच को खत्म करना चाहते थे, समाज का क्रांतिकारी और समाजवादी रूपांतरण चाहते थे। वे कांग्रेस को एक समझौतावादी और जातिवादी और उसी शोषणवादी सत्ता तंत्र को कायम रखने वाला दल मानते थे। उनका मानना था कि एक दिन कांग्रेस लुटेरे साम्राज्यवादी अंग्रेजों से समझौता कर लेगी, गोरे अंग्रेजों की जगह, भूरे भारतीय अंग्रेज, बैठ जायेंगे और कांग्रेस का आंदोलन खत्म हो जाएगा।
उनका मानना था कि क्रांति से सर्वहारा वर्ग का स्थायी राज्य स्थापित होगा। नौजवानों को क्रांति का अलख जगाने के लिए फैक्ट्रियों, गांवों, झोपड़ियों और देश के कोने कोने में जाना होगा। उनका मानना था कि क्रांति के बिना शांति, सुव्यवस्था, कानूनपरस्ती और प्यार कायम नहीं किया जा सकते। क्रांति यानी समाजवाद की स्थापना से उनका मानना था कि सरकारी मशीनरी पर मजदूर वर्ग का, किसानों का कब्जा हो। वे नए समाज के यानी मार्क्सवादी ढंग से समाज की रचना की स्थापना करने की हामी थे।
उनका मानना था कि क्रांति जनता द्वारा की जाएगी। क्रांति सर्वहारा की क्रांति, सर्वहारा के द्वारा और सर्वहारा के लिए क्रांति होगी। उनका कहना था कि चेतना ही नहीं, वर्ग चेतना पैदा करनी होगी, तभी यह समाज बदला जा सकता है। उनका मानते थे कि क्रांति के लिए सादा और स्पष्ट लेखन किया जाए, अध्ययन केंद्र खोले जाएं, पर्चे, पुस्तकें, मैगजीन निकाली जायें और उन्हें जनता के बीच बांटा जाये।
भगत सिंह और उनके साथियों ने अपने विचारों और नारों द्वारा “इंकलाब जिंदाबाद” की बात की और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” की बात की। भगत सिंह यहां अपने शहीद क्रांतिकारियों में शक्ति सबसे आगे थे क्योंकि उनका मानना था कि साम्राज्यवाद और पूंजीवाद का मुकाबला क्रांति और समाजवादी समाज व्यवस्था से ही किया जा सकता है, इसलिए अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने साम्राज्यवाद का मुकाबला करने के लिए क्रांति यानी इंकलाब का नारा बुलंद किया।
भगत सिंह ने अपने विचारों में बम, पिस्तौल और इंकलाब में अंतर किया था। उन्होंने कहा था कि “बम और पिस्तौल इंकलाब नहीं लाते, बल्कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।”
2 फरवरी 1931 को लिखे अपने बहुत ही महत्वपूर्ण लेख में भगत सिंह ने लिखा था कि “अगर मैं जिंदा रहा तो मैं एक पार्टी का निर्माण करूंगा और जिसका नाम कम्युनिस्ट पार्टी रखूंगा।” भगत सिंह के विचार उनके द्वारा लिखे गए 2 फरवरी 1931 के लेख “नौजवानों से” प्राप्त किए जा सकते हैं। जब बहुत सारे लोग इस बात को सुनते हैं तो वह वे आश्चर्यजनक रूप से सवाल करते हैं कि क्या भगत सिंह कम्युनिस्ट थे? तो इस पर हमारा कहना यह है कि हां उनके विचारों, उनके लेखों और उनकी कार्यक्रम को देखकर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भगत सिंह कम्युनिस्ट पार्टी में विश्वास करते थे और एक कम्युनिस्ट विचारधारा को आगे बढ़ाने में, पालने पोसने में विश्वास रखते थे।
वे मानते थे कि क्रांति एक छोटे वर्ग द्वारा नहीं, बल्कि पूरी जनता के द्वारा की जाएगी और उसी के द्वारा उसको स्थाई किया जाएगा। क्रांति से उनका मतलब था क्रांति यानी इंकलाब यानी संपूर्ण स्वतंत्रता। क्रांति यानी दिमागी गुलामी से पूर्ण आजादी। अपने सपनों को लेकर भगत सिंह और उनके साथी फांसी पर चढ़ गए और जो बचे थे, उनको सरकार ने सजा देकर जेल में भेज दिया, काला पानी भेज दिया, मगर भगत सिंह को दिए गए अपने वचन से उसके साथी डिगे नहीं और जेल से बाहर आए तो उनमें से अधिकांश कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और जनता और किसानों को संगठित करके, क्रांति का ख्वाब देखने लगे और काम करते हुए अपने जीवन को जनता के हित के लिए न्यौछावर कर गये।
हमारे शहीदों के ख्वाब अभी पूरे हुए नहीं हुए हैं, यह उनके सपनों का भारत नहीं है। अभी यहां भ्रष्टाचार, बेईमानी, असमानता, अन्याय, रिश्वतखोरी,भेदभाव, ऊंच-नीच की मान्यता और छोटे बड़े की अमानवीय सोच, अपनी जड़े जमाये हुए हैं। हमारा सबसे बड़ा काम यह है कि भगत सिंह का और शहीदों के सपनों का समाजवादी समाज बनाने के लिए, हम शहीदों के बताए रास्ते पर चलें, उनका अध्ययन और मनन करें, क्योंकि उन्हीं के बताये विचारों और सिध्दांतों पर बना हुआ समाज ही एक बेहतर समाज हो सकता है।
इंकलाब जिंदाबाद, समाजवाद जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, जनता की एकता जिंदाबाद
अपने शहीद क्रांतिकारियों को अपनी श्रद्धांजलि पेश करते हुए, हम तो यही कहेंगे,,,,
शाह रात में रोशन किताब छोड़ गए
वो चले गए मगर अपने ख्वाब छोड़ गए,
हजार जब्र हों लेकिन यह फैसला है अटल
वो जहन जहन में इंकलाब छोड़ गए।
और
मेरे ख्यालों से इस तरह
वाकिफ है मेरी कलम,
मैं इश्क भी लिखना चाहूं
तो इंकलाब लिखा जाता है।