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नर के जंगलीपन पर क्यों रीझती है नारी

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      डॉ. विकास मानव

    स्त्री को कोमलांगी कहा जाता है. सहनशक्ति में स्त्री अलबत्ता पुरुष से बहुत आगे है, लेकिन कामसूत्र में उसे बिस्तर पर पुष्पवत लेने की बात ही कही गई है.

   आम स्त्री कभी चाहती भी नहीं की उसे पशुवत रौंदा जाये, हवानों की तरह उससे हॉर्ड सेक्स किया जाये. वह सरल, सौम्य पुरुष ही पसंद करती है.

लेकिन हॉट, सेक्सी स्त्री की सीरत अलग है.

   हॉट, सेक्सी स्त्री जंगलीपन चाहती है. यही नहीं, एकी रात में बार – बार चाहती है. वह एक तक सीमित भी नहीं रहती. लाइफ में कईयों को यूज करती है. ऐसा क्यों? 

      दरअसल मादा एक संभोग के बाद तुरंत दूसरे संभोग के लिए तैयार है. इसी नियम पर दुनिया के वेश्याघर चलते हैं.  नर के दो संभोगों के बीच अंतराल होता है. वो पहले संभोग के तुरंत बाद दूसरा संभोग नहीं कर सकता. वह संभोग के बाद झटके से मादा अलग हटेगा और सो जाना चाहेगा. ये उसकी प्रकृति है।

     मादा की प्रकृति इसके बिल्कुल विपरीत है. वो संभोग के तुरंत बाद नर के मुँह से वो शब्द सुनने को आतुर होती हैं जो उसे गुदगुदा दें. वह चाहती है की पेनिस टाइट मिले और शुरू हो जाये. वह पेनिस को टाइट करते देखी भी जाती है, हाथ से सहलाकर और मुंह में लेकर.

   वो ये नहीं जानना चाहती कि नर सेक्सुअल प्रेम के बाद तुरंत ऐसा प्रेम नहीं कर सकता.

हाँ वह युद्ध के बाद प्रेम को लालायित हो सकता है. वो मूलरूप से शिकारी की भूमिका ही अदा करता है.  सभ्य समाज में उसकी इस प्रवृत्ति को खुबसूरत लिबासों में ढका जाता है।

    दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह हिटलर रोजाना पाँच सौ आदमियों को कटवा कर अपनी प्रेमिका की गोद में सर रख कर प्रेमगीत लिखता था. उससे जुदाई के बीते लम्हों का वर्णन करते उसके गाल भीगते थे.

    अशोक कलिंग युद्ध में हुई मारकाट से दग्ध होकर प्रेमालिंगन को तड़प उठा था. उसने बौद्ध दर्शन को अपने अंदर यूँ समाहित किया कि आज अशोक और बौद्ध दर्शन को अलग किया ही नहीं जा सकता.

    नेपोलियन बोनापार्ट भी अपने बख़्तरबंद कवच को उतार प्रेम रस में डूबता था. इतना रोमांटिक या प्रेयसी को समर्पित होता था की पूछो मत. इस समय  जितना कोई कवि शायर या मासूम दिल का नर भी समर्पित नही हो सकता, उतना।

सामान्य नर इस प्रकार के न युद्ध कर सकता हैं ना ही प्रेमातुर हो सकता है. वो न घृणा के चरम पर जाएगा न प्रेम तल की गहराई में आएगा. वो कुछ दस मिनट का खेल करेगा जो उसे किसी रूप संतुष्ट नहीं करेगा.

   इसी संतुष्टि प्राप्ति हेतु वो साथी को बदलने को उत्सुक हो सकता है. जहाँ जहाँ सामाजिक बंधन कमजोर हो या मौका मिले, ये बदलाव लगभग छह महीने के अंदर हो जाता है.

  पर इन बदलावों से न परिस्थिति बदलती है न उसकी मनोरचना. यानि वो प्रेम पाने में प्रेम करने में असफल रहता है।

     यदि नर के जंगलीपन को निकलने का रास्ता बन जाए तो वो प्रेम कर सकता है, पा सकता है, दे सकता है. यही एक कारण है मादा हमेशा समाजिक रूप सभ्य की अपेक्षा उद्दंड नर की तरफ झुकती है.

   इसलिए बिगड़े हुए लड़कों को समर्पित प्रेमिकाएँ मिलती हैं, बजाएं सामाजिक दृष्टि से सभ्य का टैग पाए लड़कों को.

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