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हास्य व्यंग्य युक्त प्रहसन

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शशिकांत गुप्ते

समाज के सबसे नीचे वाले सोपान पर खड़े होने के लिए,आमजन अभिशप्त है।आमजन पर किसी भी तरह के गुनाह का संदेह मात्र होने पर बेचारे को बगैर कागजी कार्यवाही के पूछताछ के लिए, पुलिसियां अंदाज में ले जाया जाता है,और तहक़ीक़ात के नाम पर कानून की मर्जी हो उतने दिन हवालात में रखा जा सकता है?
देशी फिल्मों में नाटकीयता से बेगुनाह अभिनेता को सिर्फ गिरफ्तार ही नहीं किया जाता,बल्कि उसे सीधे तृतीय श्रेणी की यंत्रणा ( third degree torture) दी जाती है।ऐसे दृश्य मनोरंजन के लिए फिल्माए जातें हैं?
यह मनोरंजन की आड़ में लोकतंत्र को कमजोर करने की हिंसक साज़िश जैसा प्रतीत होता है?
वास्तविक जीवन में जो दृश्य दिखाई दे रहें हैं, वे दृश्य कानून व्यवस्था पर गम्भीर प्रश्न उपस्थित करतें हैं? ऐसा विपक्षियों का आरोप है रसूखदार आरोपी तबतक अपराधी नहीं बनाया जाता है, जबतक उसके खिलाफ ठोस सबूत नहीं मिलते हैं।
( एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि, जैल में बन्द अधिकांश लोग तो विचाराधीन कैदी है)
रसूखदार को समन्स भी निम्न पंक्तियों में जो भाव प्रकट हो रहे हैं,उसी तर्ज पर भेजा जाता है।
स्वीकार आमंत्रण किया,रखा हमारा मान
कैसे करें कृतज्ञता,स्वागत है श्रीमान
रसूखदार जब पेश होतें है तो उनका अंदाज इस तरह का होता है। उनसे कानून पूछता है।
आप यहाँ आए किस लिए
आप ने बुलाया इसलिए
आएं हैं तो काम ही बताइए
कानून कहता है कि,
पहले जरा आप मुस्कराइए
ऐसे दृश्य पर कौन ऐसा कठोर दिल वाला व्यक्ति है,जो मुस्कुराएगा नहीं?
रसूखदार के लिए कानून, यह पंक्तियां भी गुनगुना सकता है।
तेरे बिन सुने नैन हमारे
बाट तकत रहें सांझ सकारे
आमजन तो ख़ौफ़ में यह पंक्तियां गुनगुना सकता है।
रात जो आए ढल जाए प्यासी
दिन का है दुजा नाम उदासी
निंदिया न आए अब मेरे द्वारे
आमजन की तो वैसे भी नींद उड़ी हुई है।जब से अच्छेदिन के
सपने टूट के चकनाचूर हो गएं हैं?छद्म आर्थिक विकास के कारण
मध्यमवर्गीय अपने परिवार का बोझ उठाने में असमर्थ हो गया है।
बेचारा सड़क पर गैस सिलेंडर उठाकर नाचते गाते विरोध करने की नौटंकी भी नहीं कर सकता है।
आमजन की स्थिति तो इस पंक्ति जैसे हो गई है।
ऊपर वाला जान कर अंजान है
अपनी तो हर आह एक तूफान है
ऊपर वाला शब्द ही सियासी है।किसी भी गुनहगार को ऊपर वाले का वरदहस्त मिल जाए तो,यह कहावत चरितार्थ हो जाती है।
जब सैयां भए कोतवाल तो डर काहे का
रसूखदार के लिए तो कानून के हाथ बहुत ही छोटे हो जातें हैं?आमजन के लिए कानून के हाथों की लंबाई असीमित हो जाती है।
कभी पाँच ग्राम नशीला पदार्थ बहुत बड़ा अपराध हो सकता है,तीन हजार किलो तो…. ?
उक्त मुद्दे पर लेखक को इस बात का पूर्ण एहसास है, प्रश्न वाचक चिन्ह अंकित करना ही समझदारी है।
ऊपर वाले की जय हो।
आमजन के ऊपरवाला मतलब सर्वशक्तिमान जो है वही ऊपर वाला है।
आमजन उससे यही गुहार लगाता है।
सर पे मेरे तू जो अपना हाथ ही रख दे
फिर तो भटके राही को मिल जाए रस्ते
दिल की बस्ती बिन तेरे वीरान है

उपर्युक्त प्रहसन पूर्ण काल्पनिक है।इस प्रहसन का किसी भी व्यक्ति संस्था या दलबल से कोई सम्बंध नहीं है शुद्ध मनोरंजन के लिए लिखा हुआ यह हास्य युक्त व्यंग्य है।
यह स्पष्टीकरण लेखक पूर्ण होश में भगवान को हाजिर जान कर दे रहा है।
लेखक इस सूक्ति के कारण आश्वस्त है।
क्षमा वीरस्य भूषणम

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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