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वामपंथी विचारधारा का गढ़ बनता दक्षिणी अमेरिका

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मुनेश त्यागी 

     पिछले सप्ताह दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के चौथे सबसे बड़े देश कोलंबिया में गुस्तावो पैत्रों राष्ट्रपति पद पर चुनकर आए हैं। उनके साथ अफ्रीकी मूल की फ्रांसिया मार्क्वेज उपराष्ट्रपति के पद में के रूप में निर्वाचित हुई हैं। यह लैटिन अमरीकी देशों में बहुत ही आश्चर्यचकित करने वाली जीत मानी जा रही है। इनको जिताने में वहां की कम्युनिस्ट पार्टियों और मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ताओं और “ओल एलायंस” गठबंधन की भारी जीत बताया जा रहा है।

    इसके कुछ महीनों पहले पीरु और चिली में भी वामपंथी समाजवादियों की सरकारें जीत कर आई थीं और उन्होंने साम्राज्यवाद द्वारा समर्थित ताकतों और उम्मीदवारों को हराया था। पिछले कई वर्षों से देखने में आ रहा है कि दक्षिण अमेरिका में वामपंथी दलों  की सरकारों की जीत का सिलसिला जारी है और वहां वामपंथी ताकतों का दबदबा बना हुआ है और साम्राज्यवादी लुटेरा अमेरिका वहां पर छाये वामपंथी और समाजवादी रुझानों को रोकने में पूरी तरह नाकाम हो रहा है। जनता जैसे अमेरिका की लुटेरी नीतियों की हकीकत को जान और समझ चुकी है और उसने उसकी बातों को सुनना और समझना बंद कर दिया है।

     चुनाव के बाद राष्ट्रपति पेट्रो ने अपने भाषण में कहा है कि यह प्रतिरोध,,, अन्याय, भेदभाव और असमानता के खिलाफ “विद्रोह” है। यह मजदूरों, किसानों, मानव कार्यकर्ताओं और महिलाओं की जीत है, यह हमारे शांति प्रयासों की जीत है, यह असमानता और दक्षिणी दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ और पुलिसिया बर्बरता के खिलाफ जीत है। जनता के इस फैसले से अमेरिका बिल्कुल भी खुश नहीं है और वह भविष्य में चुपचाप बैठने वाला नहीं है। अमेरिका वहां लोगों की इस स्वतंत्रता से खुश नहीं है। वह नए नेतृत्व को धमकियां देने पर उतर आया है।

     दक्षिणी अमेरिका में अमेरिकी साम्राज्यवादी लूट ने हालात यहां तक खराब कर दिए हैं और आपसी संबंध इस हद तक बिगाड़ भी हैं कि पिछले दिनों अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक शिखर सम्मेलन बुलाया तो बोलीविया, मेक्सिको और होंडुरास ने उनके नियंत्रण को ठुकरा दिया, क्योंकि जो बाइडेन ने क्यूबा, वेनेजुएला और निकारागुआ की सरकारों को आमंत्रित नहीं किया था। राष्ट्रपति पत्रों ने कहा कि वे वेनेजुएला के संबंध सुधरेंगे। इससे अमरीकी प्रशासन डरने लगा है।

     आखिर क्या कारण है कि दक्षिण अमेरिका में एक के बाद एक वामपंथी ताकतें, दक्षिणी अमेरिका के अनेक देशों में कुलीन घरानों की ताकतों और सरकारों को सत्ता से उखाड़ कर, वहां सत्ता में लौट रही हैं और समाजवादी विचारों पर आधारित सरकारों का गठन कर रही हैं? दरअसल दक्षिण अमेरिका के अधिकांश देश पिछले सैकड़ों साल से अमेरिका समेत स्पेन, पुर्तगाल आदि देशों की शोषणकारी, अन्याय पर टिकी, आर्थिक असमानता को बढ़ाने वाली, हिंसक नीतियों और राजनीति का शिकार रहे हैं।वहां चंद लोगों को छोड़कर जनता के बड़े हिस्से को गरीबी, भुखमरी, अन्याय, शोषण और गैर बराबरी का शिकार बनाकर रखा गया है। जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आम जिंदगी की बुनियादी सुविधाओं से लगातार वंचित रखा गया है।

     63 वर्ष पहले क्यूबा में समाजवादी क्रांति की स्थापना की गई थी जिसमें सैकड़ों साल की समस्याओं और पीड़ाओं का, शोषण, अन्याय, भेदभाव, नस्लभेद और हिंसा का खात्मा कर दिया गया है। सभी लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, घर और आधुनिक विकास की सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराया गया है और सारी जनता को क्रांति का रक्षक और प्रहरी बना दिया गया है।

     वहां के सत्ताधारी कम्युनिस्ट नेताओं ने अपनी जिंदगी और राजनीति में सदाचार, ईमानदारी और सादगी का परिचय दिया है, सत्ता को जनता की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया है। उन्होंने सत्ता का इस्तेमाल अपने घर भरने के लिए,  दौलत कमाने और लूटखसोट  करने का माध्यम और साधन नहीं बनाया है। क्यूबा की क्रांति के महान नेता फिदेल कास्त्रो ने अपने लगातार प्रचार-प्रसार के अभियान में क्रांति की खूबियों से दक्षिण अमेरिका की जनता को, किसानों मजदूरों को, नौजवानों, विद्यार्थियों को और महिलाओं को अवगत कराया और क्रांति की खूबियों के बारे में बताया और क्रांति की उपलब्धियों से उन्हें अवगत कराया।

     इस बौध्दिक और क्रांतिकारी अभियान का असर यह हुआ कि दक्षिणी अमेरिका के विभिन्न देशों की जनता ने समाजवादी व्यवस्था की खूबियों और उपलब्धियों को जाना पहचाना। इसी के साथ साथ उसने साम्राज्यवादी लुटेरे अमेरिका की जनविरोधी और लुटेरी नीतियों को भी देखा परखा, उनके शोषण, अन्याय, भेदभाव, हिंसा और हस्तक्षेप के निजाम को देखा परखा  और तय किया कि उसका भला समाजवादी व्यवस्था के जन समर्थक सिद्धांतों से और उनके उसूलों से ही हो सकता है, अमेरिका के नेतृत्व में साम्राज्यवादी उदारीकरण की नीतियां, उनका कोई भला या कल्याण नहीं कर सकती।

      इस प्रकार पूरे के पूरे महाद्वीप में समाजवादी और वामपंथी क्रांतिकारी नीतियों और उपलब्धियों का बोलबाला शुरू हो गया है और दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला, चिली, पीरू, अर्जेंटीना, बोलिविया, होंडुरास, मैक्सिको और अब कोलंबिया में, वामपंथी नीतियों की पैरोकार समाजवादी व्यवस्था कायम होती चली गई। अब ब्राजील में पूर्व राष्ट्रपति लूला को भी वहां की सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के बेबुनियादी आरोपों से बरी कर दिया है और अब वहां भी वामपंथ की आंधी चल रही है और पूर्व राष्ट्रपति लूला वहां सरकार बनाने जा रहे हैं।

     इस प्रकार 63 साल पहले फिदेल कास्त्रो और उनके साथियों ने क्यूबा में समाजवादी क्रांति के विचारों का जो पौधा लगाया था, वह अब पेड़ बन गया है, अब वह फल फूल रहा है, की शाखाएं दक्षिणी अमेरिका के विभिन्न देशों में फैल गई है और जनता को अपने फल देने लगीं हैं। इसका असर दूसरे देशों में भी होने लगा है। अब दक्षिण अमेरिका के विभिन्न देशों की अधिकांश जनता ने, समाजवादी व्यवस्था के सिद्धांतों और जनता की बेहतरी की नीतियों को समझ, परख और जान लिया है। इस प्रकार, दक्षिण अमेरिका वामपंथी विचारधारा और समाजवादी व्यवस्था का गढ़ बन गया है।

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