अमन गुप्ता
मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में सहारा के कार्यकर्ता (एजेंट) राजीव विसारिया दिल्ली के जंतर-मंतर पर सहारा इंडिया के खिलाफ तीन दिवसीय धरना-प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आए हुए थे. विसारिया कहते हैं, “मैं क्या करूं? घर-परिवार छोड़कर कहीं भाग जाऊं या फिर कुछ ऐसा कर लूं जिससे मुझे ग्राहकों का पेमेंट करने से छुटकारा मिल जाए. जमाकर्ता रोज गालियां दे रहे हैं, घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है. जैसे मेरा परिवार है, उनका भी परिवार है और मैं उनकी बद्दुआएं लेकर नहीं जी सकता.”
उस दिन राजीव जैसे सहारा इडिंया के हजारों एजेंट कपंनी के खिलाफ हो रहे इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली के जतंर-मंतर में जमा हुए थे. सहारा समूह में 2017 के बाद से ग्राहकों का पेमेंट न कर पाने की शिकायतें आने लगीं थी. इन शिकायतों के बाद एजेंटों को काम मिलने में दिक्कत आनी शुरू हो गईं. इसके बाद मजबूरी में ही सही उन्हें काम बंद करना पड़ा, जो उनके लिए बेरोजगार होने जैसी स्थिति थी. एक तरफ काम नहीं मिल रहा था, दूसरी तरफ कंपनी की तरफ से भी उन्हें सहयोग नहीं मिला जिससे वे ग्राहकों को समझा कर रख पाते, इस कारण वे हर तरफ से मुसीबतों से घिरने लगे, कंपनी के साथ सरकार ने भी उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया. इस तरह सहारा के एजेंटों को कपंनी और सरकार द्वारा बे-सहारा छोड़ देने के पांच साल बाद जब इनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा, तब जाकर देशभर के कार्यकर्ता यहां पहुंचे थे. जंतर-मंतर में प्रदर्शन में शामिल होने आए एक एजेंट ने बताया कि समूह द्वारा ग्राहकों को पेमेंट न लौटाने की तमाम शिकायतों के बाद और कार्यकर्ता समूह के खिलाफ सहारा कपंनी में भुगतान की दिक्कतें शुरू होने के बाद जमाकर्ताओं के पैसे वापस न दिला पाने के दबाव के चलते देशभर में अब तक 350 से ज्यादा सहारा एजेंट आत्महत्या कर चुके हैं. (प्रदर्शन के मंच पर आत्महत्या करने वाले एजेंटों से संबंधित खबरों का बैनर लगा हुआ था.) देश के अलग-अलग हिस्सों में पहले भी सहारा के खिलाफ इस तरह के धरना-प्रदर्शन होते रहे हैं लेकिन उनकी समस्या का समाधान अब तक नहीं हुआ.
ऐसे ही एक एजेंट हैं रविंद्र कुमार, जो 2005 में बतौर एजेंट सहारा इंडिया से जुड़े थे और 2013 तक उसके साथ काम किया. रविंद्र हरियाणा की करनाल शाखा में सहारा के एजेंट के तौर पर काम कर चुके हैं. इस साल के मई महीने में बेहतर इलाज के अभाव में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई. फोन पर बात करते हुए वह कहते हैं कि “सहारा के चक्कर में सब बर्बाद हो गया. पत्नी की मृत्यु हो गई, जमाकर्ता पैसा मांग रहे हैं. पत्नी के इलाज के लिए कर्ज लिया, उसकी देनदारी अलग है, समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं. सुब्रत रॉय को उसके किए की सजा मिल जाए तो मैं आत्महत्या करने को तैयार हूं.”
रविंद्र आगे बताते हैं, “पांच साल पहले मेरी पत्नी को किडनी की समस्या हुई तो मैने कंपनी में लगाया पैसा वापस मांगा तब भी इन्होंने पैसा नहीं दिया. इसके विपरीत इन्होंने मेरे पैसे को यह कह कर दूसरी एमआईएस स्कीम में डाल दिया कि इससे पैसा जल्दी और आसानी से मिलता रहेगा, जिससे घर का खर्च और पत्नी का इलाज कराने में आसानी होगी. इन्होंने मुझे मार्च 2022 तक बीच-बीच में कुछ-कुछ पैसे दिया लेकिन उसके बाद से एक भी पैसा न मुझे और न मेरे ग्राहकों को मिला. पैसा बंद होने के बाद मई 2022 को मेरी पत्नी का देहांत हो गया.”
राजीव बिसारिया 2004 से सहारा इंडिया के एजेंट हैं. वह बताते हैं, “2015-16 तक कंपनी में सबकुछ ठीक चल रहा था. जमाकर्ताओं को समय से भुगतान मिल रहा था और एजेंटों को उनका कमिशन. वह बताते हैं, “उसके बाद से स्थितियां खराब होनी शुरू हुईं. जिसका नतीजा यह हुआ कि अकेले मेरे एजेंट कोड पर 600 जमाकर्ताओं का लगभग एक करोड़ रुपए का पेमेंट सहारा में फंसा हुआ है. 2017 के बाद मेरे एक भी जमाकर्ता को पेमेंट नहीं मिला है. मेरे जैसे लगभग 12 लाख कार्यकर्ता और 10 करोड़ जमाकर्ता सहारा समूह से पेमेंट निकलवाने के लिए यहां-वहां भटक रहे हैं. “जमाकर्ताओं का पेमेंट मिल जाए, इसके लिए बिसारिया पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से लेकर कंपनी रजिस्ट्रार ऑफिस, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्रालय, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक शिकायतें कर चुके हैं. वह कहते हैं, “जमाकर्ताओं का पेमेंट न मिलने से होने वाली परेशानियों का सामना हम जैसे कार्यकर्ताओं को करना पड़ रहा है. जमाकर्ता कंपनी से पैसा वापस दिलाने के लिए हमारे ऊपर दबाव बना रहे हैं. जमाकर्ताओं का कहना है कि पैसा जमा कराने के लिए हमारे पास कपंनी के एजेंट बनकर आप आए थे. पैसा निकालने का समय पूरा हो गया है,इसके लिए हम आपसे न कहें तो किससे कहें. कंपनी और अधिकारियों से क्या लेना-देना? आप तो हमारा पैसा वापस कराईए, हम कुछ नहीं जानते.”
सहारा के एजेंट हर रोज जमाकर्ताओं का दबाव झेल रहे हैं. कपंनी की गलतियों का खामियाजा उन्हें निजी जीवन में भी चुकाना पड़ रहा है. जमाकर्ता पैसा दिलाने का दबाव बना रहे हैं, पैसा न मिलने की सूरत में उन्हें जान से मारने, परिवार के सदस्यों के अपहरण, घरों पर कब्जा कर लेने तक की धमकी दी जा रही हैं. कई एजेंटों ने अपनी निजी संपत्ती में से जमाकर्ताओं का पैसा वापस किया है.
ऐसे ही एक जमाकर्ता हैं जय कुमार गुप्ता जिन्होंने अपनी निजी संपत्ती बेच कर अपने जमाकर्ताओं का पैसा लौटाया है. इस बारे में उनका कहना है, “अगर मैं ऐसा नहीं करता तो मेरे दूसरे कामों पर असर पड़ रहा था. लोग मारने तक की धमकियां दे रहे थे. ऐसे में मुझे जो आसान रास्ता दिखा वह मेंने किया. अगर नहीं करता दूसरे अन्य लोगों की तरह मेरे पास कोई रास्ता नहीं था”
राकेश कुशवाहा हमीरपुर जिले की राठ ब्रांच में एजेंट हैं और पिछले दस सालों से सहारा से जुड़े हैं. वे कहते हैं,”हमें जमाकर्ताओं से मुंह छुपाना पड़ रहा है. घर से बाहर निकलते हुए डर लगता है, कहीं कोई पैसे मांगने वाला न मिल जाए. इस डर से घर से बाहर निकलना तक कम कर दिया है. सहारा का असर हमारे दूसरे कामों पर भी पड़ रहा है. अब तो बस यह लग रहा है कि किसी भी तरह से हमारे जमाकर्ताओं का पेमेंट मिल जाए, नहीं तो आत्महत्या के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा.” वह आगे कहते हैं, “सहारा प्रबंधन की तरफ से तारीखों का राग सुनते हुए सालों बीत गए, लेकिन वह तारीख नहीं आ रही है. ऐसे में कार्यकर्ता करें, तो क्या करें? पेमेंट को लेकर कंपनी के अधिकारियों से बात करो, तो वे कहते हैं कि आपका ग्राहक है, कुछ दिन और इंतजार कर ले, इसके लिए आप ही समझाइए. कंपनी का पैसा है, हमने अपने पास तो रखा नहीं है कि कोई मांगे और हम निकालकर दे दें. कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें? हम तो न घर के रहे न घाट के.”
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सहारा समूह के साथ दिक्कतों की शुरूआत हुई दिसंबर 2009 में, जब प्रोफेशनल ग्रुप फॉर इंवेस्टर प्रोटेक्शन ने सेबी के समक्ष समूह की दो कंपनियों (सहारा रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग) के खिलाफ गैर-कानूनी तरीके से निवेशकों के साथ आर्थिक लेन-देन की शिकायतें दर्ज कराई थी.नेशनल हाउसिंग बैंक के आधार पर रौशन लाल नाम के एक व्यक्ति ने भी ऐसी ही एक शिकायत दर्ज कराई. दोनों ही शिकायतें लगभग एक जैसी थीं, इन शिकायतों के आधार पर सेबी ने सहारा समूह से जवाब मांगा. सेबी ने अपनी आंतरिक जांच में पाया कि पचास से अधिक निवेशकों से पैसा जुटाने के लिए सेबी की मंजूरी आवश्यक है और सहारा समूह ने सेबी से इसकी मंजूरी नहीं ली है. जबकि इस दौरान सहारा समूह ने निवेशकों से हजारों करोड़ रुपए जुटाए थे. इस जांच को आधार बनाकर सेबी ने नवंबर 2010 में अंतरिम आदेश पारित किया कि सहारा समूह निवेशकों से जुटाया पूरा पैसा वापस करे.
जून 2011 में सेबी ने अपने अंतिम आदेश में पुराने फैसले को ही बरकरार रखा. सहारा समूह ने सेबी के इस आदेश का सेक्यूरिटीस ऐपिलेट ट्रिब्यूनल (सैट) में विरोध किया. अक्तूबर 2011 के फैसले में सेक्यूरिटीस ऐपिलेट ट्रिब्यूनल (सैट) ने सेबी के ही आदेश को सही ठहराया और सहारा समूह को निवेशकों के 25781 करोड़ रुपए लौटाने को कहा. सेक्यूरिटीस ऐपिलेट ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद, अगस्त 2012 में सहारा समूह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद सहारा को निवेशकों से जुटाए गए 24000 करोड़ रुपए सेबी के पास जमा कराने का आदेश दिया. सहारा समूह द्वारा एक साथ इतने पैसों का इंतजाम करने में असमर्थता जताने के बाद, कोर्ट ने दिसंबर 2012 में पूरी राशि को तीन किस्तों में जमा करवाने की मोहलत दी. जिसमें 5120 करोड़ रुपए की पहली किस्त तुरंत जमा करने का आदेश दिया. कोर्ट की मोहलत के बाद सहारा समूह फरवरी 2013 तक बची हुई किस्तें जमा कराने में असफल रहा, तब कोर्ट ने सहारा समूह के बैंक खाते फ्रीज करने और जायदाद को जब्त करने के आदेश जारी किए. इस आदेश के बाद सहारा ने सेबी के पास 24 हजार करोड़ रुपए जमा कराए. इन पैसों को सहारा-सेबी के एस्क्रो अकाउंट में रखा गया है. कोर्ट ने जितनी रकम जमा कराने का आदेश दिया था, सहारा समूह द्वारा उतनी रकम जमा नहीं कराई गई है, बल्कि सेबी के पास जमा पैसों में ब्याज भी शामिल है. सेबी सहारा द्वारा जमा कराए गए पैसे को स्वीकार करता है और समय-समय पर ग्राहकों को पैसा लौटाने के लिए अखबारों में विज्ञापन देकर पैसा वापस लेने का आग्रह करता है.
संपत्तियों को जब्त करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सहारा समूह ने सेबी के पास पैसे जमा कराए. जमा कराए पैसों को आधार बनाकर ही समूह जमाकर्ताओं का पेमेंट नहीं कर रहा है. इस विषय पर सहारा समूह का कहना है कि सेबी के पास जमा पैसा ग्राहकों का है. सेबी के पास पैसा होने के कारण हम अगर ग्राहकों को पेमेंट देते हैं, तो एक पॉलिसी का दो बार भुगतान हो जाएगा. इसलिए सेबी उन पैसों को समूह को वापस करे, जिससे कि हम ग्राहकों को भुगतान कर सकें. जमाकर्ताओं को पेमेंट करने से बचने के लिए समूह नई-नई तरकीबें निकाल रहा है. इन्हीं में से एक है जमाकर्ताओं की पॉलिसियों का री-इन्वेस्टमेंट.
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुडी जिले के राजेश प्रसाद 21 सालों से सहारा से जुड़े हैं. राजेश कहते हैं, “कंपनी ने जमाकर्ताओं और ग्राहकों के साथ धोखा किया है. जिस बिजनेस का लाइसेंस उसके पास नहीं था, उसमें लाखों जमाकर्ताओं का पैसा जमा कराना उनके साथ धोखा नहीं तो और क्या है? जब यह सबके सामने आ गया है, तब कंपनी अपनी गलती मानकर उनका पैसा लौटाने की बजाए जमाकर्ताओं से यह कह कर कि सेबी की गलती के चलते उनका पैसा फंसा है, उनके पैसे का दूसरी स्कीमों में निवेश करवा रही है, स्कीमों की अदला-बदली कर रही है. कंपनी ने पुरानी सभी स्कीमें बंद कर दी हैं. उनके बदले में नई स्कीमें चला रही है, जिनमें से कुछ बिल्कुल नई हैं और कुछ पुरानी स्कीमों के बदले में चलाई जा रही हैं. पुरानी स्कीमों के बदले शुरू की गई स्कीमों का उद्देश्य कंपनी के खिलाफ चल रही जांच से एजेंसियों का ध्यान भटकाना था.
सहारा समूह ने सेबी को गुमराह करने के लिए पुरानी स्कीमों (सहारा रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग) को बंद कर दिया. स्कीमों को बंद करने के बाद जमाकर्ताओं को जारी किए गए बॉन्ड भी वापस ले लिए. बॉन्ड वापस लेने के लिए उनसे कहा गया कि जितना पैसा उन्होंने जमा किया था और उसके ब्याज को मिलाकर नई स्कीम में बदल लें. कहा गया कि नई स्कीम में पुरानी स्कीम के मुकाबले ब्याज भी ज्यादा है. इस तरह जमाकर्ताओं से पुरानी विवादित स्कीम के बॉन्ड वापस ले लिए गए. जमाकर्ताओं को ज्यादा पैसा देने का वादा तो महज एक बहाना था, जबकि असल उद्देश्य तो ग्राहकों से पुरानी स्कीमों के बॉन्ड वापस लेना था, जिसमें कंपनी सफल रही. जमाकर्ताओं से बॉन्ड वापस लेने के बाद सहारा समूह ने इन्हीं बॉन्ड को सेबी के पास भेज दिया. वापस लिए गये बॉन्ड सेबी के पास भेजने के बाद सहारा समूह से जुड़े लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि सेबी जिस स्कीम के पैसे लौटाने का दबाव सहारा समूह पर बना रहा है, वे पैसे जमाकर्ताओं को वापस लौटा दिए गए हैं, जिसके कागज भी सेबी के पास भेजे हैं. सेबी सहारा समूह द्वारा उपलब्ध कराए कागजों की जांच करने की बजाए समूह पर पैसे जमा करने का दबाव बना रहा है. इसलिए सेबी जो पैसा (24 हजार करोड़) मांग रहा है, अगर वो सेबी के पास जमा किया गया तो समूह को दोहरा पेमेंट करना पड़ेगा. यही बात जमाकर्ताओं को समझाने के लिए एजेंट लगाए गए. इसके लिए उन्हें बदली जा रही पॉलिसियों में कमिशन भी दिया गया.
सहारा के जिन एजेंटों से मैंने बात की वे बताते हैं कि सहारा समूह ने पूरे मामले में जमाकर्ताओं यानी एजेंटों और जांच एजेंसियों, दोनों से झूठ बोला है और ग्राहकों को उनके पैसे वापस नहीं मिले हैं. सेबी के साथ विवाद है, तो फिर पेमेंट की दिक्कतें उन्हीं जमाकर्ताओं को होनी चाहिए, जिन्होंने उन स्कीमों में पैसा जमा कराया था. जबकि समस्या तो हर उस जमाकर्ता को है, जिसने सहारा की किसी भी स्कीम में पैसा लगाया हो. कंपनी जमाकर्ताओं के दूसरी स्कीमों में निवेश किए गए पैसे भी, पॉलिसी की मैच्योरिटी के बाद नहीं दे रही है. कंपनी केवल वही दो स्कीमें तो चला नहीं रही थी? उन स्कीमों के पेमेंट करने पर तो किसी ने रोक नहीं लगाई है? समूह दरअसल पेमेंट देना ही नहीं चाह रहा है. इसलिए, सुप्रीम कोर्ट और सेबी के नाम पर बहानेबाजी कर रहा है.
सहारा के एक एजेंट पहचान गुप्त रखने की शर्त पर हमसे बात करते हुए बताते हैं, “जब 2012 में सहारा रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग पर रोक लगाई गई, उसके ठीक पहले सहारा क्यू-शॉप नाम से एक स्कीम लॉन्च की गई. इस स्कीम को लॉन्च करने का मूल उद्देश्य था कि जिन स्कीमों की जांच चल रही है, उसमें निवेशित पैसे को किसी दूसरी स्कीम में निवेशित दिखाया जा सके.”
वह कहते हैं, “किसी भी कंपनी के बड़े से बड़े एजेंट को भी प्रतिदिन नया बीमा नहीं मिलता है. यह बात सहारा के एजेंटों पर भी लागू होती है. इस तरह किसी भी एजेंट ने सभी पॉलिसियां एक दिन में तो की नहीं होंगी. सहारा के 12 लाख एजेंटों ने किसी भी कीमत पर सभी पॉलसियां एक दिन में नहीं की थीं. अलग-अलग समय पर की गई पॉलिसियों की मैच्योरिटी भी अलग-अलग तारीखों में होगी. तब यह रातों-रात कैसे संभव हो गया कि करोड़ों जमाकर्ताओं की पॉलिसी एक ही समय में मैच्योर हो गईं और कंपनी ने सभी का एक साथ पेमेंट भी कर दिया? कंपनी की बात मान भी ली जाए कि सभी की मैच्योरिटी पूरी होने के बाद सभी का पेमेंट कर दिया गया है, तो यह कैसे संभव है कि सभी जमाकर्ता एक साथ दोबारा से सहारा में ही पैसा जमा करेंगे? कंपनी द्वारा सबकी पेमेंट लौटाने की बात झूठी है. जो केवल जांच एजेसियों को गुमराह करने के लिए फैलाई जा रही है. कंपनी द्वारा किसी भी स्कीम से जुड़े जमाकर्ताओं को पेमेंट नहीं किया गया है.”
छह साल की अवधि वाली क्यू-शॉप की मैच्योरिटी भी 2018 में पूरी हो गई. इस बार जमाकर्ताओं और एजेंटों को उम्मीद थी कि अब उनका पैसा निकल जाएगा. लेकिन, कंपनी ने एक बार फिर से जांच और सेबी के पास पैसा जमा होने का बहाना कर जमाकर्ताओं को री-इंवेस्ट के लिए मना लिया. इस बार क्यू-शॉप में निवेश किए गए पैसे को ‘सहारियन’ नाम की स्कीम में परिवर्तित कराया गया. सहारा समूह इसे ही नया इंवेस्टमेंट बता रहा है.
मध्य प्रदेश के उज्जैन के दीपक भाटी पिछले दस सालों से सहारा से जुड़े हुए हैं. कई और कार्यकर्ताओं की तरह वे भी अपने जमाकर्ताओं का पेमेंट न करवा पाने की समस्या से जूझ रहे हैं. वह बताते हैं, “कंपनी का पिछला रिकॉर्ड अच्छा था, यही वजह है कि हम लोग सहारा से जुड़े थे. सेबी के साथ हुए विवाद के बाद भी कंपनी एक-दो साल तक ग्राहकों को निश्चित समय पर भुगतान करती रही. बाद में स्थिति खराब हो गई और ग्राहकों का पैसा फंसता चला गया. पिछले तीन साल से ग्राहकों का पेमेंट, हमारा कमिशन और पीएफ तक नहीं मिला है. ऐसे में काम छोड़ने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्प नहीं बचा था. हमने काम भले ही छोड़ दिया हो, लेकिन जमाकर्ताओं का पैसा दिलाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.”
भाटी कहते हैं, “2018 के अंत में कंपनी ने एजेंटों के लिए वॉलेट सिस्टम लाया गया. इस सिस्टम के तहत जो एजेंट नया बिजनेस लेकर आएंगे वे ही अपने जमाकर्ताओं का पेमेंट भी करा पाएंगे. कार्यकर्ता जो भी बिजनेस करेंगे उसमें से 30 प्रतिशत ऑफिस और स्टाफ खर्च के लिए काटकर बाकी का पैसा एजेंट के वॉलेट में ऐड कर दिया जाएगा. बचे हुए पैसे का इस्तेमाल करके एजेंट जमाकर्ताओं को पेंमेट कर सकते हैं या फिर अपना कमिशन ले सकते हैं. यह एजेंट की मर्जी पर है कि वह क्या चाहता है.”
भाटी ने बताया, “जमाकर्ताओं को पेमेंट दिलाने का दबाव झेल रहे एजेंटों के लिए वॉलेट सिस्टम किसी मुसीबत से कम नहीं है. सहारा समूह जमाकर्ताओं का पेमेंट नहीं कर रहा है, यह बात सबको पता है. ऐसे में कोई भी जमाकर्ता सहारा में पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में सहारा के एजेंटों को नया बिजनेस मिलना लगभग नामुमकिन है. अब न बिजनेस मिल रहा है, न पेमेंट.”
भाटी ने बताया कि जब कंपनी के अधिकारियों से पेमेंट की बात की जाए, “तो वे कहते हैं कि जब तक ऊपर से फंड नही आ रहा, बिजनेस करिए और पेमेंट करा लीजिए. इस तरह गेंद एजेंट के पाले में डाल दी गई है- जो भी करना है, एजेंट को करना है. जमाकर्ता भी जब कंपनी के अधिकारियों के पास अपनी समस्या लेकर जाते हैं, तो वे जमाकर्ताओं से कह देते हैं कि जब तक ऊपर से पैसा नहीं आ रहा है, हमने तो अस्थाई व्यवस्था बनाई है कि एजेंट काम करें और पेमेंट करा लें, लेकिन एजेंट ही काम नहीं कर रहे, तो हम क्या करें. पर वे यह नहीं बताते कि बिजनेस ही नहीं मिलेगा, तो एजेंट पेमेंट कैसे कराएंगे.”
23 मार्च 2022 के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर सहारा समूह के बाजार से सभी स्कीमों के नए बिजनेस करने पर रोक लगा दी गई है लेकिन सहारा समूह की कई कंपनियां नाम बदलकर अभी भी बिजनेस कर रही हैं.यह हाल तब है जबकि सहारा के देशभर में फैले करीब 5000 शाखाओं के नेटवर्क में से आधे से ज्यादा शाखाएं बंद हो चुकी हैं. शाखाओं के बंद होने का नुकसान भी कार्यकर्कताओं को उठाना पड़ रहा है. जो जमाकर्ता पहले दफ्तर जाकर अधिकारियों से पैसे की मांग करता था, वे अब सीधे तौर पर कार्यकर्ताओं के पास जाते हैं.
कंपनी के पुराने कार्यकर्ता होने के कारण जमाकर्ताओं के बीच जलपाईगुड़ी के राजेश प्रसाद की साख अच्छी है. इसका फायदा उन्हें और सहारा को अपना बिजनेस बढ़ाने में मिला, लेकिन वह अब काफी परेशान हैं.वह बताते हैं, “कंपनी ने हम जैसे पुराने कार्यकर्ताओं का भी ख्याल नहीं रखा. ग्राहकों को पेमेंट और हमें हमारा कमीशन नहीं मिल रहा है. कंपनी के अधिकारी फंड न आने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ ले रहे हैं, दिक्कतें तो हमें झेलनी पड़ रही हैं. जमाकर्ताओं को क्या कहें? कब तक उन्हें झूठी उम्मीद दिलाएं कि कब उनका पेमेंट मिल जाएगा? कोई एक निश्चित तारीख भी मिल जाए, तो हम उनको समझा लेंगे. लेकिन कंपनी कई बार वादे करने के बाद भी इतनी बार मुकर चुकी है कि अब तो उनके वादों पर यकीन करना मुश्किल है. मैंने अपने कई जमाकर्ताओं को अपनी निजी संपत्ति बेचकर पेमेंट लौटाया है, क्योंकि उन्हें पैसों की जरूरत थी और कंपनी से पैसा कब मिलेगा, इसका कुछ पता नहीं था. ऐसे में पैसे लौटाने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं था. बीमा एजेंट के तौर मेरी इतने सालों की साख खराब हो रही थी, जिसकी कीमत इन बीस लाख रुपयों से कहीं ज्यादा है. कुछ लाख रुपयों के लिए मैं अपनी साख नहीं गंवा सकता. मैं तो सक्षम हूं, तो लौटा दिए, लेकिन उनका क्या जिनकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं है, वे क्या करेंगे?”
जालौन उत्तर प्रदेश के एक कार्यकर्ता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, “कपंनी ने पेमेंट के मामले में हम लोगों को पूरी तरह से फंसा दिया है. इससे बचने का भी कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है. कंपनी के अधिकारी हमसे बात करने तक को तैयार नहीं हैं. हम लोग किसी सरकारी संस्थान या मीडिया में शिकायत कर रहे हैं, तो हमारे कोड (कार्यकर्ता की पहचान के लिए जारी की जाने वाली आईडी) जब्त किए जा रहे हैं. कोड जब्त हो जाने के बाद हमारे पास कोई सबूत नहीं है कि हम कभी सहारा के कार्यकर्ता भी थे.”
प्रतापगढ़, राजस्थान के विनोद मालवीय भी सहारा के एजेंट हैं और जमाकर्ताओं का पेमेंट न मिलने की समस्या से परेशान हैं. कपंनी के अधिकारियों से पेमेंट मिलने की तारीखों से परेशान होकर वे राजस्थान सरकार के पोर्टल, सेबी अपीलीय प्राधिकरण कार्यालय, कंपनी रजिस्ट्रार कार्यालय, प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति कार्यालय में दर्जनों शिकायते दर्ज करा चुके हैं. उसके बाद भी उनकी शिकायतों का निवारण नहीं हुआ है.
सहारा समूह प्रबंधन द्वारा 5 अप्रैल 2021 को एक पत्र लिखकर भुगतान को लेकर अपनी वचनबद्धता जाहिर की गई थी. इस पत्र में कार्यकर्ताओं और जमाकर्ताओं को जानकारी दी गई है कि भुगतान की समस्या को देखते हुए एक हजार करोड़ रुपए का फंड जारी किया गया है.मैंने जब इस बारे में एजेंटो से बात की तो मुझे पता चला है कि जारी किए गए फंड के बारे कार्यकर्ताओं को जानकारी ही नहीं है. एक कार्यकर्ता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “पहली बात तो यह फंड कब आया और किसको मिला, हमें इसकी जानकारी नहीं है. इसका कारण यह है कि ब्रांच मैनेजर अपने चहेते लोगों को ही बताते हैं और उनके ही जमाकर्ताओं को पेमेंट कराने की कोशिश करते हैं.”
कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार की जा रही शिकायतों से परेशान होकर और उन पर दबाव बनाने के लिए सहारा समूह प्रबंधन ने एक पत्र जारी किया है. ओपी श्रीवास्तव और सहाराश्री सुब्रत राय के दस्तखत वाले 9 अप्रैल 2021 को जारी किए गए पत्र में सुब्रत राय को कोविड होने के कारण उनके और जमाकर्ताओं की वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए होने वाली मीटिंग को रद्द करने की सूचना दी गई थी. इसी पत्र में कार्यकर्ताओं को धमकाया गया है कि वे शिकायतें न करें. पत्र में लिखा है, “कुछ नासमझ कार्यकर्ता, जो अपना संयम खो चुके हैं सम्मानित जमाकर्ताओं से अनर्गल बात करके और उन्हें उकसाकर तमाम सरकारी विभागों में शिकायतें दर्ज कराकर अनेक तरीके से बवाल कराने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि वे यह नहीं समझ रहे हैं कि इन सब अदूरदृष्टि से ग्रसित शिकायतों (कंपलेन्ट्स), झमेलों, बवाल, धरना, प्रदर्शन की वजह से अगर सरकार ने परिसमापन (लिक्विडेशन) का ऑर्डर कर दिया, तो लिक्विडेशन के पश्चात पूरी जिंदगी किसी को दसों वर्षों तक एक रुपया भी नहीं प्राप्त होगा. आज तक जितनी भी फाइनेंस कंपनियों का परिसमापन (लिक्विडेशन) हुआ है, किसी को एक भी रुपया नहीं मिला, जबकि सहारा इंडिया परिवार सभी को पूरी रकम चुकता करने हेतु वचनबद्ध है. वह भी विलंबित अवधि के ब्याज के साथ. ऐसे में आप सरकार को परिसमापन (लिक्विडेशन) में ले जाने के लिए महाबेवकूफी न करें, आप अनजाने में सम्मानित जमाकर्ताओं के साथ जिंदगी भर के लिए अन्याय कर बैठेंगे. बुद्धि, विवेक से काम लें, धैर्य रखें, ठंडे दिमाग से काम लें, किसी अच्छे वकील से संपर्क कर पूरे मामले को समझें.”
इसी पत्र में नीचे लिखा है, “पूजनीय महोदय ने जोर देकर कहा है कि हम प्रतिबद्ध हैं और पूरी तरह कटिबद्ध भी कि हम सभी सम्मानित जमाकर्ताओं को उनका बकाया भुगतान कर देंगे और भुगतान की तिथि तक का ब्याज भी देंगे.” सहारा समूह प्रबंधन बार-बार कह रहा है कि हम जमाकर्ताओं को भुगतान करने की हर सभंव कोशिश रहे हैं, लेकिन उसका नतीजा कुछ भी नहीं निकल रहा है.
सहारा समूह के जमाकर्ताओं की पेमेंट लौटाने के लिए सेबी ने जमाकर्ताओं के लिए टोल-फ्री नंबर जारी किया था. कहा गया था कि जमाकर्ता इस टोल-फ्री नंबर पर कॉल करके अपना विवरण बताकर सेबी के पास से अपना पैसा ले सकते हैं, लेकिन प्रबंधन और एजेंटों की मिली-भगत के कारण जमाकर्ताओं के पास उन पॉलिसियों के सबूत ही नहीं थे कि वे सेबी के पास उसका विवरण दे सकें. इसका नतीजा ये हुआ कि सेबी के पास मुश्किल से 20 हजार शिकायतें पहुंचीं. इन शिकायतों के आधार पर सेबीने जमाकर्ताओं को 156 करोड़ रुपए के लगभग का पेमेंट भी किया है.
सहारा की राठ ब्रांच के कार्यकर्ता दीपक गुप्ता कहते हैं, “सेबी-सहारा विवाद में सहारा के सभी कार्यकर्ता और निवेशक कंपनी के साथ थे. सबको उम्मीद थी कि ऊपर बैठे लोग जल्दी ही इस समस्या का हल निकाल लेंगे और सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा. इसी उम्मीद पर हम लोग आगे कई साल तक काम करते रहे. जमाकर्ता हमसे पूछते भी थे कि पैसा फंस तो नहीं जाएगा? हम लोग बहुत विश्वास के साथ उनको भरोसा देते थे कि ऐसा कुछ नहीं होगा. आप लोग हमारे व्यक्तिगत भरोसे पर जमा कर रहे हैं, तो आपके पैसे वापस दिलाने की जिम्मेदारी हमारी है. लेकिन हम लोग गलत थे. हमें पता ही नहीं था कि ऊपर बैठे लोग झूठ बोल रहे हैं, जमाकर्ताओं के पैसे लौटाने का कोई इरादा नहीं है. हमें उनके इरादों को पता लग जाता तो हम पहले ही काम बंद कर देते. कम-से-कम वे लोग तो बच जाते जिन्होंने बाद में पैसा जमा किया था. कंपनी ने जमाकर्ताओं और कार्यकर्ताओं दोनों का भरोसा तोड़ा है.”
5-7 तक जंतर-मंतर पर हुए धरने में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सासंद संजय सिंह भी शामिल हुए जिसमें उन्होंने सरकार से सहारा के जमाकर्ताओं का पैसा दिलाने की मांग की. इससे पहले सहारा के मसले को 10 से अधिक सांसद संसद में उठा चुके हैं. लेकिन सरकार के तमाम आश्वासनों के बाद भी अभी तक कोई हल नहीं निकल पाया है. धरने के बाद आंदोलन के नेता राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से भी मिले, जहां पर उन्हें एक हफ्ते का समय दिया गया. सहारा पीड़ित आंदोलन कर्ताओं का कहना है कि जल्दी ही अगर इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो सहारा के एजेंट और जमाकर्ता एक लंबा आदोंलन करेंगे.
निवेशकों से धोखाधड़ी के आरोप में कोर्ट के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी रॉय ने निवेशकों का पैसा वापस नहीं किया. इसके आधार पर वह करीब दो साल तक जेल में रहे. जेल से बाहर आने के लिए रॉय ने कई तर्क दिए जिसमें से एक प्रमुख था कि कोर्ट के आदेशों का पालन करने और सेबी के पास पैसा जमा कराने के लिए उनका बाहर रहना जरूरी है. कोर्ट ने उनकी इस बात को खारिज कर दिया और जेल में ही रहने का आदेश दिया. लेकिन मई 2016 में अपनी मां के देहांत के बाद सुब्रत रॉय चार हफ्ते की पैरोल पर बाहर आए और करीब सात साल से पैरोल पर बाहर हैं. न्यायिक इतिहास में यह अब तक की सबसे लंबी पैरोल है, जो आर्थिक घोटाले के आरोपी को दी गई है. सेबी ने उनकी रिहाई का विरोध भी किया था लेकिन उसके विरोध को दरकिनार कर रॉय को पैरोल दी गई.