बिबेक देबरॉय, ब्योर्न लोमबोर्ग, आदित्य सिन्हा
इंसानों ने पिछले 100 वर्षों में कृषि उत्पादकता के मामले में जो प्रगति की है, वह बेमिसाल है। इस दौरान अनाज की पैदावार में 6 गुना बढ़ोतरी हुई, जबकि वैश्विक जनसंख्या में चार गुना से कुछ कम। इसी वजह से आज किसी व्यक्ति के लिए उसके दादा के दादा के दादा की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक खाना उपलब्ध है।
स्मार्ट सॉल्यूशंस चाहिए
पैदावार में यह बढ़ोतरी एफिशिएंसी की वजह से हुई है क्योंकि इस दौरान किसानों ने प्रति हेक्टेयर जमीन से अधिक अनाज हासिल किया। इसमें हरित क्रांति का भी बड़ा योगदान रहा, जिसने खेती में आधुनिक तौर-तरीकों को बढ़ावा दिया। वैश्विक स्तर पर हरित क्रांति ने उत्पादकता बढ़ाने में जो भूमिका निभाई, उससे करीब 1 अरब लोगों को भुखमरी से बचाया जा सका। हरित क्रांति से न सिर्फ लोगों का पेट भरना संभव हुआ बल्कि इससे समाज में समृद्धि भी आई। कई अध्ययन बताते हैं कि अधिक पैदावार के तौर-तरीकों की खातिर 10 प्रतिशत निवेश बढ़ाने से प्रति व्यक्ति GDP (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) में 10-15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। खेती के आधुनिक होने से इसमें पहले जितने श्रम की जरूरत नहीं रही। इससे जो लोग फ्री हुए, उन्हें दूसरे तरीकों से आर्थिक विकास में योगदान देने का अवसर मिला।
FAO का एक शोध बताता है कि हरित क्रांति से प्रति हेक्टेयर पैदावार बढ़ी, जिससे कृषि उपज में शानदार बढ़ोतरी हुई। साल 1960 से 2000 के बीच गेहूं, धान, मक्का, आलू और कसावा की पैदावार में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई। अगर विकासशील देशों की बात करें तो वहां सिर्फ गेहूं की पैदावार में इस बीच 208 प्रतिशत का इजाफा हुआ। इसका फायदा भारत को भी हुआ। यहां पैदावार बढ़ने से गरीबी घटाने में मदद मिली। लेकिन देश में हरित क्रांति का लाभ क्षेत्रवार मिला और यह खासकर गेहूं और धान तक सीमित रहा।
बेशक, हरित क्रांति एक मील का पत्थर है, लेकिन दुनिया के सबसे गरीब देशों की मदद और वैश्विक भुखमरी में कमी लाने के लिए दूसरी हरित क्रांति की जरूरत है। 2015 के सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल्स (SDG) में कृषि उत्पादकता बढ़ाने और भुखमरी खत्म करने की भी बात शामिल है, लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई है। कोरोना महामारी से पहले भी इस दिशा में प्रगति काफी धीमी थी और 2030 तक के इस लक्ष्य के अब 70 साल की देरी से पूरा होने की उम्मीद है यानी यह काम 22वीं सदी की शुरुआत में ही हो पाएगा। 2015 से 2030 के लिए जो डिवेलपमेंट गोल्स तय किए गए थे, उन सारे ही लक्ष्यों को लेकर दुनिया पीछे चल रही है। इसलिए कृषि और भुखमरी सहित इन सभी लक्ष्यों के लिए स्मार्ट सॉल्यूशंस की जरूरत है और इन्हें प्राथमिकताओं में भी शामिल करना होगा। इसके लिए कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना होगा ताकि पहली हरित क्रांति जैसा रिजल्ट मिल सके। गरीब देशों में खेतीबाड़ी में शोध और अनुसंधान (R&D) पर काफी कम खर्च हो रहा है। विकासशील देशों में भी किसानों के पास खर्च करने की क्षमता बहुत ही सीमित या मामूली है। दूसरी तरफ, निजी क्षेत्र को ऐसे निवेश से बहुत कम फायदा होता है। 2015 में समूची दुनिया में खेती में R&D पर जो पैसा खर्च हुआ, उसमें से 80 प्रतिशत अमीर और उच्च मध्य आय वाले देशों में हुआ। निम्न मध्य आय वाले देशों को इसमें से 20 प्रतिशत निवेश ही मिला, जबकि दुनिया के सबसे गरीब देशों के हाथ कुछ नहीं आया। यह विषमता कोई नई नहीं है, यह तो पिछले 50 वर्षों से चली आ रही है। यही कारण है कि हरित क्रांति का जितना फायदा अमीर देशों को मिला, उतना गरीब देशों को नहीं। 1961 से 2018 के बीच जहां उच्च आय वाले देशों में अनाज की उत्पादकता में तीन गुना की बढ़ोतरी हुई, वहीं कम आय वाले देशों में यह 50 प्रतिशत ही रही। वैसे, इस क्षेत्र में तरक्की की पर्याप्त गुंजाइश है। दुनिया के गरीब देशों में अगर कृषि क्षेत्र में शोध और अनुसंधान में निवेश बढ़ाया जाता है तो उससे नाटकीय फायदे होंगे। कोपेनहेगन कंसेंशस ने दिखाया है कि इस फायदे के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को R&D पर सालाना 5.5 अरब डॉलर की रकम खर्च करनी होगी, जो तुलनात्मक रूप से कम है। इससे अधिक पैसा तो अमेरिकी लोग हर साल आइसक्रीम खाने पर खर्च कर देते हैं।
दूसरी तरफ, इस निवेश से बीजों की गुणवत्ता बेहतर होगी और अधिक उत्पादकता वाली फसलें मिलेंगी, जो मौसमी बदलावों से भी निपटने में कहीं अधिक सक्षम होंगी। इधर, हमने देखा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमी बदलाव की घटनाएं कितनी आम हो गई हैं। कृषि क्षेत्र में R&D में निवेश बढ़ाने से जहां किसानों की पैदावार बढ़ेगी, वहीं अधिक पैदावार से उपभोक्ताओं को ये चीजें सस्ती मिलेंगी। शोधकर्ताओं का दावा है कि इससे 35 वर्षों में 2 लाख करोड़ डॉलर से अधिक का लाभ होगा। इसमें हर डॉलर के निवेश से 33 डॉलर के सोशल बेनिफिट्स मिलेंगे। इस लिहाज से इसे शानदार निवेश माना जाना चाहिए।
उपभोक्ताओं का भी फायदा
2050 तक इस अतिरिक्त निवेश से पैदावार में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, खाद्यान्न के दाम 16 प्रतिशत घटेंगे और प्रति व्यक्ति आय में 4 प्रतिशत का इजाफा होगा। इस निवेश से विकासशील देशों के जीडीपी में 2030 तक 2.2 लाख करोड़ डॉलर की वृद्धि होगी और 2050 तक 11.9 लाख करोड़ डॉलर की। यह प्रति व्यक्ति आय में क्रमशः 2 और 6 प्रतिशत का इजाफा है। कृषि क्षेत्र में बेहतर शोध और अनुसंधान से ग्लोबल एमिशन में भी 1 प्रतिशत से अधिक की कमी आएगी। यह गेम चेंजिंग कदम हो सकता है, जिससे इस दशक में समूची मानवता का भला होगा।
(बिबेक देबरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं, ब्योर्न लोमबोर्ग कोपेनहेगेन कंसेंशस के अध्यक्ष एवं आदित्य सिन्हा प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में अपर निजी सचिव (अनुसंधान) हैं)