Site icon अग्नि आलोक

दूकान पट्टिका पिटी तो थूक जिहाद प्रारंभ 

Share

-सुसंस्कृति परिहार 

दक्षिण पंथी ताकतें मुसलमानों के बारे में लगातार जिस तरह का काम कर रही हैं वो नई नहीं है।यूपी सरकार के उस आदेश पर तो सुको ने रोक लगा दी जिसमें कांवड़ियों के मार्ग में लगने वाली दूकानों पर नाम पट्टिका लगाने का हुक्म हुआ था।भद पिट जाने के बाद एक बार फिर थूक जिहाद पर ज़ोर दिया जा रहा है कालीचरण महाराज खुल्लम खुल्ला कह रहे हैं कि मुसलमान कोई भी खाद्यान्न बेचने पर उस पर थूक देता है।

इससे पहले कोरोना काल में भी यह जिहाद छेड़ने की भरपूर कोशिश की गई पर कोरोना के डर से भागे लोगों ने भूख के आगे घुटने टेक दिए अफ़वाह फैलाने वाले पस्त पड़ गए। इसी बीच शाहरुख खान का एक वीडियो सामने आया जब वे किसी शव पर फूंक मार रहे हैं उसे थूक कहकर बवाल फैलाया गया।हम सब मुसलमान मित्रों से  मिलते हैं तो वे मोहब्बत से हाथ चूम लेते हैं तब तो आज तक थूक की बात नहीं उठी।हमारे परिवारों में भी परस्पर चुम्बन लेकर प्रेम व्यक्त किया जाने लगा है। बच्चों का माथा चूम कर उन्हें आशीष दिया जाता है तब थूक का ख़्याल नहीं आया। जबकि यह सनातन संस्कृति में स्वीकार्य नहीं है।

पिछले बार जब थूक जिहाद फैलाने की कोशिश फ्लाप हो गई। तब अब कालीचरण महाराज प्रकट हो गए हैं मुसलमानों के ख़िलाफ़ थूक को लेकर ताकि उन्हें  बदनाम कर उनके धंधे चौपट कर सकें ।किंतु इस बार तो ग़ज़ब हो गया सोशल मीडिया पर एक संत जी का चित्र वायरल हुआ है जिसमें मथुरा के गोवर्धन राधेमंडल धाम का एक पंडितजी अपना थूक प्रसाद में  मिलाते नज़र आ रहे हैं। इसका जवाब कौन देगा।ये थूक संस्कृति तो यहां भी  मिल गई।क्या हम भी अब प्रसाद ग्रहण नहीं करेंगे।

याद कीजिए,1930 के दशक में, नाजी थूक प्रचारकों ने जर्मन लोगों को आतंकित करने और उनकी वफ़ादारी हासिल करने के लिए यहूदियों के बारे में इसी तरह का दुष्प्रचार किया था। आज, इतिहास नाएएज़ियों पर थूक रहा है। अब निश्चित रूप से यह एक सबक है जो हमारे कथित थूक प्रचारकों को सीखने की ज़रूरत है।

वस्तुत: सच्चाई तो यह ही है कि ये सब ढकोसले बेबुनियाद और झूठे और साजिशन फैलाए जा रहे हैं जिनका उद्देश्य देश में साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ना है।जब राम शबरी के जूठे बेर खाए सकते हैं तो इस फरेब में पड़ने की क्या ज़रूरत सोचिएगा हमने बचपन से मां की फूंकी चाय और रोटी खाई है। फूंक के साथ प्रेम का थूक मायने रखता है। जिन कांवड़ियों के लिए साफ़ सुथरे खाद्यान्न की बात हो रही है उनमें अधिकांश बमुश्किल पेट भर खा पाते हैं इसलिए उन्हें हिंदु मुस्लिम नहीं दिखता ये शिवभक्त शाकाहारी ही नहीं मांसाहारी और नशे में मगन रहते हैं। शिवजी उनके आदर्श हैं। इसलिए जगह जगह मस्ती में तांडव भी शुरू कर देते हैं।हाल ही में इन भक्तों ने एक आटो का कचूमर निकाल दिया। ऐसे दीवानों को भड़का कर कुछ हासिल नहीं हो सकता। अपेक्षित है इस यात्रा पर कड़ी निगरानी रखी जाए। ख़ासतौर पर जागरुक नागरिक समाज को यह उत्तरदायित्व लेना चाहिए ताकि उपद्रव ना हों तथा सद्भाव बना रहे।

Exit mobile version