Site icon अग्नि आलोक

संसद नहीं चलने पर सांसदों का वेतन भत्तों से भी वंचित किया जाए

Share

लोकसभा पर 9 करोड़ और राज्यसभा पर प्रतिदिन 5 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। 
आखिर विपक्ष का टकराव कब तक चलेगा?

संसद के दोनों सदनों का मानसून सत्र 19 जुलाई से शुरू हुआ था, लेकिन दोनों सदनों में एक दिन भी काम नहीं हुआ। जैसे ही सदन शुरू होता है वैसे ही विपक्षी दल के सांसद वेल में आकर नारेबाजी करने लगते हैं। ऐसी नारेबाजी के कारण ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रियों का परिचय भी नहीं करवा सके। मानसून सत्र के शुरू होने से पहले लोकसभा अध्यक्ष ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई, लेकिन इस बैठक का भी कोई असर नहीं हुआ। भाजपा के गठबंधन वाले एनडीए के पास लोकसभा में 545 में से 350 सांसदों का समर्थन है, लेकिन सदन में जब 10-15 सांसद भी नारेबाजी शुरू करते हैं तो सदन की कार्यवाही रोकनी पड़ती है। यह सही है कि नारेबाजी के बीच सदन की कार्यवाही नहीं चल सकती। लेकिन सवाल यह भी है कि सत्र बुलाकर जनता के पैसे की बर्बादी क्यों की जा रही है? प्रतिदिन लोकसभा पर 9 करोड़ रपए तथा राज्यसभा के संचालन पर 5 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। सवाल उठता है कि जब दोनों सदन चल ही नहीं रहे हैं तो फिर प्रतिदिन 14 करोड़ रुपए की राशि खर्च क्यों की जा रही है? सदन चले या नहीं लेकिन सांसदों को भत्तों का भुगतान होता रहता है। कोई सांसद यह नहीं कहता कि जब हम सदन में बैठे ही नहीं है तो  भत्ता  क्यों लें? सदन में हंगामा करने वाले भी भत्ता लेने में आगे रहते हैं। यानी सदन नहीं चलने पर भी सांसद भत्ता राशि प्राप्त कर रहे हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को चाहिए कि सदन के नहीं चलने पर सांसदों के वेतन और भत्ते का भुगतान भी नहीं किया जाए। इससे कम से कम कुछ करोड़ रुपए की राशि की तो बचत होगी। जहां सदन को चलाने का सवाल है तो सरकार के प्रतिनिधियों को  विपक्ष  के साथ बैठकर हल निकालना चाहिए। जब सरकार की की ओर से बार बार कहा जा रहा है कि विपक्ष के हर मुद्दे पर सदन में बहस करवाई जाएगी तो फिर विपक्ष को अपने रुख में बदलाव करना चाहिए अभी सरकार और विपक्ष के बी टकराव से देश की जनता को ही भुगतान हो रहा है। लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति तो विपक्ष की मांग माने या फिर हंगामा करने वाले सांसदों को सदन से बाहर निकालें। लोकतंत्र में संसद का कुछ तो महत्व होना ही चाहिए। अभी तो संसद के दोनों सदन राजनीति का अखाड़ा बने हुए हैं। 

एस.पी.मित्तल
Exit mobile version