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सोनकच्छ विधानसभा सीट:सज्जन को कोई बड़ी चुनौती नहीं

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भोपाल। सोनकच्छ विधानसभा सीट देवास जिले में आती है। इस सीट पर कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा विधायक हैं। सोनकच्छ विधानसभा के ग्रामीण इलाकों में हालांकि अब भी कुछ समस्याएं हैं , लेकिन यह समस्याएं यहां पर बड़ा मुद्दा बनती नहीं दिख रही हैं। यही वजह है कि इस इलाके में वर्मा के लिए कोई बड़ी मुसीबत नहीं दिख रही है।  इस क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है। यहां के अस्पताल में सन 2011 तक एक्सरे मशीन भी नहीं थी। अब यहां भवन तो बन गया है, पर डाक्टर और स्टाफ की कमी बरकरार है। पूरी विधानसभा में सिर्फ सोनकच्छ में ही सिविल अस्पताल है। हालांकि विधायक कांग्रेस का है और सरकार भाजपा की, इसलिए जनता इन दोनों के बीच फंस रही है। सोनकच्छ के सियासी मिजाज की बात की जाए तो 1957 से लेकर 1967 तक ये सीट जनसंघ के कब्जे में रही। 1957 का चुनाव जनसंघ के भागीरथ सिंह ने जीता। 1962 के चुनाव में दूसरी बार भागीरथ सिंह विधायक बने और फिर 1967 का चुनाव भी खूबचंद ने जीता। 1972 में कांग्रेस के बापूलाल ने ये सीट जनसंघ से छीन ली। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने इस सीट पर बाजी मारी। मौजूदा विधायक सज्जन सिंह वर्मा ने पहला चुनाव 1985 में लड़ा था और जीत दर्ज की। 1990 का चुनाव कांग्रेस हार गई। 1993 का चुनाव भी कांग्रेस हार गई और भाजपा के सुरेंद्र वर्मा ने यहां से जीत दर्ज की। 1998, 2003 और 2008 का चुनाव सज्जन सिंह वर्मा ने ही जीता। 2013 के चुनाव में भाजपा के राजेंद्र वर्मा ने जीत दर्ज की। 2018 में कांग्रेस ने वापसी की और सज्जन सिंह वर्मा सोनकच्छ से विधायक बन गए ।
विकास के अपने-अपने दावे
विधानसभा क्षेत्र में विकास के भाजपा और कांग्रेस के अपने-अपने दावे हैं। विधायक सज्जन सिंह वर्मा का कहना है कि हमने जितने विकास कार्य किए हैं, उतने पूरे प्रदेश में किसी अन्य क्षेत्र में नहीं हुए। 1985 में जब मैं पहली बार विधायक बना, तब क्षेत्र में एक भी डामर की सडक़ नहीं थी। आज पूरे क्षेत्र में हमने सडक़ों का जाल बिछा दिया है। सोनकच्छ ही नहीं, हमने पूरे देवास जिले में कई काम कराए हैं। इंदौर से भोपाल चार हजार करोड़ की रोड मेरे मंत्री रहते ही बनी थी। प्रदेश का सबसे लंबा करीब दो किमी का पुल हमने बनवाया है। वहीं भाजपा के पूर्व विधायक राजेंद्र वर्मा का कहना है कि सोनकच्छ में आपको जो भी विकास कार्य नजर आते हैं, वो शिवराज सरकार ने करवाए हैं। पूरे कोरोना काल में सज्जन सिंह वर्मा अपने इंदौर के घर से बाहर नहीं निकले। हम क्षेत्र में रहकर लोगों की मदद करते रहे। उनके 38 साल के कार्यकाल और मेरे सात साल के कार्यकाल का हिसाब कर लें। हम आज भी क्षेत्र के लोगों के साथ लगातार संपर्क में रहते हैं। भाजपा और कांग्रेस भले ही क्षेत्र में खूब विकास कार्य होने का दावा करते हो पर आजादी के 75 साल बाद भी सुरजना को भूतेश्वर से जोडऩे  वाला पुल नहीं बन पाया है। आज भी करीब 50 गांव के लोग नाव से आना-जाना करते हैं या 30 किलोमीटर का चक्कर लगाकर अपने गंतव्य पर पहुंचते हैं। इस बारे में कांग्रेस विधायक का कहना है कि यदि हमारी सरकार गिराई नहीं जाती तो पुल अब तक बन चुका, अब हमारी सरकार आएगी तो सबसे पहला काम पुल बनाने का ही करेंगे। वहीं राजेंद्र वर्मा का कहना है कि इस बारे में सीएम से बात हो चुकी है, यहां पर पुल भी जल्द स्वीकृत कराया जाएगा।
जातिगत समीकरण
सोनकच्छ विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है। 40 फीसदी मतदाता अनुसूचित तो वहीं, 40 फीसदी वोटर्स ठाकुर हैं। कुल मिलाकर इन्हीं दो जातियों के वोटर्स प्रत्याशी की जीत में अहम रोल निभाते हैं। कांग्रेस के पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा यहां से विधायक है। वे 1985 में पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद 1998 से 2009 तक फिर विधायक रहे। 2018 के चुनाव में उन्हें फिर जीत मिली और वे कमल नाथ सरकार में मंत्री बने। दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में भी वर्मा नगरीय प्रशासन मंत्री रहे थे। वे 2009 से 14 तक देवास से सांसद भी रहे हैं। इस बार भी वर्मा का मैदान में उतरना तय माना जा रहा है। चुनाव नजदीक आते ही भाजपा में कई दावेदार सक्रिय हो गए है।
राजनीतिक समीकरण
राजनीतिक समीकरण के लिहाज से देखे तो यहां कांग्रेस संगठन के जमीन पर कार्यकर्ता हैं। सज्जन सिंह वर्मा ने टोंक खुर्द और सोनकच्छ जनपद में अपने कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की है। दिलचस्प बात ये है कि सोनकच्छ सीट नगरीय और ग्रामीण इलाकों में बंटी हुई है। कांग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा को नगरीय इलाके से हार का सामना करना पड़ता है। लेकिन ग्रामीण इलाकों से जीत होती है। कांग्रेस की 15 महीने की सरकार के दौरान हालात कुछ ऐसे बने की कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई। इसलिए जानकारों की राय में इस बार कांग्रेस को यहां से मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। दूसरी तरफ भाजपा की बात करें,तो भाजपा संगठनात्मक तौर पर यहां कमजोर नजर आती है। बहरहाल, ग्रामीण इलाकों में मजबूत पकड़ हासिल करने के लिए कांग्रेस के कुछ नेताओं पर भाजपा की नजर है।
एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार
चुनावी साल में विकास का श्रेय लेने का भी सिलसिला शुरू हो गया है। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस के नेता एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार करने में जुट गए हैं। सज्जनसिंह वर्मा कहते हैं कि मंत्री रहते उन्होंने कई सडक़ें, पुल और योजनाएं मंजूर की थी। उन्हीं का उद्घाटन अब सीएम कर रहे हैं और श्रेय ले रहे हैं। मेरे पास 1985 से किए कामों की पूरी जानकारी है। राजेंद्र वर्मा का कहना है कि सज्जन सिंह वर्मा क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए कभी सीएम से मिलते नहीं है। मैं मुख्यमंत्री से मिलकर, मंत्रालयों के चक्कर लगाकर योजनाएं और विकास कार्य मंजूर कराकर लाता हूं। विधायक सज्जन सिंह वर्मा बताते हैं कि बिजली के जो ट्रांसफार्मर लगवाए जा रहे हैं, वे बहुत हल्की क्वालिटी के है। जरा सा ओवरलोड होने पर वे जल जाते हैं, इससे लोगों को परेशानी आती है। 63 केवी के ट्रांसफार्मर पर 100 केवी का लोड दे दिया जाता है। गांवों में बिजली कम मिलती है, फिर भी भारी बिल दिए जा रहे हैं, इनमें सुधार के लिए उपभोक्ता परेशान होते हैं। क्षेत्र में जितने विकास कार्य हुए है, उन्हें लेकर भाजपा और कांग्रेस में श्रेय लेने की होड़ नजर आती है। गंधर्वपुरी से लेकर पीपलवां तक 42 करोड़ की सडक़ को लेकर वर्मा का दावा है कि वो उनके प्रयासों से बनी है तो राजेंद्र वर्मा कहते हैं कि उन्होंने इसे सीएम से चर्चा करके बनवाया है। नर्मदा-कालीसिंध परियोजना से 52 गांव नहीं जोड़े गए थे। दोनों ही दावा करते हैं कि उनके प्रयासों से ये गांव परियोजना में जुड़े। कांग्रेस के जिलाअध्यक्ष मनोज राजानी बताते हैं कि सज्जन सिंह वर्मा, विधायक रहे हो या सांसद वे क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहते हैं। हर किसी की समस्या को सुनते हैं और तुरंत समाधान करने का प्रयास भी करते हैं।

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