*सुसंस्कृति परिहार
आजकल सनातन की बात पर हमारी सरकार बहुत ज़ोर दे रही है वजह साफ है चुनाव करीब हैं और चुनाव जिताने वाले मुद्दे नदारद हैं।देश में कुछ जनहित के काम हुए हों तो वे गरजें। इसीलिए कभी ,राममंदिर,कश्मीर से 370 हटाना या देश भर में नामों के बदलाव की सनक इंडिया पर अटक गई है।शायद भारत ही भाजपा का सहारा बन जाए। इसलिए अगले सत्र में मुहर लग सकती है।इसी कड़ी में अब हिंदुत्व की जगह सनातन को माध्यम बनाया जा रहा है सनातन के प्राकृतिक धर्म की सरासर अवज्ञा करने वाले वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिना की बात नहीं करते।वे उन बिंदुओं पर ज़ोर दे रहे हैं जो सनातन के कमज़ोर पहलू हैं मसलन सबको शिक्षा ना देने की बात, स्त्रियों को घर संभालने की बात,जात पात, छूआछूत की बात , सामंतशाही की बात आदि आदि। सनातन धर्म इतना कमज़ोर क्यों हुआ,जैन, बौद्ध धर्म क्यों जन्में इस पर चर्चा होनी चाहिए?तो सनातन की कमज़ोरियां उजागर हो जाती हैं। फिर यह भी सोचने की बात है कि नेपाल से यह क्यों खत्म हुआ।जो इकलौता सनातन का ठेकेदार देश था। एक छोटा सा देश इसे सुरक्षित नहीं रख पाया तो इतने विशाल देश में सनातन कैसे चल सकता है हमने जो सभी धर्मों का स्वागत किया है, हम अतिथिदेवो भव की भावना से लैस थे तब सनातन का मूल्य था आज उसे कहां पहुंचा दिया गया है। यहां शताब्दियों से रहने वाले मुसलमान और ईसाई अब कांटे की तरह चुभ रहे हैं।हमने सिंधी, तिब्बती ,बांग्ला शरणार्थियों को शरण दी किंतु रोहिंग्या के साथ पिछले सालों कैसा बर्ताव किया ।सनातन भूल गए वसुधैव कुटुम्बकम भूल गए। सनातन में विद्वानों की पूजा होती थी जब गोली से उड़ाया तो जूं भी नहीं रेंगी।
सनातन आज एक पुरातन विचारधारा है जिसमें मनुसंहिता के मुताबिक लोगों को चलना होगा।यह अब नहीं चल सकती इसको बहुत पहले खारिज किया जा चुका है आज़ादी के बाद भारत ने अपने लिए कड़ी मेहनत के बाद डाक्टर भीमराव अम्बेडकर के साथ सैकड़ा भर विद्वत लोगों ने मिलकर जो संविधान बनाया उसमें जनता का,जनता के लिए जनता द्वारा शासन का अध्याय है जो हमें लोकतांत्रिक बनाता है।सभी को बराबरी के अधिकार हैं सबको पढ़ने लिखने ,अपने विचार अभिव्यक्त करने की आज़ादी है।सबको समान अवसर मिलने का प्रावधान है।दलित और आदिवासियों को आरक्षण उन्हें मूलधारा से जोड़ने दिया गया है।हमारा संविधान चाहता है इसमें रहने वाले सभी धर्मों के लोगों को इसे मनाने का अधिकार मिला हुआ है।स्त्री -पुरुष और किन्नरों को चुनाव लड़ने , पढ़ने लिखने, नौकरी तथा व्यवसाय का अधिकार है। छुआछूत,सती प्रथा,बाल विवाह जैसी सनातन प्रथाओं को ख़त्म करने कानून बनाए गए हैं। विधवा विवाह, प्रेम-विवाह,अन्तरजातीय विवाह को संरक्षण दिया गया हैअंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ विज्ञान और तर्क वितर्क से लोगों को जागृत करने के प्रयास चलते रहे किंतु इस दशक में जो हो रहा है वह विधि सम्मत नहीं सदन में बहुमत सम्मत से हो रहा है।देश के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का परिपालन ना कर सदन में बहुमत का दुरुपयोग कर अध्यादेश जारी हो रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष का अनादर हो रहा है।ये सब फासिस्ट लोग ही कर सकते हैं ऐसे हालात में प्रगतिशील लेखकों के सम्मेलन में उदयनिधि मारन ने जो कुछ कहा वह सत्य है सनातन में जो विकार है उसे डेंगू, मलेरिया आदि बीमारियों की तरह ख़त्म कर देना चाहिए।इस कथन पर एक हिंदू धर्म के ठेकेदार ने उनकी गर्दन काट कर लाने वाले को दस करोड़ का खुला आफर दिया है।उधर डीएमके के एक राजा ने भी इसकी तुलना एचआईवी और कुष्ठ से कर दी है इसमें गलत क्या है ।लाइलाज कैंसर तो नहीं कहा ।सरकार गर्दन काट लाने वाले बयान पर चुप्पी साध ली है क्योंकि सरकार तो पुरातन सनातन धर्म के प्रचार हेतु छै मंत्रियों की बैठक में यह आदेश देते हैं कि सनातन के विरुद्ध बोलने वालों से निपटें यानि सरकार पूरी तरह से फासिस्टवादी है।उसे संविधान से कुछ लेना देना नहीं है।संघ की मंशानुरूप इंडिया को भारत और भारत के संविधान को नष्ट कर जनता को सनातन की दुहाई देकर चुनाव की दिशा भूख ,गरीबी, मंहगाई, बेरोजगारी और अत्याचार से हटाकर सनातन की ओर ले जाना चाहती है।सनातन धर्म जब ये कहता है धर्म की जय हो /अधर्मियों का नाश हो /प्राणियों में सद्भावना हो/ विश्व का कल्याण हो,तो उस सनातन यानि इंसानियत के धर्म के मर्म को समझना चाहिए। उसमें आज जो बातें अप्रासंगिक है उसे निकाल कर ही हम सही दिशा में बढ़ सकते हैं।पोंगापंथी और मूर्खाधिपीश ही इस महान धर्म को विनष्ट करने उतारु है। संविधान सनातन सम्मत है उससे छेड़छाड़ ना केवल संविधान बल्कि सनातन को भी ले डूबेगी। सावधान रहें।झूठे सनातनियों से।