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व्यंग्य:अब हम ड्रोन से गर्ल चाइल्ड को इनवेस्टिगेट कर सकेंगे…!

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डॉ. द्रोण कुमार शर्मा

सरकार जी अमेरिका गए। अमेरिकी दौरे के दौरान कई काम किये। भोजन भी किया। वह तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने दोपहर के भोजन का आयोजन कर दिया था अन्यथा हमारा मीडिया तो यह भी कह सकता था कि हमारे सरकार जी तीन चार दिन बिना सोये, बिना खाये पिए काम करते रहे। हां, दिन में तीन चार बार कपड़े बदलने का समय जरूर निकाल लिया था।

खैर, हमारे सरकार जी ने अमेरिका में बहुत सारे काम किये। भोजन के अलावा अमेरिकी संसद को भी संबोधित किया। अमेरिकी सांसदों को समझाया कि बच्चियों की खोज खबर (investigation) रखने से पूरे परिवार का भला होता है। भारत में तो केवल परिवार ही नहीं, पूरा मोहल्ला, पूरा समाज, और कभी कभी तो सरकार जी भी बच्चियों की पूरी खोज खबर रखते हैं। वे क्या पहन रही हैं, कहां जा रही हैं, कब जा रही हैं, किस से मिल रही हैं, कब आ रही हैं, सारी की सारी खबर रखते हैं। सरकार जी ने अमेरिका में अमेरिका को समझाया कि भारत में तो यह सब पहले से ही होता आ रहा है, अब अमेरिका में भी यह सब शुरू होना चाहिए।

सरकार ने देश में तो पहले से ही ये सब इंतज़ाम कर रखे हैं। जब सरकार जी ‘बेटी बचाओ’ का नारा देते हैं तो उनका मंतव्य वास्तव में ही बच्चियों को बचाने का होता है। बच्चियों को बचाया जायेगा तभी तो आगे चल कर उनको इन्वेस्टीगेट किया जायेगा। और जब उनको इन्वेस्टीगेट किया जायेगा तभी तो परिवार का भला होगा। देश का भला भी तभी होगा। अमेरिका को भी अपना भला करना है तो गर्ल चाइल्ड को इन्वेस्टीगेट करना ही होगा।

दूसरा काम सरकार जी ने अमेरिका में यह किया कि वहां जा कर बहुत सारे ड्रोन खरीदे। हम देसी लोग जब भी विदेश जाते हैं तो खरीददारी जरूर करते हैं। थोड़ा बहुत बजट खरीददारी के लिए जरूर रखते हैं। तो सरकार जी ने वहां, अमेरिका में ड्रोन ख़रीदे। बताया जा रहा है कि ये अमेरिकी ड्रोन भारतीय ड्रोन के मुकाबले बहुत ही अच्छे हैं। पता नहीं क्यों, ये विदेशी चीजें देसी चीजों से हमेशा ही अच्छी होती हैं। ऐसा सरकार जी भी मानते हैं। तो ये अमेरिकी ड्रोन देसी ड्रोन से निश्चित ही अच्छे हैं। वैसे भी मेहंगे हैं तो अच्छे ही होंगे।

ये ड्रोन इन्वेस्टीगेट करने के काम भी आते हैं। वैसे तो सरकार जी के पास इन्वेस्टीगेट करने के लिए बहुत सी एजेंसियां हैं, जिनका काम इन्वेस्टीगेट करना ही है, परन्तु ड्रोन इन्वेस्टीगेट करने में उन सभी, जैसे इडी, सीबीआई आदि की मदद कर सकता है। अब ड्रोन के आने से सरकार जी को इन्वेस्टीगेट करने में अधिक आसानी रहेगी। शायद गर्ल चाइल्ड को भी अधिक अच्छी तरह इन्वेस्टीगेट कर सकेंगे।

सरकार जी ने अमेरिका से ड्रोन ख़रीदा है। लोग कहते हैं कि महंगा ख़रीदा है। ऑस्ट्रेलिया के, यूके के मुकाबले महंगा खरीदा है। इन देशों ने सस्ता ख़रीदा है। पहली बात तो यह कि सरकार जी रहीस आदमी हैं। जो मन को भा जाता है, चीज हो या आदमी, मुंह मांगी कीमत पर खरीद लेते हैं। बस चीज काम की होनी चाहिए। अब देखा नहीं, कई राज्यों में दो दो टके के एमएलए करोड़ों में खरीदे। बस काम के थे, इसलिए ख़रीदे। सरकार गिरवा सकते थे, सरकार बनवा सकते थे, इसलिए ख़रीदे। बस इसी तरह राफाल ख़रीदा। और इसी तरह ड्रोन खरीदेंगे।

दूसरी बात, सरकार जी ड्रोन खरीद रहे हैं, कोई सब्जी भाजी नहीं कि मोल भाव करें, बार्गेनिंग करें। यह जो मोल भाव किया जाता है, यह आलू टमाटर खरीदते हुए किया जाता है, ड्रोन खरीदते हुए नहीं। मर्सीडीज की सवारी करने वाला भी मोल भाव तभी करता है जब वह सब्जी खरीद रहा हो। सब्जी वाले से कहता है कि भैया जरा भाव ठीक लगा ले। और साथ ही यह भी कि हम तो चुन चुन कर ही खरीदेंगे। देना है तो दे, नहीं तो अपना ठेला आगे ले जाओ। वह कभी भी मर्सीडीज़ खरीदते हुए मोल भाव नहीं करेगा। तो भाई, ड्रोन जितने में खरीद लिया, खरीद लिया। ज्यादा नुक्ताचीनी मत करो।

ऐसा नहीं है कि हमने ही सबसे महंगा ड्रोन खरीदा है। एक और हमारे जितना ही अमीर मुल्क है, मोरक्को। करीब करीब हमारे जितनी ही प्रति व्यक्ति आय है वहां के निवासियों की। उसने हमारे से भी महंगा ड्रोन खरीदा है। यह अमेरिका भी अजीब समाजवादी देश है। मोरक्को और भारत जैसे अमीर देशों को ड्रोन महंगा देता है और इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया जैसे गरीब मुल्कों को कम कीमत में दे देता है।

ऐसा मत सोचिए कि रिश्वत के चलते, किक बैक के चलते ड्रोन महंगा लिया गया है। यहां राफेल जैसी बात नहीं है। ड्रोन तो इसलिए महंगा लिया गया है क्योंकि उसमें जासूसी के सूक्ष्मतम यंत्र लगे हैं। वह गर्ल चाइल्ड का सूक्ष्म से सूक्ष्म मूवमेंट जान सकता है। वह कहां गई, कब गई, किसके साथ गई और किससे मिली, कब लौटी और क्या पहन कर गई। सब ड्रोन को पता होगा। सब ड्रोन से पता होगा। बस ड्रोन इसीलिए महंगा लिया गया है कि अब हम ड्रोन से गर्ल चाइल्ड को इनवेस्टिगेट कर सकेंगे और परिवार, समाज और देश को उन्नत कर सकेंगे।

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