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ख़ुदा नहीं, खुद को खोज और खुद के भीतर 

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     कुमार चैतन्य 

मुझे बाहर कहां ढूंढता है मैं तेरे भीतर हूं। जो मैं हूं वही तू भी है। मैं भी ब्रह्म तू भी ब्रह्म। 

    वेदों और पुराणों और उपनिषदों में यही लिखा है।लेकिन पैगम्बर वादी व्यवस्था में तू बुरा है, पाप है, मैं सत्य हूं। लेकिन हम आज अपना वैदिक ज्ञान भुला कर पैगम्बर वादी व्यवस्था का शिकार हो चुके है और ब्रम्ह को अपने से बाहर खोजते रहते हैं। इसी कारण हम कई ठग प्रकार के लोगों के झांसे में आ जाते है।

   वैदिक ज्ञान में गुरु का सिर्फ इतना रोल होता है की वह आपको यह समझाता है की तू ही ब्रह्म है और अपने भीतर उस ब्रम्ह को पहचान। मूर्ति पूजा एक प्रकार से अपनी ही ऊर्जा शक्ति को अपने में केंद्रित करने का साधन है। इससे आपको किसी पैगम्बर या किसी दूसरे व्यक्ति के पीछे भागने की आवश्यकता नही होती। जैसे एकलव्य ने सिर्फ अपने गुरु की मूर्ति के सहारे अपनी ही शक्तियों को केंद्रीय कर के धनुर्विद्या हासिल कर ली थी। 

      इसी कारण विश्व में जितने लोगों ने अपने आप को पैगम्बर घोषित किया सबने मूर्ति पूजा का विरोध इसलिए किया क्योंकि मूर्ति पूजा से उनकी कोई मार्केट वैल्यू नही रहती। उन्होंने स्व शक्ति के इस माध्यम को नष्ट करने का उपदेश दे कर लोगों को अपने उपर निर्भर कर दिया ताकि लोग सिर्फ उसी की बात सुने उसी के कहे को अंतिम सत्य मानकर उसके लिए निष्ठावान होकर जीएं।

   उपनिषदों में अपने भीतर के ब्रम्ह को महसूस करने के कई ऐसे सूत्र बताए गए हैं जिनको शायद ही कभी किसी ने आपको बताया हो। मैं आज वो सूत्र आपको बताता हूं। परंतु ध्यान रखें यह काम सिर्फ अपने विचारों में करना है संसार में जाहिर नही करना नही तो या आप खुद को पैगम्बर समझने लग जाओगे या लोग आपको पागल समझने लग जायेंगे।

       आपको यह करना है। रोज एक आधा घंटा शांत बैठ कर मन में कुछ विचार उत्पन करने हैं और यह विचार महसूस भी करने हैं जैसे की

   मैं ही ब्रम्ह हूं। मैं सर्व शक्तिमान हूं , मैं ही सबसे बड़ा हूं, मैं ही इस सृष्टि का निर्माणकर्ता हूं, मैं ही शिव हूं, मैं ही सबका पालनहार हूं, सब कुछ मैं ही हूं। मैं नहीं हूंगा तो यह संसार भी नही होगा। सबके सुख शांति दुख का कारण हूं।

 पूरा संसार मेरी ही कृपा से चल रहा है। मुझे किसी से कुछ नही चाहिए न प्रेम न त्याग ना धन न संपति क्योंकि मैं ही यह सब कुछ देने वाला हूं। मैं ही इन सभी मानसिक और शारीरिक और भावनात्मक और सांसारिक वस्तुओं का दाता हूं। सारे जीव मेरी कृपा से उत्पन होते है और मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

    अगर आप पूरे मन से इन विचारों के साथ जीने लग जाओगे तो आप संसार के सारे सुख दुख से उपर उठ जाओगे। आपको महसूस होने लग जायेगा की सच मैं ही ब्रम्ह आप के भीतर ही मौजूद है। फिर आपको सुखी रहने के लिए किसी की जरूरत नही रहेगी न रिश्तों की न समाज की न गुरु की न भगवान की क्योंकि ब्रह्म तो आप खुद होंगे।

     यह सोच और बातें पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं क्योंकि आप सोचिए कि अगर आप नही होते तो यह सृष्टि होती या ना होती आपको क्या फर्क पड़ता क्योंकि आप तो महसूस करने के लिए होते ही न।  सृष्टि इसलिए है क्योंकि आप हो। आपका अपना अस्तित्व होना ही सृष्टि का कारण है। यथा देह यथा ब्रह्मांड यजुर्वेद में यही लिखा है की आपका देह या आपका अस्तित्व ही ब्रह्मांड है। आप हैं तभी आपके लिए यह सब कुछ है। इस सब कुछ होने का कारण आप खुद ही हो कोई दूसरा नहीं। ना कोई भगवान न इंसान सिर्फ मैं।

    अगर आपको ऐसा करने में कोई समस्या आए तो शुरू में किसी भगवान का चित्र या मूर्ति पर अपना ध्यान फोकस करके यह विचार उत्पन करना शुरू करें। मूर्ति या चित्र आपको अपने भीतर छिपे ब्रम्ह को पहचानने में मदद करती है। तभी आप अपने भीतर एक अलग शांति का अनुभव कर पाएंगे। 

      ऐसा करने से आप के भीतर एक ऐसी ऊर्जा उत्पन होगी जो शायद ही कभी आपने महसूस की होगी। अगर अधिकतर लोग इस प्रकार से अपने को ऊर्जावान बना लें और देश समाज की तरह तरह की जिम्मेवारियों को पूरा करे तभी मानव जीवन दुखों से मुक्त हो सकता है।

      लेकिन तथाकथित पैगम्बर लोगों और समाज के लोगों को ठगने वाले लोगों ने सनातन संस्कृति वेदों पुराणों उपनिषदों को गलत रूप में पेश करके समाज को यह समझाया की कोई पैगम्बर या गुरु या मूर्ति प्रकट हो कर कोई चमत्कार कर देगी और आप दुख तकलीफों से मुक्त हो जाएंगे।

   गीता में भी यही बात लिखी है कि समाज कि तरक्की मनुष्यों का कल्याण सिर्फ कर्मों के द्वारा किया जा सकता है। हमारे वेद, पुराण , उपनिषद सिर्फ पूजा का विषय नहीं बल्कि मानव जीवन को उन्नत बनाने का ज्ञान देता है।

     लेकिन अधिकतर लोग मूर्खता वश ज्ञान को चमत्कार समझने की भूल करते है और समझते है की भगवान कोई ऐसी वस्तु है जिसकी पूजा करने से वह एक दिन प्रकट हो कर आपके सारे दुख तकलीफ दूर कर देगा। 

      जब किसी को कोई समस्या होती है तो वह भगवान से मांगने या गुरु या पैगम्बर से मांगने लग जाता है अगर नहीं मिला तो उन्हें दोष देता है।फिर किसी और नए भगवान या गुरु या पैगम्बर को पूजने बैठ जाता है। वेद, पुराणों उपनिषदों में कहीं भी किसी चमत्कार की बातें नहीं लिखी है सिर्फ प्रकृति के नियमों की व्याख्या शक्तियों और देवो के नाम देकर लिखी हैं। आपको उन नियमों को समझ कर अपने जीवन में उतारना होता है। इसी से आपका और समाज का कल्याण हो सकता है।

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