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‘आजाद हिंद फौज’ का विरोध किया था सावरकर ने

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प्रवीण मल्होत्रा 

प्रधानमन्त्री मोदी के राजनीतिक गुरु वीडी सावरकर ने ‘आजाद हिंद फौज’ का विरोध किया था और स्वतंत्रता सेनानियों से लड़ने के लिये ब्रिटिश फौज में भारतीयों की भर्ती के लिये मुहिम चलाई थी. मोदीजी के ही दूसरे राजनीतिक गुरु डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, जो भाजपा की पूर्ववर्ती राजनीतिक पार्टी #जनसंघ के संस्थापक थे –  1941 में जब नेताजी सुभाष अंग्रेजों से अंतिम युद्ध की योजना बना रहे थे और ‘गांधीजी’ के आव्हान पर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की तैयारी चल रही थी, जब अधिकांश राष्ट्रवादी नेता अंग्रेजों की जेलों में बंद थे तब –  ‘भारत विभाजन’ की मुख्य योजनाकार ‘मुस्लिम लीग’ के साथ सहयोग कर रहे थे.

यह सर्वविदित है कि डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी 1941 में  बंगाल की ‘मुस्लिम लीग’ सरकार में, जिसके मुख्यमंत्री फजलुर्रहमान थे, वित्तमंत्री का दायित्व निर्वाह कर रहे थे. इन्हीं फजलुर्रहमान ने 1940 में मुस्लिम लीग के कराची अधिवेशन में भारत विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण का प्रस्ताव रखा था. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को दबाने के लिये मुस्लिम लीग सरकार के वित्त मंत्री डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बंगाल के अंग्रेज गवर्नर को पत्र लिखा था और उन्हें आंदोलन को कठोरतापूर्वक कुचलने के लिये अपने ‘बहुमूल्य सुझाव’ भी दिये थे.

अब वही मोदीजी, जिनके प्रेरणा पुरुष सावरकर और डॉ. मुखर्जी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के घोर विरोधी थे, नेताजी की 125 वीं जयंती के राष्ट्रीय कार्यक्रम का शुभारंभ करने कोलकाता जाते हैं तो उसके पीछे छिपे एजेंडे को आसानी से समझा जा सकता है. मोदीजी ने सुभाष जयंती को राष्ट्रीय ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने का आव्हान किया है. जबकि गुरुदेव रवींद्रनाथ टेगौर (ठाकुर) ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को ‘जननायक’ कहा था. इसलिये सुभाष जयंती को ‘जननायक दिवस’ के रूप में ही मनाया जाना चाहिये.

‘पराक्रम दिवस’ तो पूर्व से ही 1971 में भारतीय सेना के अभूतपूर्व शौर्य और पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय तथा बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के उदय की याद में 16 दिसम्बर को मनाया जाता है. वह पराक्रम दिवस भी है और शौर्य दिवस भी है. पराक्रम या शौर्य दिवस किसी ऐतिहासिक अभूतपूर्व घटना से जुड़ा होता है न कि किसी महान व्यक्ति के जन्म से. जिस तरह ‘शहीद दिवस’ महात्मा गांधी के बलिदान से जुड़ा हुआ है और 30 जनवरी को मनाया जाता है. 23 मार्च भी ‘शहीद दिवस’ ही है. 1930 में उस दिन महान क्रांतिकारी भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेज सरकार ने फांसी की सजा दी थी.

23 जनवरी को एक भावी जननायक का जन्म हुआ था. इसलिये इस दिवस को उनकी याद में ‘जननायक दिवस’ के रूप में ही मनाया जाना चाहिये. पराक्रम तो नेताजी के ओजस्वी नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने किया था. आजाद हिंद फौज ने जिस दिन इम्फाल को अंग्रेजों से मुक्त कराया था वह था पराक्रम या शौर्य दिवस! इसी तरह जिस दिन यानी 18 अगस्त 1945 को नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ और एक महान सेनानायक और देश की आजादी के महायोद्धा ने अपना बलिदान दिया उस 18 अगस्त के दिन को ‘आत्मतोसर्ग दिवस’ के रूप में मनाते हुए नेताजी को हर वर्ष उसी तरह श्रद्धांजलि दी जाना चाहिये जिस तरह हम 30 जनवरी को अपने ‘बापू’ को याद करते हैं और अपने श्रद्धासुमन उन्हें अर्पित करते हैं तथा 23 मार्च को अमर शहीदों को याद करते हैं.

जहां तक मोदीजी और भारतीय जनता पार्टी का सवाल है उन्हें किसी उधार लिये हुए नाम की जगह अपने पूर्वज वीडी सावरकर और डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नाम पर वोट मांगना चाहियें न कि गांधीजी, नेताजी या सरदार के नाम पर. क्योंकि ये तीनों ही उस विभाजनकारी और साम्प्रदायिक विचारधारा के विरोधी थे जिनके झंडाबरदार आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी हैं.

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