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स्ट्रांग रूम की सुरक्षा में विभिन्न दलों के प्रहरी

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                      -सुसंस्कृति परिहार

पिछले तकरीबन पांच छै सालों से स्ट्रांग रूम की सुरक्षा कई दलों के लोग रात दिन जागकर कर रहे हैं ये इस बात का प्रमाण है कि उम्मीदवारों का सरकार की पहरेदारी से भरोसा उठ गया है।यह क्यों हुआ यह आप बालाघाट की घटना से समझ सकते हैं।इनकी उपस्थिति बहुत कुछ कहती है।जिसकी सरकार होती है वह तो काउंटिंग के वक्त कलेक्टर पर दबाव बनाकर सौ से हजार वोट तक गड़बड़ी कर देती है और कई उम्मीदवार जीतते जीतते अंत में गोता खा जाते हैं। मध्यप्रदेश में तो एक वोट से एक महिला विधायक भी जीती थीं। इसलिए हर कदम पर दलों के प्रहरी सतर्कता बरतते हैं यकीन मानिए यदि बालाघाट डाक मतपत्रों के खुलने की ख़बर भी नहीं मिलती यदि ये प्रहरी ना होते।

ये घिनौना खेल आखिरकार क्यों शुरू हुआ इस पर विचार करने की ज़रूरत है।सबसे बड़ी बात ये है कि सरकारी अधिकारी किस तरह सरकार से भय खाते हैं यह किसी से छुपा नहीं है इसके पीछे उनकी सुरक्षित ज़िंदगी का सवाल छिपा रहता है दंड तो एक तरफ वे स्थानांतरण से भी घबरा जाते हैं इसे वे अपनी अवमानना समझते हैं।जबकि संविधान में जितना महत्व व्यवस्थापिका का है उतना ही कार्यपालिका भी है।ये बात और है कार्यपालिका प्रमुख राष्ट्रपति ही जब सरकार का गुलाम हो तो छोटे अधिकारी कैसे सर उठा सकते हैं।बस यहीं से तमाम सिस्टम गड़बड़ा जाता है वे कर्तव्य के साथ अपने अधिकार भूल जाते हैं उन्होंने अपने अधिकारों के लिए कोई संगठन भी नहीं बनाया इसलिए संजीव भट्ट जैसे ईमानदार अधिकारी प्रताड़ित होते रहते हैं।इसका फायदा अर्से से व्यवस्थापिका ले रही है इसी वजह से अधिकारी वर्ग संशय के घेरे में आता है फिर एक दो अधिकारी यदि निलंबित हो भी जाते हैं तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

आज जिस तरह चुनाव अधिकारी से लेकर सरकार के अन्य अधिकारीगण  सरकार की चापलूसी में मग्न नज़र आते हैं यही वजह है कि सरकारी सुरक्षा इंतजामात से उम्मीदवारों का भरोसा उठ गया है और उन्हें मतपेटियों की सुरक्षा हेतु मतदान दिवस से लेकर वोटिंग समाप्त होने तक सख़्त पहरेदारी करनी होती है इसके लिए प्रत्येक विधानसभा से कितना अतिरिक्त खर्च आता होगा क्या इसे उम्मीदवार के चुनावी खर्च में जोड़ा जा सकेगा या इसकी व्यवस्था सरकारी कोष करेगा?

वस्तुत दरअसल बात ये है कि जब झूठे जुमलों से सरकार बनती है तो वह हर कदम पर झूठ और बेईमानी का सहारा लेती है इस बात को प्रत्येक उम्मीदवार समझ रहा है इसलिए इस सुरक्षा को महत्व दें रहा है। चूंकि प्रदेश में सरकार बदलने की पूरी संभावना बताई जा रही है इससे भाजपा ज्यादा सतर्क हैंऔर कांग्रेस अपने पिछले इतिहास से सबक लेकर कोताही नहीं बरत रही है।यह दुहरी सुरक्षा सरकार और चुनाव आयोग की कमज़ोरी का ही परिणाम है।इसे बंद करने की हिम्मत किसी में नहीं।

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