हिमालय से लेकर नर्मदा तक, ब्रह्मपुत्र से यमुना तक फैला था साम्राज्य
गुप्त राजवंश के दूसरे सम्राट समुद्रगुप्त को ‘भारत को नेपोलियन’ भी कहा जाता है। यह बात दीगर है कि फ्रांसीसी सम्राट वाटरलू की लड़ाई में अपना सबकुछ गंवा बैठे थे। वहीं, समुद्रगुप्त को युद्ध में कोई नहीं हरा सका। इस अपराजेय योद्धा की गिनती भारत के सबसे महान शासकों में होती है। इतिहास में समुद्रगुप्त की पहचान एक सफल सेनानायक की है जिसने अपने साम्राज्य का खूब विस्तार किया। सम्राट न सिर्फ युद्ध कौशल में निपुण थे, बल्कि कला और संगीत पर भी समान अधिकार रखते थे। कई इतिहासकार इसी वजह से समुद्रगुप्त को अशोक से बेहतर सम्राट मानते हैं। समुद्रगुप्त का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक, पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी और पश्चिम में यमुना नदी तक फैला हुआ था। समुद्रगुप्त सही मायनों में ‘महाराजाधिराज’ थे। इस हिंदू सम्राट ने भारत को राजनीतिक रूप से एक किया और अपने अधीन कर लिया। समुद्रगुप्त ने ही उस विकासगाथा की नींव रखी जिसे भारत का स्वर्णकाल कहा जाता है। भारत के महान हिंदू शासकों की सीरीज में आज बात समुद्रगुप्त की।
भारत को एक सूत्र में पिरोने वाले सम्राट समुद्रग्रुप्त
चंद्रगुप्त प्रथम ने बड़े बेटों की जगह समुद्रगुप्त को उत्तराधिकारी चुना था। पिता के गुजरने के बाद समुद्रगुप्त ने राजकाल संभाला। कुछ इतिहासकार लिखते हैं कि सत्ता के लिए राजकुमारों में संघर्ष भी हुआ। जिस वक्त समुद्रगुप्त पाटलिपुत्र के राजा बने, उस भारत कई छोटे-छोटे खंडों में बंटा हुआ था। समुद्रगुप्त का लक्ष्य गुप्त साम्राज्य का विस्तार और राष्ट्र को एकजुट करना था। लक्ष्य प्राप्ति के लिए समुद्रगुप्त को उन छोटे-छोटे राज्यों को जीतना था। समुद्रगुप्त ने उत्तर में नागा राजाओं को हराया और दक्षिण के कम से कम 12 राजकुमारों पर विजय प्राप्त की। समुद्रगुप्त के शासन की धमक ईरान और अफगानिस्तान तक थी। गुप्त साम्राज्य की सीमाओं से लगते उनके राज्य समुद्रगुप्त प्रशासन को कर चुकाया करते थे।
समुद्रगुप्त के शासन में हुआ गुप्त साम्राज्य का विस्तार
युद्ध में मिले जख्मों से भरा था बदन
कई राज्यों पर विजय प्राप्त करने वाले सम्राट समुद्रगुप्त की कोशिश प्रजा में शांति बनाए रखने की रही। समुद्रगुप्त के युद्ध कौशल की दुनियाभर के रणनीतिकारों ने तारीफ की है। हर युद्ध में चतुराई और वीरता का प्रर्शन किया। रणक्षेत्र में समुद्रगुप्त का खूब रक्त बहा। ऐसा कहते हैं कि समुद्रगुप्त का पूरा शरीर युद्ध में मिले जख्मों से भरा था। उनके शरीर पर कुल्हाड़ी, तीर-तलवार से लेकर बरछी-कटार तक के घाव थे। समुद्रगुप्त ने अपने समय की सबसे बड़ी सेना तैयार की। कहते हैं कि उनकी सेना सदियों पहले रही मौर्य साम्राज्य की सेना से कमतर नहीं थी। किलेबंद शहर बसाने और सीमावर्ती चौकियों को बहाल करना समुद्रगुप्त के कुशल नेतृत्व की एक और खासियत रही।
प्रयाग प्रशस्ति में दर्ज है समुद्रगुप्त की विजयगाथा
वीणा वादन में निपुण थे समुद्रगुप्त
समुद्रगुप्त के दरबार में प्रख्यात कवि हरिषेण हुआ करते थे। उन्होंने ही मशूहर इलाहाबाद स्तंभ पर सम्राट की बहादुरी का जिक्र किया है। इस लेख को ‘प्रयाग प्रहस्ति’ कहते हैं। कविताओं के लिए अपने प्रेम के चलते समुद्रगुप्त को कई जगह ‘कविराज’ भी कहा गया है। समुद्रगुप्त से जुड़े अभिलेखों में उनके वीणा वादन का भी जिक्र है। समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल में कई तरह की मुहरें चलाईं। गुप्त साम्राज्य की अर्थव्यवस्था समुद्रगुप्त के समय खासी सुदृढ़ हुई। पड़ोसी राजाओं से मैत्रीपूर्ण संबंध थे। उन्होंने सेलॉन (अब श्रीलंका) के राजा को बोधगया में एक मठ बनाने की अनुमति दी थी ताकि बौद्ध भिक्षुओं को सुविधा रहे।
अश्वमेध यज्ञ किया, कोई नहीं हरा पाया
भारत के बड़े भूभाग को अपने अधीन करने के बाद समुद्रगुप्त ने अध्वमेध यज्ञ किया। इस अवसर पर सोने के सिक्के भी जारी किए गए। प्राचीन भारत में किया जाने वाला यह यज्ञ अपनी संप्रभुता का डंका पीटने के लिए किया जाता था। कोई राजा समुद्रगुप्त के यज्ञ में विघ्न नहीं डाल सका। कला इतिहासकार वीए स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है। हालांकि, इसपर इतिहासकारों में मत-भिन्नता है। कई इतिहासकार मानते हैं कि नेपोलियन से उलट समुद्रगुप्त में सत्ता की भूख नहीं थी।