सुसंस्कृति परिहार
जब गहन अंधकारा से लोग निरंतर घिरते जा रहे हों तब कुछ लोगों के साहसिक प्रयास जन जन को जुगनु की नाई चमक कर रोशनी की कम से कम से याद को ज़िंदा रखने का महत्वपूर्ण अवदान देते हुए हमें संबल दे रहे हम उनके प्रति कृतज्ञता सार्वजनिक तौर पर ऐलानिया ना करें पर वे दिल को मज़बूत करने में कसर नहीं छोड़ते।जी हां हम बात कर रहे कुणाल मर्जेंट जी की। जो देश के टॉप मोस्ट डिज़ाइनर है जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी जी के लिए टेबल डिज़ाइन करने से मना कर दिया है विदित होपीएमओ ने कुणाल को एक मेल के ज़रिये अप्रोच किया कि पीएम मोदी जी की इच्छा है कि आप उनके लिए एक टेबल डिज़ाइन करें कुणाल मर्चेंट ! उन्होंने मोदी के लिए टेबल डिज़ाइन करने से यह कहते हुए मना कर दिया है तथा कहा शुक्रिया, मेरे काम को सराहने और मुझे इस अहम काम के लिए चुनने की ख़ातिर। लेकिन मेरे राजनीतिक और सामाजिक ख़्यालों की वजह से मैं ये प्रस्ताव ठुकराता हूँ। अगर मैं ये डेस्क बनाता तो मैं इसे स्वराज डेस्क का नाम देता है। मैं एक गांधीवादी हूँ और अहिंसा में विश्वास रखता हूँ। मैं ऐसा कोई डेस्क नहीं बना सकता जिसपर अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ और उन्हें अलग-थलग करने वाले फ़ैसलों पर हस्ताक्षर किए जाए। मोदी सरकार नफ़रती माहौल बना रही है लेकिन मैं और अनेकता में एकता को बढ़ावा देना चाहता हूँ। याद रखिए, इतिहास नाज़ियों का साथ देने वालों और उनका साथ देने वालों को भी नाज़ी ही मानता है। आपकी सियासत दिखाती है कि आपके अंदर नफ़रत भरी हुई है।
कुणाल नेआगे कहा कि—–“ऐसे प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए टेबल डिज़ाइन करना अनैतिक होगा, जहां अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव और उनके अधिकारों से वंचित रखने वाले क़ानूनों पर दस्तख़त किये जा रहे हैं। कुणाल लिखते है कि उनके स्टाफ़ में दलित, महिला, अल्पसंख्यक सभी शामिल हैं और एक विभाजनकारी कार्यालय के लिए कुछ भी करने का मतलब अपने लोगों के साथ एहसान फ़रामोशी करना है। वो नहीं चाहते कि कल इतिहास उन्हें फ़ासीवाद के समर्थक के रूप में जाने।”
आज के दौर में इतना कटु और खरा खरा जवाब साहब को कैसा लगा होगा यह बात उतनी चिंताजनक नहीं है जितनी लग रही है क्योंकि मोदीजी काफी समय से बिफरे बिफरे नज़र आ रहे हैं अंदर अंदर बहुत कुछ चल रहा संघ ने नया भगवाधारी नई संसद भवन के लिए घोषित जब से किया मोदीजी का हाल बुरा है।टेबल बनाए या ना बनाएं इससे कोई फ़र्क पड़ता नज़र नहीं आता।नये संसद भवन की कुर्सी और प्रधानमंत्री आवास में कौन बैठेगा अब ये चिंतातुर करने वाला है।लेकिन मर्चेंट साहब की दो टूक बात को अवाम ने हाथों हाथ लिया है।एक साथ फासीवादी सत्ता को इस शालीन तरीके से गरियाया है कि फासीवाद के ख़िलाफ लिखने वाले लेखकों और पत्रकारों को पस्त कर दिया है ।
हालाँकि अब प्रधानमंत्री कार्यालय से कहा जा रहा है कि उन्होंने कभी कुणाल मर्चेंट से संपर्क ही नहीं किया। पुलिस इस मेल की जाँच कर रही है। हमारे लिये तो सवाल ये मायने रखता है कि कुणाल जैसे लोग अब भी बचे हुए हैं और उन्होंने तो मेल को असली समझते हुए ही जवाब दिया था !
दूसरी ओर आज श्याम रंगीला जो मोदीजी जी मिमिक्री के लिए छा गए थे, ने अपना दर्द मोदी के नाम खुला पत्र लिखकर गजब ढा दिया है।वह भी लोग बड़ी ही शिद्दत से पढ़ रहे हैं जिसमें लगभग सारे आरोप मोदी के मत्थे मढ़े हैं। रंगीला ने लिखा प्रिय पीएम श्री मोदी जी, मैं एक छोटा सा कलाकार हूँ,आपकी व कई लोगों की मिमिक्री करता हूँ। दुःखद है कि मैं ये कभी TV पर नहीं कर सकता क्यूँकि TV चैनल के लोग आपसे डरते है। आपको तो मज़ाक़ पसंद भी है, तो फिर भी वे क्यूँ डरते है आपकी मिमिक्री से? क्या आपकी मिमिक्री जुर्म है?लाफ्टर चैलेंज(2017)के बाद कई बार TVशोज़ से बात हुई लेकिन अंत में सभी ने यही कहा की ‘श्याम,चैनल आपके लिए इजाज़त नहीं दे रहा’। आज भी हुआ,इसलिए 5 साल बाद इस पर लिखने पर मजबूर हुआ,आख़िर क्यूँ मिमिक्री से इतना डरते है सब? सोशल मीडिया ना होता तो ये रंगीला कब का ख़त्म हो गया होता।खुलकर किए दोनों खुलासे और बंगाल बिहार से मोदी का सफाया आने वाले कल का भरोसा देते हैं।आज वक्त बेशक खामोश रहने का नहीं है।बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे।अंधेरे ख़ामोशी तोड़ने से ही हट जायेंगे। सलाम साथियों।