डॉ. प्रिया (पुडुचेरी)
_दूध के दांत गिरते हैं तो पक्के दांत आते हैं. उम्र के साथ ये दांत सड़ने लगते हैं और बुढ़ापे में ये भी गिर जाते हैं. फिर या तो डॉक्टर के पास जा कर दांतों का नया कृत्रिम सेट बनवाएं या फिर बिना दांतों के ही बाकी बची उम्र बिताएं. लेकिन कैसा हो अगर हर बार एक नया दांत आ जाए._
घड़ियालों के साथ तो ऐसा ही होता है. उन्हें दांत खो देने का डर नहीं होता. जब भी कोई दांत पुराना हो कर निकल गया, उसके बदले एक नया और मजबूत दांत आ गया.
घड़ियालों के कुल 80 दांत होते हैं जो उनके जीवनकाल में 50 बार तक निकल सकते हैं. वैज्ञानिक दांतों की इस प्रक्रिया को समझ कर इंसानों में भी लागू करने की सोच रहे हैं.
_जीवन भर बार बार तो नहीं, पर जीवन में दो की जगह तीन बार अगर दांत निकलें तो चहरे पर बुढ़ापे का दिखना शायद कुछ देर के लिए टाला जा सके. वैज्ञानिकों ने पाया है कि रेंगने वाले जीवों और स्तनपायी जानवरों के दांतों की रचना एक जैसी ही होती है._
यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में घड़ियालों के दांतों पर शोध कर रहे चेंग मिंग चुओंग का कहना है कि भविष्य में इंसानों में ऐसा कर पाना मुमकिन हो सकता है, पर फिलहाल यह केवल एक विचार ही है.
इंसान एक बार जब दूध के दांत खो देता है तो फिर से दांत उगाने की अपनी क्षमता को भी खो बैठता है, लेकिन मगरमच्छ, घड़ियाल, छिपकली और सांपों के साथ ऐसा नहीं होता. बल्कि उन्हें तो हर साल नए दांत मिलते रहते हैं.
चुओंग ने अपनी रिसर्च में घड़ियाल और उनके भ्रूण पर ध्यान दिया है. उनका कहना है कि घड़ियालों के पास तीन तरह के दांत होते हैं. पहले को फंक्शनल टूथ का नाम दिया गया है, जिनकी तुलना दूध के दांतों से की जा सकती है.
दूसरा है रिप्लेसमेंट टूथ यानी पक्के दांत और तीसरा है डेंटल लामिना. यह ऊतकों की एक परत होती है. इंसानों में भी पक्के दांत इसी परत से उभरते हैं.
वैज्ञानिकों ने घड़ियालों में इस परत के अंत में एक छेद पाया है. उनका अनुमान है कि इसी के अंदर स्टेम सेल जमा होते हैं जिनसे नया दांत बनता है.
जब कोई दांत टूटता है तो डेंटल लेमिन रिप्लेसमेंट टूथ का रूप ले लेता है और स्टेम सेल से नया डेंटल लेमिन तैयार हो जाता है. आने वाले सालों में इंसानों के साथ भी ऐसा किया जा सकेगा.
{चेतना विकास मिशन)