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साधो करम गति टारै नाहीं टरे रे भाई 

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सुसंस्कृति परिहार 

दस साल बाद राजनीति में आए बदलाव को देखते हुए आज कबीर बहुत याद आए वे कहते हैं करम गति टारे नाहींं टरे, रे भाई।जैसा करोगे वैसा भरोगे हमारे बुजुर्ग भी कहते आए हैं।जस करनी तस भरनी इसका पर्याय है। भारत इस वक्त अजीब दौर में फंसा हुआ है।चार सौ पार की दुहाई देने वालों को जनता ने ऐसा सबक सिखा दिया है कि वे इस समय सब भूल कर उनकी ख़िदमत में लगे हैं।बात है कि बनती नज़र नहीं आ रही है।विकट स्थिति यह पैदा हो गई है कि कल तक जिन्हें भय दिखाकर उनकी चरित्र हत्या की कोशिश की गई वे ही आज नाक में दम किए हुए हैं।

एक अकेला सब पर भारी का जुनून सबके सामने तहस नहस होता दिख रहा है।जैसे कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान। लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक तानाशाह का बुरा अंत साफ़ साफ़ नज़र आने लगा है।हम दो हमारे दो की जुगलबंदी भारी मुसीबत बन उभरी हुई है।बुलाए गए हैं तो उनकी सुननी ही होगी ये दोनों राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी हैं।अब अगर ऐसी संगीन स्थिति में एनडीए सरकार बनाता है तो उसे आरक्षण, जातिगत जनगणना तथा मुस्लिमों के प्रति साफ्ट रुख अपनाना होगा वरना सरकार को जब चाहेंगे पटकनी दे देंगे। रिमोट उनके हाथ में रहेगा।मतलब ये अवतारी बाबा के सभी कथित धार्मिक अनुष्ठान फेल।वैसे भी राम की प्रसिद्ध नगरियों अयोध्या, चित्रकूट,नासिक वगैरह में राम के सही भक्तों ने अच्छी तरह निपटा दिया। अब जय श्री कृष्ण के क्षेत्र की रामभक्त जोड़ी ने जगन्नाथ का हाथ थाम लिया है जिसकी देश भर में चर्चा हो रही है। भगवान बदलना दल बदलवाना जैसा है।

सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि संघ का एजेंडा इन दो के प्रवेश के बाद पूरी तरह खत्म हो जाएगा इसे संघ कदाचित ही बर्दाश्त कर पाए।उसकी अपनी शर्तों पर भी रजामंदी संभव नज़र नहीं आती। इसलिए एक बात तो समझ आ रही है कि एनडीए सरकार बनती है और  पीएम चेहरा यही रहा तो एक झटके या यूं कहें विश्वास मत भी अर्जित नहीं कर पाएगी।दो सहयोगी अमित शाह को हो सकता है गृहमंत्री पद पर ना रहने की डिमांड रख दें। स्पीकर पद की मांग भी बहुत दूरदर्शी सोच है।

उधर विपक्ष में बैठने का इंडिया गठबंधन का निर्णय स्वागतेय है। उन्हें सत्ता के लिए बेचैनी नहीं है वे अपनी राह के कंटकों को आहिस्ता आहिस्ता साफ़ कर रहे हैं ताकि आगे चलकर कठोर कार्रवाईयों को अंजाम दे सकें। क्योंकि सरकार बदलती है तो ये बहुत आवश्यक होगा कि कि अब तक हुए बड़े बड़े आर्थिक गबन, पुलवामा,शेयर मार्केट में लोगों का पैसा डूबना, अमीरों की श्रृण माफी,पीएम केयर फंड इलेक्टोरल बांड, चीनी अतिक्रमण,श्रमवीर जैसे गंभीर मामलों की निष्पक्ष जांच जरूरी है। इसलिए जल्दबाजी उचित नहीं की गई।देश की अवाम स्वायत्त संस्थाओं की आज़ादी, ईवीएम और निजीकरण के विरुद्ध कार्रवाई की अपेक्षाएं भी चाहेगी।

बहरहाल,करमगति टारें नाहीं टरे ,रे भाई।झूठी सरकार कटघरे में खड़ी है।आज नहीं तो कल  बड़े बे आबरू होकर कूचे से निकलना ही होगा।यह भी संभव है इन ख़़ताओं के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़े। मतलब यह कि जो किया है उसे भुगतना ही होगा। लगता है झूठ की उम्र ख़त्म होने वाली है। लोकतंत्र और संविधान की पुकार जनता जनार्दन ने सुन ली है। सूरदास भी कह गए हैं ऊधौ करमन की गति न्यारी ! देखिए अंजामें गुलिस्तां क्या होता है?

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