अग्नि आलोक

हमारे जीवन को पूरी तरह बदलकर रख दिया है स्मार्टफोन ने

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 मुकुल श्रीवास्तव

तकनीक ने पिछले कुछ बरसों में हमारे जीवन को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप जैसी डिजिटल डिवाइस आज हर व्यक्ति की जीवनशैली का हिस्सा हैं। इनके बढ़ते प्रभाव ने हमारी आदतों, सोच और मानसिक क्षमता पर गहरा असर डाला है। कभी खाली समय में किताबें पढ़ना, पत्र लिखना शौक हुआ करते थे, लेकिन अब वह समय बिंज वॉचिंग, रील स्क्रॉलिंग और विडियो देखने में गुजरता है। बहुत से लोगों के लिए पढ़ना पुराने जमाने की बात हो गई है। यह बदलाव कहीं न कहीं मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है।

आदत से मजबूर: बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010 में लोग औसतन 2 घंटे फोन पर बिताते थे, 2024 में यह समय बढ़कर 4.9 घंटे हो गया है। भारत में एक स्मार्टफोन यूजर दिन में औसतन 80 बार अपना फोन चेक करता है। ज्यादातर बार वह बिना जरूरत के, सिर्फ आदतन अपना फोन देखता है। इनमें से कई बार सुबह उठने के 15 मिनट के भीतर फोन देखना भी शामिल है। यह आंकड़ा दिखाता है कि हम अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डिजिटल स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं और उसका भी अधिकांश हिस्सा विजुअल कंटेंट के नाम कुर्बान हो रहा है।

ध्यान में कमी: स्मार्टफोन और विजुअल कंटेंट के बेतहाशा इस्तेमाल से हमारी किसी चीज पर ध्यान देने और समझने की क्षमता कम होती जा रही है। माइक्रोसॉफ्ट की एक स्टडी बताती है कि डिजिटल लाइफस्टाइल की वजह से इंसानों की ध्यान अवधि एक गोल्डफिश से भी कम हो गई है! असल में, सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म जैसे यूट्यूब और इंस्टाग्राम को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हमारा दिमाग छोटे और संक्षिप्त कंटेंट को एक बार में ही झट से पकड़ने के लिए तैयार हो जाए। ये प्लैटफॉर्म हमें इन कंटेंट की इतनी आदत डाल देते हैं कि शब्दों से भरी किताबें, क्लासरूम और लंबे लेक्चर उबाऊ लगने लगते हैं। फिर हमारा दिमाग उन्हें पहले की तरह अच्छे से प्रॉसेस नहीं कर पाता। इन शॉर्ट विडियो प्लैटफॉर्म पर जब हमें कुछ अच्छा नहीं लगता तो हमारे पास अनगिनत स्क्रॉल का विकल्प होता है, लेकिन असल जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं होता।

पढ़ना मुश्किल हुआ: प्यू रिसर्च सेंटर का एक सर्वे बताता है कि सोशल मीडिया के लगातार इस्तेमाल से स्टूडेंट्स को कई बार पढ़ाई पर फोकस और काम पर ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल महसूस होती है। सर्वे में 31% किशोरों ने माना कि वे क्लास में अपना ध्यान खो बैठते हैं और 49% का कहना था कि उन्हें ज्यादा देर लेक्चर सुनना उबाऊ लगता है। रिपोर्ट में एक खास बात पर जोर दिया गया है कि अब किताबें पढ़ना पहले जितना आसान नहीं रह गया है। जानकारी याद रखना एक चुनौती की तरह हो गया है, जिससे लोगों में झुंझलाहट बढ़ गई है।

किताबों की बिक्री घटी: लोग पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार, मैगजीन और टीवी से मिलने वाली खबरों के प्रति रुचि खोते जा रहे हैं। उनका रुझान डिजिटल मीडिया की ओर बढ़ रहा है। रॉयटर्स की 2023 डिजिटल रिपोर्ट के एक सर्वे के अनुसार, 71% भारतीय ऑनलाइन समाचार देखना पसंद करते हैं। केवल 29% का रुझान अखबार पढ़ने में है। वहीं, इंडियन रीडरशिप सर्वे का अनुमान है कि 2026 तक ऑनलाइन न्यूज की पहुंच 70 करोड़ भारतीयों तक हो जाएगी। खबरों के अलावा युवा पाठक अब ई-बुक्स और ऑडियो बुक्स को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। साल 2023 में 2022 के मुकाबले प्रिंट किताबों की बिक्री में 2.6% की गिरावट दर्ज की गई है।

शिक्षा पर असर: लेख और किताबों की जगह विडियो लेक्चर्स ने ले ली है। ऑनलाइन लर्निंग प्लैटफॉर्म पर स्टूडेंट्स बढ़ते जा रहे हैं। दरअसल, विजुअल और ऑडियो माध्यम से जानकारी को समझना और सीखना आसान हो जाता है। लेकिन, अगर छात्र किताबों को छोड़कर सिर्फ विडियो लेक्चर्स पर निर्भर हो जाएंगे, तो इससे उनकी समझ पर असर पड़ सकता है। किताबें विश्लेषण करने की क्षमता, एकाग्रता और गहरी सोच का निर्माण करती हैं।

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