पुष्पा गुप्ता
(1)
एक स्त्री थी। उसे जागने से डर लगता था। उसनेे सोकर पूरी ज़िन्दगी खर्च कर दी।
(2)
एक स्त्री थी। डरपोक थी. उसने घर में बंद होकर बाहर के ख़तरों से ख़ुद को सुरक्षित कर लिया।
(3)
एक स्त्री थी। उसने ख़ुद को घर में ही बदल लिया।
(4)
एक स्त्री थी। उसने सिर्फ़ सपनों में जीने का अभ्यास कर लिया।
(5)
एक स्त्री थी। उसने अपने को भुला दिया और बस ज़िस्म को जीती चली गई।
(6)
एक स्त्री थी। उसने ढेरों छोटी-छोटी खुशियों और सार्थकताओं के आविष्कार में ख़ुद को ख़र्च कर दिया।
(7)
एक स्त्री थी। पुरुष बनने की कोशिश में वह न स्त्री रही, न पुरुष हो सकी।
(8)
एक स्त्री थी। वह जीने, प्यार करने, सपने देखने, बग़ावत करने, क्रांतिकारी बनने, यायावरी करने, कविता लिखने, बेवफ़ाई करने और आत्महत्या करने के बारे में ताउम्र सोचती रही और अंतिम साँस तक कुछ तय नहीं कर पाई।
(9)
एक स्त्री थी। वह ताउम्र भागती रही। सबसे और खुद से भी.
(10)
एक स्त्री थी। दुनिया-ज़माने से प्रतिशोध लेने में ही उसने ख़ुद को स्वाहा कर दिया।
(11)
एक स्त्री थी। वह सोचती थी। वह अपने जैसे सपने देखने वालों को जुटाती थी और विद्रोह के षड्यंत्र रचती थी।
वह मुल्क़-दर-मुल्क़ दर-बदर होती थी, यंत्रणा-गृहों में बंद की जाती थी, फिर निकल भागती थी। वह कभी भी कहीं भी पाई जा सकती थी। उसके पास एक ऐसे देश का पासपोर्ट था जो अभी था ही नहीं !
(12)
एक स्त्री थी। उसने प्रेम करके शादी की। मैरिज रजिस्ट्रार के ऑफिस से घर पहुँचते ही सास-ससुर ने स्वागत किया।
फिर एक अनुष्ठान की तरह सभी लोग लिविंग रूम में एक बड़ी सी टेबल के इर्द-गिर्द बैठ गये।
पति ने एक बड़ा सा भारी सूटकेस उठाकर टेबल पर रख दिया। फिर उसे खोल कर चाबी उसे सौंप दी।
सूटकेस में ढेरों छोटे-बड़े ख़ूबसूरत नक़्क़ाशीदार डिब्बे भरे हुए थे।
“यह सबकुछ तुम्हारा है,” पति ने कहा,”इन डिब्बों में सबकुछ है! तुम्हारी आज़ादी, तुम्हारा सुख-चैन, तुम्हारे सपने, तुम्हारी उड़ानें, तुम्हारी कल्पनाएँ, तुम्हारा एकान्त, तुम्हारी नींद, तुम्हारा जागना, तुम्हारा अक्षय प्यार, तुम्हारी कर्तव्य-निष्ठा, तुम्हारे अधिकार … सबकुछ ! हम तुम्हें एक पूरी दुनिया दे रहे हैं, पूरी धरती और पूरा आकाश।
स्त्री कृतज्ञता के बोझ से दोहरी हो गई। वह भूल ही गयी कि वह अपने साथ भी कुछ सपने, कुछ कविताएँ, कुछ कहानियाँ, कुछ यादें, कुछ निजीपन, और आज़ादी और प्यार के बारे में कुछ अपनी सोच लेकर आई थी।
उसे इतनी सारी जो चीज़ें उपहार में मिली थीं, उन्हें ही ज़िम्मेदारी और किफ़ायतशारी के साथ बरतना था और सुख और संतोषपूर्वक शान्ति, समृद्धि और सुरक्षा से परिपूर्ण जीवन जीना था।
मरते समय बेटी के लिए उसने बस एक वाक्य का एक संदेश अपनी डायरी में लिखा था :
“स्त्रियों को जो बना-बनाया स्वर्ग उदारतापूर्वक उपहार में दिया जाता है वह दुनिया का सबसे भीषण-भयंकर नर्क होता है।”
(13)
एक स्त्री थी। संघर्ष करके सक्षम बनी और ज़िन्दगी में एक मुकाम हासिल किया। अंधी महत्वाकांक्षाओं ने उसे धीरे-धीरे एक बेरहम मर्द बना दिया।
(14)
एक सक्षम और महत्वाकांक्षी स्त्री थी। स्त्रियों का एक मुक्ति संगठन भी चलाती थी। उसने कई स्त्रियों को अपने दफ़्तर में जूतियों तले रगड़ दिया जो उसके इशारों पर नहीं नाचती थीं। अपने इशारों को वह संघर्ष और इतिहास की दिशा समझती थी।
यह प्रशिक्षण उसे उस मर्द ने दिया जो दिलोजान से उसे चाहता था और इतिहास की ऊँचाइयों पर अपनी जानूँ के हाथ में हाथ दिये जाना चाहता था। ग़ौरतलब है कि दोनों जेंडर समानता के उत्कट पक्षधर थे।
बहुत सारे लोग उनका अनुकरण करते थे। फिर उन सबने सोचा कि तरक़्क़ी की सीढ़ियांँ तो अपने जानूँ के साथ ही चढ़ने का आनंद है।
फिर सबने ऐसा ही किया। फिर सब तबाह हो गये, और उनका मक़सद भी।