Site icon अग्नि आलोक

सावरकर आज का सबसे घृणित और विवादित व्यक्तित्व

Share

मुनेश त्यागी 

      आज फिर विनायक दामोदर सावरकर चर्चा में है। राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि सावरकर अंग्रेजों के साथ था उसने अपनी रिहाई के लिए अंग्रेजों से माफी मांगी और गांधी, नेहरू और पटेल ने कभी भी जेल से रिहाई की मांग नहीं की।

       सावरकर के बारे में जानने के लिए यह जरूरी है कि सावरकर के दो रूप हैं 1911 से पहले का स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी सावरकर और 1911 के बाद का अंग्रेजों से माफी मांगने वाला, भारत में दो राष्ट्र के सिद्धांतों को प्रतिपादित करने वाला और हिंसा और नफरत की राजनीति करने वाला सावरकर। 19 11 से पहले के क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी सावरकर श्रद्धा और सम्मान के योग्य हैं। मगर 1911 के बाद का रीढ़विहीन आत्मसमर्पण, अंग्रेजों से बिना शर्त अपनी रिहाई की माफी मांग करने और हिंसा, हत्या, जनता की एकता तोड़ने, हिंदू मुस्लिम में नफरत फ़ैलाने और हिंदुत्ववादी राजनीति करने के कारण सावरकर बिल्कुल भी श्रद्धा और सम्मान के काबिल नहीं रह जाते।

     सावरकर ने अपने प्रारंभिक जीवन में 1907 में इंग्लैंड में रहते हुए 1857 भारत का प्रथम स्वतंत्रा संग्राम पुस्तक लिखी। पुस्तक में वे कहते हैं कि “हिंदू मुसलमान दोनों भारत के धरतीपुत्र हैं। दोनों एक ही मां की संतानें हैं। दोनों ही खून के रिश्ते से भाई भाई हैं।” 1907 के बाद सावरकर को दो हत्याओं के मामले में आरोपी  और गुनाहगार मांनते हुए अंग्रेज अदालत ने उन्हें 50 साल की सजा दी और अंडमान निकोबार की जेल में भेज दिया।

     जेल की कठिन परिस्थितियों से सावरकर टूट गए और डर गए। इसी डर के परिणाम स्वरूप उन्होंने अपने पूर्व के क्रांतिकारी जीवन को भुलाकर और तिलांजलि देकर, अंग्रेजों से माफी मांगनी शुरु कर दी और उन्होंने 191, 1913, 1914, 1917 और 1920 में 5 माफीनामें लिखें और जिसमें अंग्रेज सरकार से मांग की कि “अगर सरकार मुझे जेल से रिहा कर देती है तो वह जैसा चाहेगी मैं वैसा करूंगा।” 

     सावरकर के साथ-साथ भारत के 18000 स्वतंत्रता सेनानी अंडमान और निकोबार जेल में थे। उन क्रांतिकारियों में से किसी ने भी माफी नहीं मांगी, उन्होंने वही आजीवन सजा काटी। सैकड़ों क्रांतिकारियों ने तमाम कष्ट सहे, वहीं मर गए, पागल हो गए, मगर किसी ने भी माफी नहीं मांगी। वहां पर 173 क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई। 147 स्वतंत्रता सेनानी कैदियों ने देश से भागने के प्रयास किए, सफल ना हो पाए और शहीद हो गए। हजारों क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों को आजन्म कारावास पूरा किया, तो उन्हें 1942 के आंदोलन में भाग लेने के कारण फिर से अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और फिर से जेल में ठूंस दिया। उन्होंने जेल से रिहा होने के लिए कभी भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी।

       यहां पर यह जानना जरूरी है कि अपनी रिहाई के लिए अंग्रेजों को दिए गए अपने माफीनामों में सावरकर ने क्या-क्या कहा था? सावरकर ने अपने माफीनामा में यह भी लिखा था कि मेरा ट्रायल एकदम “फेयर था प्रॉपर था।”और अंग्रेजों द्वारा किए गए तमाम सुधार सही थे।”सरकार जैसा चाहे मैं वैसा करने को तैयार हूं.”

      जेल में रहते हुए 1923 में सावरकर ने एक निबंध लिखा “हिंदुत्व, हिंदू कौन?” इस निबंध में उन्होंने भारत के इतिहास में पहली दफा प्रतिपादित किया कि यहां दो राष्ट्र हैं,,,, “एक हिंदू और एक मुसलमान, ये दोनों साथ नहीं रह सकते” और इसके बाद से सावरकर लगातार हिंदुत्व की राजनीति के तहत भारत की जनता की एकता तोड़ते रहे, हिंदू और मुसलमान के बीच नफरत की खाइयां बढ़ाते रहें। इसका फल उन्हें यह मिला कि अंग्रेजों ने उनकी ₹60 प्रति माह पेंशन बांध दी थी।

     6 अप्रैल 1925 को सावरकर ने लिखा था कि “मैं स्वराज के विचार से कोई संबंध नहीं रखूंगा” और उन्होंने मनुस्मृति को चार वेदों के बाद “पांचवा वेद” बताया। जेल से रिहा होने के बाद सावरकर ने कभी भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम  में भाग नहीं लिया। भारत के शहीदों,,,,, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र नाथ लाहिडी, रोशन सिंह, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, यतींद्रनाथ दास आदि को बचाने के लिए उन्होंने कोई कार्यवाही, कोई कोशिश या प्रयास नहीं किया।

      जेल से आने के बाद वह जनता को बांटने और टू नेशन थ्योरी का प्रचार प्रसार करने में जुट गए। इसी सिद्धांत को 1939-40 में मुस्लिम लीग ने भी अपना लिया। 1941-42 में मुस्लिम लीग के साथ हिंदू महासभा ने बंगाल,सिंध और नोर्थ वैस्ट फ्रंट सरकार में भागीदारी की। यानी हिंदू महासभा और मुस्लिम दोनों ने सिंध प्रांत और  बंगाल में सरकार बनाईं। इसी सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिंदू महासभा के सदस्य के रूप में उप मुख्यमंत्री बने।

       1942 में सावरकर ने हिंदुओं का आह्वान किया कि वे अंग्रेजी सरकार के समर्थन में सेना में शामिल हों और 1 लाख से ज्यादा सैनिक अंग्रेज सरकार में शामिल हो गए। बाद में इसी अंग्रेज सेना ने आजाद हिंद फौज के हजारों सैनिकों की हत्या की थी।

       सावरकर को गांधी हत्या में आरोपी बनाया गया था, मगर पुख्ता सबूत न होने का बहाना बनाकर और जिला जज आत्माराम पर दबाव डालकर उन्हें सजा होने से बचा लिया गया। गांधी हत्या में सावरकर के होने का विवाद फिर भी बना रहा। फिर 1970 में जीवन लाल कपूर कमीशन की स्थापना की गई जिसने अपनी रिपोर्ट में जोरदार तरीके से कहा कि गांधी की हत्या की साजिश करने वालों में हिंदू महासभा के सदस्यों के साथ, सावरकर ही सबसे बड़ा दोषी था।

       पूरी की पूरी r.s.s. बीजेपी और हिंदू महासभा और अब तो शिवसेना भी सावरकर की भूमिका को लेकर उपरोक्त तथ्यों से परेशान हैं, तिलमिला गए हैं और आक्रामक हैं। मगर हकीकत यह है कि वह उपरोक्त तथ्यों और सवालों से लगातार भागते नजर आते हैं। सावरकर ने यह भी प्रतिपादित किया था कि “राजनीति का हिंदूकरण करो” और “हिंदुओं का सैन्यिकरण करो” उसी का रूप आज हम आरएसएस बीजेपी और हिंदू महासभा के रूप में देखते हैं।

      यहीं पर एक खुलासा करना भी जरूरी है कि  लालकृष्ण आडवाणी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि गोपाल गोडसे कभी भी r.s.s. का मेंबर नहीं रहा। सावरकर के इस बयान का प्रतिवाद करते होगे नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने 24 जनवरी 1994 को फ्रंट लाइन को एक बयान दिया जिसमें उसने कहा था कि “नाथूराम गोडसे आर एस एस का बौद्धिक था, उसने कभी भी आर एस एस नहीं छोडी थी। हम सारे भाई, आर एस एस  में ही पले बढ़े हुए थे और हिंदू महासभा ने  या आर एस एस ने नाथूराम गोडसे को कभी भी डिसओन नहीं किया  नाथूराम गोडसे की कार्यवाहियों का कभी भी प्रतिवाद नहीं किया।”

     उपरोक्त तथ्यों और हकीकत की रोशनी में हम देखते हैं कि वी डी सावरकर एक विवादित व्यक्तित्व हैं। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, “1857 भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” नाम की एक मशहूर किताब लिखी। हिंदू मुसलमानों को भाई भाई बताया और बाद में वे अंग्रेजों द्वारा जेल से छोड़े जाने के बाद अंग्रेजों के कहने पर और अंग्रेजों को दिए गए अपने वायदे के अनुसार, हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने के अभियान में लग गए, हिंदुत्व का सिद्धांत प्रतिपादित किया और भारत में “टू नेशन थ्योरी” यानी “द्विराष्ट्र के सिद्धांत” का प्रतिपादन किया।

      इसका लाभ उठाकर अंग्रेजों ने 1947 में भारत के तीन टुकड़े कर दिए, जिसका खामियाजा भारत की जनता आज भी भुगत रही है। काश! सावरकर अंग्रेजों को दिए गए वचन पर द्विराष्ट्र सिद्धांत का और “हिंदुत्व” का प्रतिपादन ना करते, भारत की जनता की एकता तोड़ने का काम ना करते और भारत में हिंदू मुसलमानों की बीच नफरत और हिंसा की राजनीति का प्रतिपादन ना करते और दूसरे क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह अपने आजन्म कारावास की सजा पूरी करते तो भारत की जनता को भारत के इतिहास के ये सबसे काले दिन ना देखने पड़ते।

Exit mobile version