2 डिग्री की सर्दी थी जब आए थे आज 42 डिग्री की गर्मी है। घरवाली का देहांत हो गया,7 महीने से एक बार भी घर नहीं गए। आंखे कमजोर हो गयी है लेकिन हौंसला नहीं….
ये तो एक बानगी है ऐसे ही ना जाने कितनी कहानियां हैं इस आन्दोलन के अन्दर, यदि आप सुनेंगे तो निश्चित ही तकलीफ होगी।
अगर आपको लगता है ये भी किसी सरपंची या विधायक के पद के चक्कर मे यहाँ बैठें है, यंहा ये सारे लोग पिकनिक मनाने आएं हैं, यहां ये लोग मजे में रह रहें हैं, यहां ये लोग पिज्जा खाने के लिए रुके हुवे हैं….. तो आपकी सोच पर तरस आती है।
किसी भी देश की सबसे बड़ी त्रासदी पलायन होती है कोई भी सुखी मन से अपना घर-बार, बीवी-बच्चे, माँ-बाप, भाई बहन, चाचा-ताऊ…. ये सारे रिश्ते-नाते छोड़कर नहीं जाता। बहुत ही दुखी होकर बेमन से जाता है मजबूरी में, रोजगार करने के लिए ताकि दो पैसे कमाकर अपने घर वालों दे सके जिससे घर के जरूरत के सामान उपलभ्द हो सके। और यंहा जो मजदूर-किसान पिछले 7महीनों से सड़क पर अपना घर-बार, बीवी-बच्चे, माँ-बाप, भाई बहन, चाचा-ताऊ…. ये सारे रिश्ते-नाते छोड़कर बैठे हैं, यंहा तो इनको कोई पैसा भी नहीं मिल रहा है उल्टे खर्च हो रहें हैं। बरसात में तो बहुत दिक्कतें हो जाती हैं, सड़क पर बनाए हुवे झुग्गियों में पानी भर जाता है, तेज आंधी में झुग्गियां उजड़ जाती हैं और भी कई दिक्कतें आती हैं। कोई भी किसान-मजदूर वंहा सुख से नहीं है, बहुत ही तकलीफ में है मगर इस उम्मीद से हौसले बुलंद करके डटा हुवा है कि एक दिन सरकार उनकी सुनेगी और ये किसान विरोधी तीनों कानून वापस ले लेगी। जब हाड़ कप कपाती ठंड और गर्म लू के थपेड़ों वाली गर्मी किसानों-मजदूरों का हौसला नहीं तोड़ पायी तो ये आंधी, ये तूफान, ये पानी उनके हौसलों को डिगा नहीं पाएगी।
आप डंटे रहो हम सभी लोग आपके साथ हैं। निश्चित ही एक दिन सड़क पर बैठे हुवे आप सभी किसान-मजदूर भाईयों को सफलता मिलेगी और इनके इस जज्बे को क्रांतिकारी सलाम।
*अजय असुर**जनवादी किसान सभा उ. प्र.*