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मन का विज्ञान : टेलीपैथी से ध्यान में प्रवेश

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 डॉ. विकास मानव

      टेलीपैथी हमें अचेतन के तल पर प्रवेश करने के बाद उपलब्ध होती है। लेकिन तीसरे तल पर टेलीपैथी में प्रवेश करने के लिए हमारे भीतर निःस्वार्थ भाव होगा, तो ही अचेतन हमारी मदद करेगा। सबका हित, सबका मंगल, यह भाव गहन होगा तो ही हम इसमें उतर पाएंगे।

       यदि हम किसी का अहित चाहेंगे तो हम इस प्रयोग में नहीं उतर पाएंगे। क्योंकि यह विधा जन कल्याण के लिए ही है। यदि हमारा विचार, हमारा भाव सकारात्मक होगा तो ही हम इसमें गति कर पाएंगे। नकारात्मकता के लिए इसमें कोई जगह नहीं है। 

      जिस व्यक्ति को भी हम टेलीपैथी से संदेश देंगे यदि हमारा संदेश उसके हित में होगा और वह हमारे प्रति प्रेमपूर्ण होगा, तो ही वह ग्राहक बन पाएगा । यदि हमारा संदेश उसके अहित में होगा तो अचेतन हमारा साथ नहीं देगा और प्रकृति भी हमारा साथ नहीं देगी। 

*टेलीपैथी में नकारात्मकता के लिए जगह क्यों नहीं?*

      जब हम टेलीपैथी में उतरकर संदेश संप्रेषित करेंगे और यदि संदेश नकारात्मक है तो अचेतन हमें बार बार सचेत करेगा। हम ने अनुभव किया है कि जब कोई काम हमारे अनुकूल नहीं था, जिसमें दूसरे को चोट पहुंचने की संभावना थी, एन वक्त पर हमारे अचेतन ने भीतर से कहा भी था कि “यह ठीक नहीं है…।” लेकिन अक्सर हमने भीतर की इस आवाज को दबाया है और बाद में पछतावा हुआ है।

      दूसरे, नकारात्मक काम करने के लिए हमें प्रयास करना होगा और सकारात्मक में हम बिना प्रयास के सहज बहने लगते हैं। यदि किसी का मंगल करने के लिए हम कुछ करते हैं तो हम स्वयं को आनंदित महसूस करते हैं। और यदि हम किसी का अहित करने के लिए कुछ करते हैं तो हम तनाव में आ जाते हैं और यही तनाव हमें टेलीपैथी में प्रवेश नहीं करने देगा। 

      टेलीपैथी के लिए पहले हमें अपने शरीर को उस तल पर ले आना है जिस तल पर टेलीपैथी की जा सके। यानि शांत और शिथिल अवस्था। इस अवस्था के लिए हमें सुबह थोड़ा व्यायाम प्राणायाम करना होगा जिससे टेलीपैथी के समय बाधा पहुंचाने वाले तत्व पसीने के द्वारा बाहर चले जाएं। सुबह सूर्योदय से पहले दौड़ना अच्छा होगा। सुबह दौड़ने से बेहतर और कोई योग नहीं है।

       इसमें गहरी श्वास से प्राणायाम का काम भी हो जाता है और पसीना बहने से शरीर हल्का भी हो जाता है। टेलीपैथी के लिए हमें इस दौड़ने वाले योग से गुजरना होगा। 

यदि हम सुबह व्यायाम करके शरीर से पसीना बहा देते हैं तो हमारे भीतर से सारे अनावश्यक तत्व बाहर चले जाएंगे और ज्यादा प्राण वायु हमारे भीतर प्रवेश करेगी जो हमारी सजगता को बढ़ाएगी। 

      टेलीपैथी के लिए हमें अचेतन में प्रवेश करना होगा। और अचेतन में प्रवेश करने के लिए हमारे शरीर का उस तल पर आना जरूरी है जिस तल पर वह नींद में होता है। और यदि ज्यादा प्राण वायु हमारे भीतर नहीं होगी तो हम तुरंत नींद में चले जाएंगे, जबकि टेलीपैथी के लिए हमें जागना है। और शरीर को नींद में प्रवेश करवाना है।

       इसलिए टेलीपैथी में हमारे शरीर का हल्का होना आवश्यक है। और शरीर हल्का होगा व्यायाम और प्रणायाम से। और दौड़ना सबसे अच्छा व्यायाम और प्राणायाम है। इसमें दौड़ने से व्यायाम होता है और श्वास के तेज चलने से प्राणायाम भी हो जाता है।

      यदि हम सुबह पंद्रह मिनट से आधा घंटा दौड़ लगाते हैं तो हमें किसी प्राणयाम की कोई जरूरत नहीं है। 

टेलीपैथी में हम भाव और विचार दोनों संप्रेषित कर सकते हैं। यदि दिन में हमें इसका प्रयोग करना है तो भाव संप्रेषण बेहतर होगा क्योंकि दिन में हम जागे हुए होते हैं और जागने में हमारा अचेतन सोया हुआ होता है।

      यदि हम अपने को अचेतन के तल पर ले जाकर विचार संप्रेषण करेंगे, तो वह व्यक्ति यदि सोया हुआ होगा तो ही कर पाएंगे, क्योंकि उसका अचेतन जागा हुआ होगा। और यदि वह जागा हुआ है और अपने चेतन मन से काम में उलझा हुआ है, तो संप्रेषण मुश्किल है क्योंकि उसका अचेतन सोया हुआ है। 

      तो दिन में टेलीपैथी संप्रेषण में हमें विचार नहीं, भाव संप्रेषित करने हैं। क्योंकि वह अपने ही विचारों में इतना उलझा हुआ है कि हमारे विचारों के लिए उसके भीतर जगह ही नहीं है।

      हां उसका भाव वाला तल थोड़ा शांत होता है इसलिए दिन में भाव संप्रेषित करना सहज होगा। लेकिन भाव संप्रेषण के लिए भी हमें अचेतन के तल पर जाना होगा। 

यदि रात में हमें टेलीपैथीक संदेश देना है तो भाव और विचार दोनों संप्रेषित कर सकते हैं। 

      इसके लिए सुबह व्यायाम, प्राणायाम या फिर दौड़ कर शरीर में प्राण वायु को बढ़ाना है, और दिन में श्रम करके शरीर को थोड़ा थकाना है। शरीर यदि थका हुआ होगा तो हमें विश्राम में जाना आसान होगा।

      विश्राम में अपने शरीर को हमें उस तल पर ले आना होगा जिस तल पर वह व्यक्ति है। वह व्यक्ति सोया हुआ है। उसका अचेतन जागा हुआ है, और सपने देख रहा है। हमारा संदेश उसके सपनों में प्रवेश कर उसके अचेतन में चला जाता है। 

     वह व्यक्ति सोया हुआ है, और हम जाग रहे हैं। उसका चेतन मन सोया हुआ है और अचेतन जागा हुआ है। हमारा चेतन जागा हुआ है और अचेतन सोया हुआ। 

      हमें अपने चेतन मन को शिथिल करते हुए, अचेतन को जगाकर संदेश प्रेषित करना है, ताकि उसका अचेतन हमारा संदेश ग्रहण कर सके। 

यदि हमारे शरीर में प्राण तत्व ज्यादा होगा तो ही हम अपने अचेतन को जगा सकेंगे। यदि प्राण तत्व की कमी होगी तो अचेतन के जागने के साथ ही हम नींद में प्रवेश कर जाएंगे, सपनों में प्रवेश कर जाएंगे और संदेश प्रेषित नहीं कर पाएंगे। 

      प्राण तत्व हमें सजग बनाए रखेंगे, नींद में नहीं जाने देंगे। और प्राण तत्व ही हमारे अचेतन की उर्जा को सक्रिय कर संदेश को प्रेषित करेंगे। बिना प्राण के संप्रेषण असंभव होगा। इसीलिये योग में प्राणायाम का महत्वपूर्ण स्थान है। 

      विश्राम में बैठना है, रीढ़ सीधी हो, आराम कुर्सी पर भी बैठ सकते हैं। और विश्राम में लेट भी सकते हैं। लेटने में अचेतन में प्रवेश आसान होगा लेकिन सजग रहना होगा नहीं तो नींद में चले जाने की संभावना है। बैठने में नींद में प्रवेश नहीं करेंगे लेकिन अचेतन में प्रवेश थोड़ा मुश्किल होगा, लेकिन शरीर यदि थका हुआ होगा और रीढ़ सीधी होगी तो प्रवेश में मुश्किल नहीं होगी। 

यदि शरीर हल्का और प्राण तत्व से भरा हुआ होगा तो बैठकर और विश्राम में लेटकर दोनों तरह से अचेतन में जाना आसान होगा। 

     शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ देंगे, शरीर पर कोई तनाव नहीं, कहीं कोई अंकड़न नहीं। 

     भाव करेंगे, “शरीर शिथिल हो रहा है… शरीर शिथिल हो रहा है…शरीर शिथिल हो रहा है…।” थोड़ी देर में ही शरीर शिथिल होने लगेगा। श्वास नाभी तक गहरी चलने लगेगी। श्वास को नाभि तक स्वतः ही चलने देना है, अपनी ओर से श्वास को किसी प्रकार की गति नहीं देना है। थोड़ी ही देर के बाद शरीर उस भावदशा में चला जाएगा जिस भावदशा में वह नींद में होता है। 

शरीर नींद की भावदशा में होगा और हम भीतर जागे हुए होंगे। कुछ समय बाद शरीर की शिथिलता के बाद मन भी, विचार भी शिथिल होने लगेंगे। और विचारों के शिथिल होते ही हमारा चेतन मन सोने लगेगा और अचेतन जागने लगेगा.

      अब हम इसी स्थिति में ठहरकर टेलीपैथी संप्रेषित कर सकते हैं। अब हम अचेतन मन के तल पर खड़े हैं। हमें उस दिशा में केंद्रीभूत होना है जिस दिशा में हमें संदेश प्रेषित करना है।

      लेकिन ध्यान रहे। यहां से दो विपरीत दिशाएं निकलती है। एक जो पीछे की ओर जाती है, जिस पर हम टेलीपैथी के लिए प्रवेश कर रहे हैं और दूसरी जो आगे की ओर जाती है, अचेतन में जाती है, ध्यान में जाती है। 

यदि हम विपरीत दिशा टेलीपैथी की ओर जा रहे हैं तो फिर हमारा अध्यात्म से कुछ भी लेना-देना नहीं होगा। हमारा ध्यान में प्रवेश नहीं होगा, हमें ध्यान को भूलना होगा। और यदि हम अचेतन के तल पर खड़े होकर दूसरे की अपेक्षा स्वयं के भीतर ही टेलिपैथिक संदेश देंगे, कि मुझे अचेतन में प्रवेश करना है… मुझे ध्यान में प्रवेश करना है… तो हम सही दिशा में गति करेंगे। 

      यदि हम अचेतन मन में प्रवेश करने के लिए टेलीपैथी का उपयोग करते हैं तो यह सही दिशा होगी। क्योंकि यदि हम अचेतन में प्रवेश कर जाते हैं तो फिर टेलीपैथी हमसे “होगी”, हमें “करने” की जरूरत नहीं होगी। फिर हम उत पर ही होंगे जहां से टेलीपैथी होती है।

     हमें टेलीपैथी के लिए अचेतन के तल पर जाकर “प्रयास” नहीं करना होगा क्योंकि हम उसी तल पर खड़े होंगे जहां से टेलीपैथी होती है। 

     टेलीपैथी एक विज्ञान है। प्रतिकूल परिस्थितियों में किसी को लाभ पहुंचाने की दिशा में ही इसका प्रयोग करना चाहिए। जहां तक हो सके ध्यान में प्रवेश करने के लिए ही इस विज्ञान का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि हमारे पास कुछ होगा तो ही हम दे पाएंगे। हमारे पास ध्यान होगा तो ही हम दूसरों को ध्यान दे पाएंगे अतः पहले हम ध्यान में प्रवेश करने के लिए टेलीपैथी का प्रयोग करेंगे फिर हम ध्यान को बांटने के लिए इस विधा का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन साधना के मार्ग में इसका उपयोग जरूरी नहीं है और अनिवार्य तो है ही नहीं।

       फिर ध्यान में प्रवेश करने के बाद, अचेतन मन में प्रवेश करने के बाद तो टेलीपैथी हमें उपलब्ध होने ही वाली है अतः हमें टेलीपैथी की अपेक्षा अचेतन मन में प्रवेश करने वाले उपाय करने चाहिए ताकि टेलीपैथी हमसे स्वतः “हो” सके, हमें “करने की जरूरत नहीं रहे।

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