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ही और भी ?

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शशिकांत गुप्ते

दिलीप कुमार और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म “राम और शाम” का दृश्य है। अभिनेता को वृक्षों पर कीट नाशक औषधि का छिड़काव करते देख,अभिनेत्री पूछती है,आप तो खेतीबाड़ी का भी काम जानते हो?
अभिनेता कहता है कि, खेतीबाड़ी का काम “भी” नहीं, खेतीबाड़ी का “ही” काम जानता हूं।
इतिहास में लिखा है।
विश्व कुख्यात क्रूर तानाशाह हिटलर ने भी चुनाव जीत कर ही सत्ता प्राप्त की थी। चुनाव के बाद हिटलर ने भी चम चमाती सड़के बनवाई थी।
चम चमाती सड़कों की स्तुति करने वालों को जब एक ही कक्ष में बंदी बनाकर,कक्ष में जहरीली गैस छोड़ कर उनकी इहलिला समाप्त की, तब समझ में आया कि जीवित व्यक्ति की ही तो सड़कों पर चलने लायक होते है?
इतिहास में तानाशाहों का ही उल्लेख नहीं है,तानाशाह की मुखालाफात करने वालो का भी उल्लेख है।
इतिहास में क्रांतिकारियों के साथ, छल करने वाले मुखबिरों का भी इतिहास है।
भी और ही का प्रयोग सामाजिक, राजनैतिक,धार्मिक,आर्थिक,और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी होता है।
हर क्षेत्र में धनबलियों का ही वर्चस्व होता है। हर क्षेत्र में धनबल के साथ बाहुबल को भी महत्व दिया जाता है।
सामान्य ज्ञान का उपयोग करें तो किसी एक व्यक्ति का नाम अपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो तो उसी नाम के अन्य व्यक्ति भी अपराधी ही होंगे संभव ही नहीं है।
कोई भी एक व्यक्ति सामाजिक, राजनैतिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है,लेकिन वह व्यक्ति ही देश है,यह कभी भी हो ही नहीं सकता हैं।
यदि कोई व्यक्ति भ्रमवश यह मान ले की वही देश है,तो यह उसका भ्रम ही हो सकता है।
राजनीति में सिर्फ घोषणा करना या वादे ही करना पर्याप्त नही है।
वादों को पूर्ण करने की क्षमता भी होनी चाहिए। क्षमा करना क्षमता नहीं नियत भी होनी चाहिए।
न्याय अन्याय,अपराध,हिंसा की पराकाष्ठा,विभिन्न अवैध करोबार को दर्शाना,कानून की मजाक उड़ाना,अंध श्रद्धा को बढ़ावा देना सिर्फ फिल्मों,और कथित सामाजिक धारावाहिक में ही संभव है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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