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*मनावीय उत्कृष्टता का नाम है अध्यात्म*

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       पवन कुमार ‘ज्योतिषाचार्य:

   अध्यात्म लेखन- भाषण- प्रवचन का पाखंड नहीं, जीवन का विज्ञान है. शासकों, शोषकों, पूँजीपतियों और धर्म का धंधा करने वाले धूर्त परजीवियों के द्वारा जिसे धर्म-अध्यात्म कहा जाता है, वह सिर्फ़ उनकी स्वार्थसिद्धि का सरंजाम है.

जब “जड़” पदाथों से लाभान्वित होने की, “शरीर” को “स्वस्थ” रखने की, व्यापार-व्यवसाय की, कोई “विधि-व्यवस्था” हो सकती है, तो “चेतना” को सही और सुसंस्कृत बनाए रहने का भी सुनिश्चित “अनुशासन” रहेगा ही।

    शरीर की पृष्ठभूमि में प्राण काम करता है। प्राण दुर्बल हो जाने पर या विलग हो जाने पर शरीर महत्त्वहीन बन जाता है। इससे प्रकट है कि “चेतना” की, प्राण सत्ता की, विचारणा की अपनी समर्थता  और उपयोगिता है।* उसे उपेक्षा की स्थिति में नहीं रखा जा सकता है, जैसे तैसे, जहाँ-तहाँ उसे पड़ा नहीं रहने दिया जा सकता है।

      अनगढ़ बनी रहने पर तो वह जंग खाई हुई घड़ी की तरह समय बताने की अपनी क्षमता से वंचित ही बनी रहेगी। इस दुर्गति से चेतना क्षेत्र को बचाए रहने के लिए “अध्यात्म” विज्ञान का सुनियोजन हुआ।

      पदार्थ विज्ञानियों की तरह ऋषि-कल्प तपस्वियों ने अपने मानस को प्रयोगशाला बनाकर उन तथ्यों को खोज निकाला है, जिन्हें अपनाकर नर-वानर स्तर का एक सामान्य प्राणी किस तरह ऋद्धि-सिद्धियों का स्वामी, विश्व वसुधा का अधिष्ठाता बन सका। किस प्रकार उसने अपनी प्रसुप्त शक्तियों को खोजा और उन्हें जागृत करके देवमानव का पद पाया।            

     “अध्यात्म” का जादू जैसा इन दिनों माना जाता है और उसे प्राप्त करने के लिए रहन-सहन किन्हीं विचित्रताओं से भरा बनाना पड़ता है, पर बात ऐसी बिल्कुल भी नहीं है।

     “अध्यात्म” विचारों की उत्कृष्टता अपनाने से आरंभ होता है।* इसका प्रभाव व्यक्तिगत चरित्र को उत्कृष्ट स्तर का देखे जाने में परिलक्षित होता है। यही उपलब्धि जब जनसंपर्क में उतरती है तो आदर्शवादी व्यवहार कुशलता के रूप में दीख पड़ती है। इसी समग्र प्रयोजन को एक शब्द में “चेतना की उत्कृष्टता” भी कह सकते हैं। यही “अध्यात्म” है।

      पदार्थ द्वारा मिल सकने वाले लाभों से सभी परिचित हैं। बलिष्ठ शरीर की उपयोगिता भी निरंतर सिद्ध होती रहती है। संपत्ति के आधार पर इच्छित, सुविधा-साधन खरीदे जा सकते हैं। यह प्रत्यक्ष उपलब्धियों का माहात्म्य हुआ। इससे कहीं अधिक बढ़े-चढ़े लाभ विभूतियों के हैं।

       गुण, कर्म, स्वभाव की उत्कृष्टता को ही दार्शनिक भाषा में “अध्यात्म” कहा जाता है।

     उसके आधार पर जो मिल सकता है, उसकी जानकारी संसार में सृजन के प्रयोजनों में सफल हुए महामानवों की जीवन-गाथा का पर्यवेक्षण करते हुए सहज ही जानी जा सकती है.

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