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सबके चहेते बनने प्रचारक की शैली में काम कर रहे हैं श्रीमंत

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भोपाल। कांग्रेस की पृष्ठभूमि और करीब दो दशक से कांग्रेस में ही राजनीति करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों पूरी तरह से बदले हुए हैं। उनकी कार्यशैली अब पूरी तरह से संघ प्रचारक की राह पकड़ चुकी है। फिलहाल तो यही प्रतीत हो रहा है। प्रदेश के दौरे पर जिस तरह से वे लोगों से मेल मुलाकात कर रहे हैं और जिस तरह से नपे-तुले बोल बोल रहे हैं उस वजह से अब वे नेता कम , बल्कि एक प्रचारक की भूमिका में अधिक नजर आने लगे हैं। अपने दौरे में जिस तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं और समाज के कई लोगों के घर दुख बांटने के लिए बैठने जा रहे हैं और पार्टी नेताओं से मेल-मुलाकात कर रहे हैं, उससे सभी न केवल आश्चर्य में हैं, बल्कि इसे भविष्य की राजनीति से जोड़कर भी देख रहे हैं। दरअसल यह परंपरा न कांग्रेस की रही है और न ही इसके पहले खुदज्योतिरादित्य सिंधिया की।
संघ प्रचारक की कार्यशैली समाज को जोड़ने और संगठन को गढ़ने की रहती है। प्रचारक अपने स्वयंसेवक के साथ ही समाज के व्यक्तियों के साथ सुख दुख में  खड़े नजर आते हैं, अगर किसी कारणवश तत्काल नहीं जा पाते हैं तो बाद में वे परिचितों के यहां बैठने जरुर जाते हैं। इसमें उनके द्वारा छोटा या बड़ा नहीं देखा जाता है। उनकी शैली और परंपरा है कि स्वयंसेवक हो या फिर समाज का कोई अन्य व्यक्ति उसके यहां भोजन करने से भी पीछे नहीं रहते हैं, ठीक इसी तरह से आजकल सिंधिया भी सक्रिय नजर आ रहे हैं। इसका उदाहरण उनका यह तीन दिवसीय प्रदेश का दौरा है। इसमें वे जिन पार्टी नेताओं व पत्रकारों ने कोरोना में अपना परिजन खोया है उनके घर दुख बांटने गए ,तो वहीं संबंध और संपर्क मजबूत करने के लिए भी कई नेताओं के घर पहुंचे। यह वे नेता हैं , जो न तो उनके कभी करीबी रहे हैं और न ही उनके अपने लोगों के खास। बल्कि कई नेता तो ऐसे रहे हैं जिन्हें उनका कट्टर विरोधी माना जाता रहा है। इनमें कैलाश विजयवर्गीय से लेकर गोपाल भार्गव तक के नाम शामिल हैं। इसके साथ ही वे अपने से जुड़े हर नेता व कार्यकर्ता के लिए जिस तरह से सत्ता व संगठन में भागीदारी के प्रयास करते आ रहे हैं उससे भी राजनैतिक क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं में एक अच्छा संदेश देने का भी वे बखूवी काम कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस वजह से कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने के बाद भी उनके समर्थकों का कारवां कम होने की जगह बढ़ता ही जा रहा है। वे जिस तरह से पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं के घर मिलने मिलाने जा रहे हैं उससे यही संदेश जा रहा है कि पार्टी में उनके लिए सभी समान हैं। खास बात यह है कि भोपाल के दो दिवसीय दौरे में उन्होंने इस बार अपने समर्थकों और सरकार में मंत्री बने नेताओं के घरों की जगह दूसरे नेताओं के घर जाकर जिस तरह से भोजन किया उससे वे गुटबाजी से दूर रहने का भी संकेत दे चुके हैं।
अपने इस दौरे में उनके द्वारा यह भी ध्यान रखा गया है कि प्रदेश में सरकार और संगठन में कौन-कौन नेता निर्णायक भूमिका में है और किससे उनके समर्थकों को फायदा हो सकता है। अन्यथा पूर्व में वे दौरे के समय राजधानी में भोजन करने जाना हो या फिर मिलने मिलाने सिर्फ अपने समर्थक बड़े नेताओं के यहां ही जाते रहे हैं। करीब डेढ़ साल पहले भाजपा में आने के बाद से उनकी कार्यशैली में आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिल रहा है। वे उसके बाद अचानक संघ मुख्यालय पहुंचे और कई बड़े पदाधिकारियों से भेंट कर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में उन्हें अपनी दादी राजमाता के साथ मराठा होने का फायदा मिला। इसके बाद से ही उनकी कार्यशैली में बड़ा परिवर्तन देखने को मिलने लगा है।  अब वे पार्टी के हर गुट के नेता के घर जाकर सभी को साधने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं।
उमा से लेकर विजयवर्गीय के घर तक
खास बात यह है कि उमा अब मप्र की राजनीति में भले ही अप्रभावी हो चुकी हों, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके घर जाने से भी पीछे नहीं रहे हैं। यही नहीं वे इंदौर दौरे पर गए तो अपने धुर विरोधी कैलाश विजयवर्गीय के घर भी जाने में पीछे नहीं रहे, तो स्थानीय राजनीति में विजयवर्गीय विरोधी माने जाने वाली नेता ताई के घर भी मुलाकात के लिए जा पहुंचे थे। यही नहीं वे अपने दौरे के दौरान पारस जैन, शंकर लालवानी , मोहन यादव और उषा ठाकुर के घर भी जा चुके हैं। इसके पहले हाटपिपल्या गए तो पूर्व मुख्यमंंत्री कैलाश जोशी की सार्वजनिक रुप से उनके द्वारा जमकर तारीफ की गई थी। ज्ञात रहे यह दौरा उनके द्वारा स्व जोशी की प्रतिमा अनावरण के लिए किया गया था। अब दो दिवसीय भोपाल दौरे में वे जिस तरह से स्व बिजेश लूनावत से लेकर पत्रकार जगदीश द्विवेदी और फिर गिरीश शर्मा के यहां बैठने के लिए गए, इससे भी उन्होंने सुख दुख में खड़े रहने का संदेश  दिया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात, वीडी शर्मा और गोपाल भार्गव के घर भोजन और भूपेन्द्र सिंह के आवास पर जाकर चाय पी उसके भी कई मायने निकाले जा रहे हैं। यही नहीं इस बार वे प्रदेश के संघ मुख्यालय समिधा जाना भी नहीं भूले।
बयानों में भी तल्खी नहीं
ज्योतिरादित्य सिंधिया को वैसे तल्ख बयानों के लिए जाना जाता है , लेकिन अब वे बेहद नपा तुला बयान देते हैं। भले ही उपुचनाव हारने वाले अपने समर्थक चार पूर्व मंत्रियों को शिव सरकार में निगम मंडल की कमान मिलने के लिए इंतजार करना पड़ रहा हो , लेकिन इस मामले में भी पार्टी की लाइन को ही आगे बढ़ाने वाला  बयान देते नजर आए। यही नहीं सत्ता व संगठन में भागीदारी के लिए उतावले नेताओं व कार्यकर्ताओं को भी अपने बयान से धैर्य देने का भी संदेश देने से पीछे नहीं दिखे।

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