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सामयिक:गांधी जी जो बार बार याद आते हैं !  

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सुसंस्कृति परिहार

आज देश गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है ।एक तरफ गांधीवादी विचारधारा है तो दूसरी ओर गोडसे वादी हैं ।बड़ा नाज़ुक सा सवाल यह है कि वे गांधी को मारकर अब भी क्यों डरते हैं ?जबकि केन्द्र और बहुतेरे राज्यों में उन्हीं की सरकार है।इस सवाल का उत्तर एक साधारण व्यक्ति देते हुए कहेगा कि –क्योंकि उन्होंने गांधी की हत्या की है और गांधी की आत्मा आज भी हत्यारों को चैन से रहने नहीं देती जब तक उसका वे तर्पण नहीं करेंगे। अमूनन ग्रामीण क्षेत्रों में कहा जाने वाला एक सत्य यह है।वे यह मानते हैं कि हत्यारे हमेशा भयभीत रहते हैं।जब एक सच्चे संत को इस तरह मारते हैं। वस्तुत: गांधी के जाने के बाद गांधी विचारधारा का विस्तार देश विदेश में काफ़ी हुआ।वो बार बार अन्य विचारधाराओं से श्रेष्ठ साबित हुई

 गांधी जी के जन्म दिवस पर बार बार बापू और उनके हत्यारे याद आना स्वाभाविक है।कहने को तो अब गोडसे भी नहीं है किन्तु जिस विचारधारा से प्रेरित होकर गोडसे अपने 12वें प्रयास में सफल होता है उस विचारधारा के लोग आज देश की सत्ता पर काबिज हैं।जो लोग यह कहते हैं कि यह हत्या भारत पाक विभाजन में पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि से सम्बंधित है वह झूठ है क्योंकि गांधी जी को मारने की कोशिश तो बहुत पहले से शुरू थी।

वे गांधी को सिर्फ इसलिए मारना चाहते थे क्योंकि वे सर्वधर्म समभाव को मानते थे।वे जांत पांत के भेद को समाप्त करना चाहते थे।वे महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना चाहते थे।उनकी इच्छा थी कि भारत-पाकिस्तान बंटवारा ना हो किंतु मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग जो अंग्रेजों के चाटुकार थे 1925 में सिर्फ इसी मकसद से इकट्ठे थे कि भारत हिंदू राष्ट्र और पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बनाया जाए।वो तो गांधी , नेहरू,पटेल, मौलाना आजाद जैसे असंख्य लोग थे जिन्होंने भारत की अपनी सांस्कृतिक पहचान जिसे गंगा जमुनी तहज़ीब कहा जाता है, को बचाने यह फैसला लिया कि जो पाकिस्तान जाना चाहे जा सकते हैं जो भारत में रहना चाहते हैं वे बेहिचक यहां रह सकते हैं। गांधी ये भी नहीं चाहते थे कोई मुसलमान भारत छोड़ कर जाए। संकीर्ण विचारधारा से लैस मुस्लिम लीग और संघ को इस बात से गहरा आघात लगा ।वे तो ये मान बैठे थे कि एक एक मुसलमान पाकिस्तान खदेड़ दिया जायेगा।

मूलतः यह मुद्दा ही गांधी और कांग्रेस से नफरत का कारण बना।1950 में जब संविधान आया तब से तिरंगा ही नहीं, राष्ट्र गान भी इन्हें खटकता रहा है।याद रखिए नागपुर संघ कार्यालय में पिछले कुछ सालों से भगवा की जगह राष्ट्रवासियों की आपत्ति पर तिरंगा लगाया गया है। राष्ट्र गान के विरोध में बराबर पहलकदमी हुई खैरियत है वह बचा हुआ है।इस संघवादी सरकार की नज़र साबरमती आश्रम पर भी है एक दिन राजघाट पर भी होगी। बापू के बारे में तथाकथित हिंदू धर्म संसद में अपमान जनक बातें की गई।किसी ने खेद भी नहीं जताया। पिछले दिनों उनके प्रिय भजन अलाईडविद भी को भी हटा दिया गया।  गुजरात में गांधी की उपेक्षा कर सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा का निर्माण कुछ ऐसी बातें हैं जो साफ इंगित करती है कि वे गांधी के सिर्फ हत्यारे नहीं है बल्कि उनकी विचारधारा से बुरी तरह आहत भी है। पिछले कुछ सालों  से कुछ सरकारी कार्यालयों से भी बापू की तस्वीर हटाई गई है ।सरकार किसी भी दल की रही हो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की तस्वीर लगाने का नियम रहा है।क्या गॉधीजी अब अप्रासंगिक हो गये है।यह सोचना पूरी तरह ग़लत है गांधी देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के शांति प्रिय देशों में आज भी प्रासंगिक हैं।

 गोडसे वादी विचार धारा ने गांधी की हत्या के बाद हिंदू राष्ट्र का सपना देखा था वह गांधी के अनुयायियों ने पूरा नहीं होने दिया।बावरी ढहाने और गुजरात नरसंहार से मिली कथित ऊर्जा और झूठ के पाखंड से इन्हें बहुसंख्यक समुदाय की मात्र तीस फीसदी वोट के दम पर केन्द्र सरकार में ये ज़रूर पहुंच गए और यहीं से गोडसे विचारधारा हावी होना शुरू हो गई।जे एन यू में जबरिया जिस तरह टुकड़े टुकड़े गैंग की चपेट में पढ़ रहे छात्रों को देशद्रोह के आरोप में फंसाया और मुस्लिमों को डराने सी ए ए कानून लाया गया।वह इनके इरादे स्पष्ट करता है।  गांधी वादी तरीके से मुस्लिम महिलाओं का इतना ज़बरदस्त प्रतिरोध ,जैसा आज तक कहीं नहीं हुआ जिसमें बच्चे और वृद्ध महिलाओं की बड़ी तादाद रही। इस जन आंदोलन को दीगर समाज के सामाजिक कार्यकर्ताओं का देश भर से समर्थन तो मिला ही है।देश के शहर कस्बों में भी शाहीन बाग स्थापित हुए। विदेशों से भी प्रतिरोध के स्वर बराबर आए।कुल मिलाकर जे एन यू और सी ए ए आंदोलन ने गांधी वादी आंदोलन का रवैया अख्तियार कर सरकार पर भरपूर दबाव बनाया। गांधी ही इनका सहारा बने।

उसके बाद एक साल से अधिक चले संयुक्त किसान मोर्चे के गांधीवादी आंदोलन ने तो ना केवल सरकार झुकाया बल्कि अपनी तमाम मांगों के लिए राजी भी कर लिया।यह गांधीवादी किसान आंदोलन विदेशी पाठ्यक्रम में शामिल हुआ। गांधी जी की यह महत्वपूर्ण देन आज देश के लिए भी वरदान साबित हो रही है। अफसोसनाक ये रहा कि अंग्रेजों के लिए किए आंदोलन की जरूरत देश को पड़ गई क्योंकि अंग्रेजों के मददगार यूं कहें कथित देश के गद्दारों के इतिहास वाले संघ की भाजपा सत्ता में है।

 आजकल गांधी के भारत छोड़ो की तरह भारत जोड़ो पदयात्रा राहुल गांधी के नेतृत्व में तमिलनाडु ,केरल होते हुए कर्नाटक पहुंची है तीनों राज्यों में इस भारत जोड़ो को सम्मान और जुड़ाव मिला है उसे देखते हुए गांधी बार बार याद आते हैं जब जब देशवासियों पर ज़ुल्म बढ़ेगें गांधी के अहिंसक आंदोलन सामने आएंगेऔर देशवासियों की रक्षा करेंगे।

गांधी जी ने अपनी संपूर्ण अहिंसक कार्य पद्धति को ‘सत्याग्रह’ का नाम दिया। उनके लिये सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था। गांधी जी का कहना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है, उनके विचारों में सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के समान था जिसकी असंख्य शाखाएँ होती हैं। चंपारण और बारदोली सत्याग्रह गांधी जी द्वारा केवल लोगों के लिये भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु नहीं किये गए थे, बल्कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोध करने हेतु किये गए थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे जिनमें गांधी जी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।

महात्मा गांधी ने कहा है-’’आग आग से नहीं, पानी से शान्त होती है।’’ अहिंसा कुछ देर के लिए तो असफल हो सकती है, लेकिन यह स्थाई रूप से असफल नहीं हो सकती। बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान अहिंसा के द्वारा किया जा सकता है। इसलिए यह परमाणु बम से अधिक शक्तिशाली होती है। इसमें सार्वभौमिकता का गुण होता है। यह किसी जाति विशेष की धरोहर नहीं होती। गांधी जी ने लिखा है-’’यह आत्मा का गुण है, सबके लिए है, सब जगहों के लिए है, सब समय के लिए है।’’

इन गांधीवादी आंदोलनों से भी केंद्र सरकार विचलित है। गांधी की इस ताकत का एहसास सरकार को हो चुका है। संघ के घर के सदस्य नितिन गडकरी गांधी का योगदान गिनाने लगे हैं और संघ प्रमुख मुस्लिम मौलानाओं के घर दस्तक देने लगे हैं। मोदीजी भी मज़बूर हैं उन्हें नमन करने। ऐसा क्या जादू है गांधी में उसे समझाने  गांधी और स्वाधीनता के तमाम नेताओं के संघर्ष और तौर तरीकों से घर घर में बच्चों को परिचित कराना जरूरी है ताकि कठिन दौर में भावी पीढ़ी भी हिंसा से दूर रहकर गांधीवादी रास्ते का अनुशीलन कर सकें। गांधी तब तक दुनिया के लोगों को राह दिखाते रहेंगे जब तक असमानता,अंध धार्मिकता, जातिवाद आदि व्याधियां समाप्त नहीं हो जातीं।वे अपनी विचारधारा के साथ ज़िंदा है और देश को आज भी उनका संबल प्राप्त है

विदित हो 4जून1944को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को ‘देश का पिता’ (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया। सरोजनी नायडू ने1947में पहली बार राष्ट्रपिता बोला तब से यह शब्द उनके लिए प्रयुक्त होने लगा। गुजरात में पिता को बापू कहते हैं  इसलिए देश में बापू ही चलन में है। आज उनका साया ही देश की एकजुटता के लिए काफी है वे सदैव अमर रहेंगे हम सब उनके तहेदिल से शुक्रगुजार हूं।

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