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हास्यास्पद हिदायत….केंचुआ को भाषा विज्ञान की समझ कब से आ गयी

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राकेश अचल

केंचुआ कोई बुरा शब्द नहीं है । केंचुए को रामचारित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने भूमिनाग कहा है। केंचुआ आखिर केंचुआ है । न भूमि से ऊपर खड़ा हो सकता है और न ईश्वर ने उसे फुफकारने के लिए कोई फन दिया है। हाँ केंचुए को अजर-अमर जरूर बनाया है । उसके खंड-खंड कर दीजिये फिर भी मरता नहीं है केंचुआ । कुछ लोग उसे बेशर्म भी कहते हैं। केंचुआ की विशेषता ये है कि यदि वो सक्रिय हो तो किसी भी भूमि को उर्वर बना सकता है भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भी चुनाव करने के लिए जिस मशीनरी को सृजित किया गया है उसे भी केंचुआ कहा जाता है । केंचुआ अर्थात केंद्रीय चुनाव आयोग। इसके पास भी अपना कोई फन नहीं ,विष नहीं ,नख नहीं ,दन्त नहीं। ऐसे में जब कभी ये फुफकारने की कोशिश करता है तो बरबस हंसीं आ ही जाती है।
सत्ता के इशारे पर नाचने के लिए अभिशप्त ये केंचुआ अचानक जब भाषा विज्ञानी बन जाये तो हैरानी होती है । इसी निरीह केंचुए ने हाल ही में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को माननीय प्रधानमंत्री जी के बारे में सोच,समझकर बोलने की हिदायत दी तो हंसी आना स्वाभाविक है। केंचुए को भाषा विज्ञान की समझ कब से आ गयी ये शोध का विषय है। यदि केंचुए को भाषा विज्ञान की समझ सचमुच आ जाये तो भारतीय चुनाव तंत्र में होने वाली बकवास पर लगाम लग सकती है ,लेकिन ऐसा हो नहीं सकत। ऐसा हो भी नहीं रहा । केंचुआ ने तो राहुल को जो हिदायत दी है वो अपने आकाओं के इशारे पर दी है। अन्यथा बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद ? यानि केंचुए का भाषा से क्या लेना -देना ?
मजेदार बात ये है कि केंचुए ने राहुल गांधी को सोच ,समझकर बोलने की हिदायत [सरकारी भाषा में एडवाइजरी ]उस भाजपा की शिकायत के बाद भेजी है जो खुद भाषा के परखच्चे उड़ने में सिद्धहस्त है। भाजपा नेताओं के शब्दकोश में ऐसे -ऐसे खतरनाक शब्द हैं कि आप कल्पना नहीं कर सकते ,लेकिन न कांग्रेस भाजपा की तरह केंचुए के पास शिकायतें लेकर जाती है और न केंचुआ भाजपा नेताओं को हिदायत देने की जहमत उठाती है। उठाये भी क्यों ? कोई पालतू अपने ही स्वामी को आँख दिखाता है क्या ? उसे तो अपने स्वामी के इशारों पर नृत्य करना पड़ता है । दुम हिलानी पड़ती है । चरण -चुंबन करना पड़ता है। क्योंकि जो नियोक्ता है वो ही केंचुए के लिए सब कुछ है। केंचुआ यानि भूमिनाग सचमुच का नाग जब-तब बनता है । और जब बनता है तो टी एन शेषन हो जाता है।
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी द्वारा पिछले दिनों माननीय प्रधानमंत्री मोदी के लिए पनौती और ‘जेबकतरा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने को लेकर ये एडवाइजरी जारी की है। इसको लेकर भाजपा ने चुनाव आयोग को शिकायत भेजी थी, जिस पर संज्ञान लेते हुए 23 नवंबर 2023 को आयोग ने राहुल गांधी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इस पर राहुल गांधी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. इस पर राहुल गांधी के जवाब के बाद ये एडवाइजरी जारी की गई है। चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री पर की गई बयानबाजी पर दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश और राहुल के जवाब सहित सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद राहुल को भविष्य में अधिक सावधान और सतर्क रहने की सलाह दी है।
एडवाइजरी में चेतावनी शालीन शब्दों में दी जाती है। केंचुआ ने भी यही किया । राहुल को धमकाया नहीं। धमकाया जाना भी नहीं चाहिए । हम तो चाहते हैं केंचुआ एक बार फिर से भूमिनाग की जगह असली का नाग बने और टीएन शेषन की तरह बद्जुबानों की लगाम कसे। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। जिसके ,जो मुंह में आ रहा है सो बोले जा रहा है। चुनाव से ठीक पहले देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी जाकर मंदिर-मंदिर खेल रहा है और अब तो माँ हो चाहे दादा सबको ताकत दे रहा है। लेकिन केंचुए को ये सब नहीं दिखाई दे रहा। भारतीय चुनाव प्रणाली में शुचिता लाने के लिए बदजुबानी के साथ ही गलत बयानी,,गलत विज्ञापनबाजी,जुमलेबाजी ,गलत गारंटी पर भी एडवाइजरी जारी करना चाहिए।
दुर्भाग्य ये है कि आज की स्थिति में कोई भी राजनीतिक दल या नेता केंचुआ से डरता नहीं है ,क्योंकि केंचुआ की ताकत का पता सबको है। केंचुआ ज्यादा से ज्यादा जो करता है वो किसी नेता को चुनाव प्रचार करने से रोक सकता है ,लेकिन केंचुआ के ऊपर भी अदालतें है। जो नीर-क्षीर विवेक से आज भी काम करती हैं। लेकिन मामला अदालतों तक जाने तक देर हो जाती है। लेकिन ये न्याय का वर्षा जब कृषि सुखानी जैसा होता है।
मै बिलकुल इस बात का समर्थक हूं कि माननीय प्रधानमंत्री के लिए पनौती या जेबकतरा जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसे शब्दों का इस्तेमाल राहुल गांधी या किसी और दूसरे नेता कि लिए भी किसी और नेता द्वारा भी नहीं किया जाना चाहिए भले ही वो नेता देश का प्रधानमंत्री ही क्यों न हो ! क्या केंचुआ में इतना नैतिक बल है कि वो देश कि प्रधानमंत्री कि नाम भी ठीक वैसी ही एडवाइजरी जारी करे जैसी की उसने राहुल गांधी कि लिए की है।उन्हें रोके की वो किसी को जर्सी गाय न कहें,।
देश में केंचुआ ही नहीं बल्कि दूसरी संवैधानिक संस्थाओं को अपनी शक्तियों का न सिर्फ अहसास होना चाहिए बल्कि उन्हें इन शक्तियों कि इस्तेमाल का साहस भी प्रदर्शित करना चाहिए,दुर्भाग्य से पिछले एक दशक से ये नहीं हो रहा है । पहले भी ऐसे अनेक अवसर आये जब संवैधानिक संस्थाएं कठपुतली बनीं या बनाएं गयीं लेकिन जल्द ही वे इससे बाहर भी निकल आयीं। लेकिन अब तो जो एक बार काठ का बना सो बना ही रह गया। उसे दोबारा जीवित करने कि लिए कोई अवतरित हुआ ही नहीं। ये सच है की नेताओं की जुबान बार-बार फिसलती है ,रपटती है। कुछ नेताओं की जुबान का तो कोई ठिकाना ही नहीं रहता। हाल ही में राजद कि पुराने मुखिया लालू प्रसाद की जुबान भी फिसली ,लेकिन चूंकि वे चुनाव लड़ने कि लायक नहीं रहे इसलिए चुनाव आयोग उन्हें कोई एडवाइज नहीं दे पाया । देता भी तो लालू जी मानते इसमें संदेह है।
चुनाव कि लिए बनाई गयी आदर्श आचार संहिता को मैंने अद्यतन पढ़ा है । वो इतनी आदर्श है कि यदि केंचुआ सचमुच उसका पालन करा ले तो न कोई बदजुबानी हो सकती है और न चुनाव में धर्म,धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल हो सकता है ,किन्तु ये आदर्श आचार संहिता सिर्फ दिखाने कि लिए लागू की जाती है ,पालन करने/करने कि लिए इसे लागू नहीं किया जाता। आदर्श आचार संहिता चुनावों की घोषणा कि बाद नहीं बल्कि चुनावी साल कि शुरू में ही लागू हो जाना चाहिए ताकि चुनाव कि एन मौके पर सरकारें अपने खजानों का मुंह खोलकर घोषणाओं और शिलान्यासों की बौछार न कर पाएं। आज तो कम से कम जनता पर चुनावी बरसात में न जाने क्या-क्या बरसाया जा रहा है ? कोई रोकने – टोकने वाला नहीं।
आपको बता दें कि भारत निर्वाचन आयोग, भारत के संविधान के अनुच्‍छेद 324 के अधीन संसद और राज्‍य विधान मंडलों के लिए स्‍वतंत्र, निष्‍पक्ष और शांतिपूर्ण निर्वाचनों के आयोजन हेतु अपने सांविधिक कर्तव्‍यों के निर्वहन में केन्‍द्र तथा राज्‍यों में सत्तारूढ़ दल (दलों) और निर्वाचन लड़ने वाले अभ्‍यर्थियों द्वारा इसका अनुपालन सुनिश्चित करता है। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन के प्रयोजनार्थ अधिकारी तंत्र का दुरूपयोग न हो। इसके अतिरिक्‍त यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन अपराध, कदाचार और भ्रष्‍ट आचरण यथा प्रतिरूपण, रिश्‍वतखोरी और मतदाताओं को प्रलोभन, मतदाताओं को धमकाना और भयभीत करना जैसी गतिविधियों को हर प्रकार से रोका जा सके। उल्‍लंघन के मामले मे उचित उपाय किए जाते हैं।

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