Site icon अग्नि आलोक

एनआरसी डब्बे में बंद:कैग रिपोर्ट में 260 करोड़ का घोटाला

Share

सनत जैन

रिजेक्शन स्लिप नहीं दे पाए
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर नवंबर 2019 में स्टेट कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला को मध्य प्रदेश सरकार के पास डेपुटेशन पर भेज दिया गया। 24 दिसंबर 2019 को हितेश देव सरमा को स्टेट कोआर्डिनेटर बनाया गया। जब उन्होंने जांच की तो उसमें भी भारी गड़बड़ियां पाई गई। जिसके कारण आज तक रिजेक्शन स्लिप के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। जुलाई 2022 में वह भी सेवा निवृत हो गए। उसके बाद इसकी जिम्मेदारी गृह सचिव मजूमदार के पास आई। उन्होंने इस मामले में कोई रुचि नहीं ली। असम सरकार ने भी यह मामला ठंडा बस्ते में डाल दिया है. सरकार जानकारी देने से भी बच रही है।
धड़ाधड़ बन रहे हैं आधार कार्ड
एनआरसी रजिस्टर का मामला ठंडा पड़ने के बाद पिछले कुछ समय से लाखों लोगों के नाम असम की मतदाता सूची में जोड़े जा रहे हैं। नए आधार कार्ड भी बनाए जा रहे है। सरकार की योजनाओं का लाभ भी दिया जा रहा है। हजारों करोड रुपए खर्च हो जाने और लाखों परिवार कई वर्षों तक प्रताड़ित करने के बाद असम में पुरानी स्थिति बनी हुई है। इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए। यहां की जनता को यह समझ में नहीं आ रहा है। अभी भी प्रताणना और राजनीति से एक वर्ग नारकीय जीवन जी रहा है।
असम में बांग्ला प्रवासियों का इतिहास
स्वतंत्रता के पहले 1905 में बड़ी संख्या में अंग्रेजों ने बांग्ला भाषा के लोगों को यहां पर बुलाकर बसाया था। 1951 की जनगणना में इनको शामिल किया गया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर इनका एक अलग रजिस्टर तैयार किया गया था। 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच में लड़ाई हुई। तब असम में कुछ बांग्लादेशी शरणार्थी के रूप में आए थे तत्कालीन इंदिरा सरकार ने इन्हें शरण देने का आदेश दिया था। 1985 में हुए असम समझौते में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय 1971 में जो बांग्लादेशी असम में आकर बसे थे। उन्हें भारत का नागरिक मान लिया गया था। 2010 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दो जिलों के लिए एनआरसी पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यह प्रोजेक्ट पुनः शुरू किया गया। प्रतीक हजेला को प्रोजेक्ट का कोआर्डिनेटर बनाया गया था। 2018 में इसका पहला ड्राफ्ट तैयार हुआ था। इस प्रस्ताव में 40 लाख लोगों को एनआरसी से बाहर कर दिया गया था। जांच के बाद उसके बाद एक सप्लीमेंट्री सूची जारी की गई। जिसमें 19 लाख लोगों को संदिग्ध माना गया उसके बाद से यह मामला ठंडा पड़ा हुआ है। असम में इसको लेकर लगातार राजनीति हो रही है। असम में बांग्ला भाषी नागरिकों के ऊपर हमेशा तलवार लटकती रहती है। भारतीय नागरिक होते हुए भी अधिकांश एक धर्म विशेष के होने के कारण उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। जिसके कारण असम में राजनीतिक और सामाजिक टकराव बना हुआ है।
1.85 लाख घुसपैठिये घोषित 73 डिटेंशन सेंटर में पिछले 11 वर्षों से यह खेल चल रहा है। असम फॉरेन ट्रिब्यूनल ने 1.85 लाख लोगों को घुसपेठिया घोषित किया गया है। जो डिटेंशन सेंटर बनाये गये थे। अब अधिकांश खाली हो चुके हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मात्र 73 लोगों को डिटेंशन सेन्टर में रखा गया है। पिछले 9 वर्षों से एनआरसी के नाम पर असम में जो खेल खेला गया है। उसने मानवता को एक तरह से शर्मसार किया है। देश एवं प्रदेश के सरकारी खजाने से हजारों करोड़ रूपया खर्च हो गया। 2 लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हो गए। लाखों लोगों के ऊपर अभी भी तलवार लटक रही है। विदेशी घुसपेठियों का मामला अभी भी वैसा है जैसा 11 वर्ष पहिले था। राजनीति का एक स्वरूप यह भी है।

Exit mobile version