अग्नि आलोक

सियाराम मय सब जग माहीं —

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-सुसंस्कृति परिहार

बेल्जियम के पादरी कामिल बुल्के का नाम राम के साथ इस तरह जुड़ा हुआ है कि उनके अवदान को भुलाकर राम की चर्चा अपूर्ण होगी।वे 1934में फादर बुल्के के नाम से मिशनरी में काम करते करते रामचरित मानस की दो पंक्तियों

‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई,

परपीड़न सम नहीं अधमाई ‘ से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने रामकथा को अपने शोध का विषय बनाया।रामकथा से सम्बन्ध रखने वाली किसी भी सामग्री को आपने छोडा नहीं है सभी रामकथाओं को पढ़ा।अपने राम कथा की उत्पत्ति और विकास शोधग्रंथ को  चार भागों में विभक्त कर व्यापक इतिहास लिखा। प्रथम भाग में ‘प्राचीन रामकथा साहित्य’ का विवेचन है । इसके अन्तर्गत पाँच अध्यायों में वैदिक साहित्य और रामकथा, वाल्मीकिकृत रामायण, महाभारत की रामकथा, बौद्ध रामकथा तथा जैन रामकथा सम्बन्धी सामग्री की पूर्ण परीक्षा की गयी है । द्वितीय भाग का सम्बन्थ रामकथा की उत्पत्ति से है और इसके चार अध्यायों में दशरथ जातक की समस्या, रामकथा के मूल स्रोत के सम्बन्ध में विद्वानों के मत, प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के मुख्य प्रक्षेपों तथा रामकथा के प्रारम्भिक विकास पर विचार किया गया है । ग्रन्थ के तृतीय भाग में ‘अर्वाचीन रामकथा साहित्य का सिंहावलोकन’ है । इसमें भी चार अध्याय हैं । पहले दूसरे अध्याय में संस्कृत के धार्मिक तथा ललित साहित्य में पायी जानेवाली रामकथा सम्बन्धी सामग्री की परीक्षा है । तीसरे अध्याय में आधुनिक भारतीय भाषाओँ के रामकथा सम्बन्धी साहित्य का विवेचन है । इसमें हिन्दी के अतिरिक्त तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, काश्मीरी, सिंहली आदि समस्त भाषाओं के साहित्य की छानबीन की गयी है । चौथे अध्याय में विदेश में पाये जाने वाले रामकथा के रूप का सार दिया गया है और इस सम्बन्थ में तिब्बत, खोतान, हिन्देशिया, हिन्दचीन, स्याम, ब्रह्मदेश आदि में उपलब्ध सामग्री का पूर्ण परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है । अन्तिम तथा चतुर्थ भाग में रामकथा सम्बन्धी एक-एक घटना को लेकर उसका पृथक-पृथक विकास दिखलाया गया है । घटनाएँ काण्ड-क्रम से ली गयी हैं अत: यह भाग सात कांडो के अनुसार सात अध्यायों में विभक्त है।

कामिल बुल्के 1936 में भारत  पहुंचे थे। उसके बाद दार्जिलिंग में एक संक्षिप्त प्रवास के बाद, उन्होंने झारखंड के गुमला में पांच साल तक गणित पढ़ाया। वहीं पर हिंदी, ब्रजभाषा व अवधी सीखी। 1938 में, सीतागढ़/हजारीबाग में पंडित बदरीदत्त शास्त्री से हिंदी और संस्कृत सीखी। 

 इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1974 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया। भारत की शास्त्रीय भाषा में रुचि के कारण इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय (1942-44) से संस्कृत में मास्टर डिग्री और आखिर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय  में हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, इस शोध का शीर्षक था ”राम कथा की उत्पत्ति और विकास”।उन्होंने भगवान राम के विषय में लिखा कि- राम वाल्मिकी कथा के मिथकीय पात्र नहीं हैं बल्कि वे इतिहास पुरुष हैं जिनकी व्याप्ति सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है। उन्होंने कई उदाहरणों से साबित किया कि रामकथा अंतर्राष्ट्रीय कथा है उन्होंने यह लिखा भी है कि ‘रामायण’ सिर्फ धार्मिक साहित्य ही नहीं है, बल्कि जीवन जीने के तरीके का दस्तावेज है।  वे बाबा कामिल बुल्के बन गए सम्पूर्ण जीवन रामकथा की खोज में गुज़ारा और यही की मिट्टी का हिस्सा बन समा गए।

तुलसी बाबा तो पहले ही बात कह चुके थे कि 

सियाराम मय सब जग माहीं 

करहूं प्रणाम जोर जुग पानी 

 कहा जाता है यह लिखकर तुलसी दास घर की ओर चले। रास्ते में एक बालक ने बताया कि महात्मा इस रास्ते से ना जाएं वहां एक सांड लाल पीले कपड़े पहने लोगों को उठा उठा कर पटक रहा है। तुलसीदास ने सोचा मैं राम नाम ले हाथ जोड़कर विनती कर लूंगा वह शांत हो जाएगा लेकिन सब धरा रह गया।सांड ने उन्हें नहीं छोड़ा।

तब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी कहते हैं वहाँ हनुमान जी प्रकट हुए और बोले: श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं?

अपने जीवन में कई बार हम सब छोटी छोटी चीज़ों पर ध्यान नहीं देते और बाद में बड़ी समस्या का शिकार हो जाते हैं। ये किसी एक इंसान की परेशानी नहीं है बल्कि ऐसा हर इंसान के साथ होता है। कई बार छोटी-छोटी बातें हमें बड़ी समस्या का संकेत देती हैं।इसे समझने की ज़रूरत है यह कहानी हमें जागरूक करती है कि सिर्फ आस्था और विश्वास से समस्याएं हल नहीं की जा सकती हैं।हमें सचेत और सावधान रहना चाहिए।बाबा बुल्के भी इसीलिए कहते हैं रामायण सिर्फ एक धार्मिक साहित्य नहीं  सम्मानपूर्वक जीवन जीने का एक  महत्वपूर्ण दस्तावेज है।यकीनन राम एक इतिहास पुरुष हैं और हम सबके प्रेरक। वे सर्वव्यापी हैं इसलिए उन्हें दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए।जीवन जीने के जो बहुमूल्य तरीके राम चरित से मिले हैं उनका आदर , आस्था ,पूजा पाठ ही पर्याप्त नहीं बल्कि उन्हें जीवन में उतारें तभी हम इस दुनिया को सियराम मय देख सकेंगे।

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