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श्रीलंका : आर्थिक संकट बदल चुका है राजनीतिक संकट में

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रजनीश भारती

श्रीलंका में आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है और उसका आर्थिक संकट राजनीतिक संकट में बदल चुका है। तीन-चार लाख लोग राष्ट्रपति भवन को घेर कर उस पर कब्जा कर लिए। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को भाग कर नौसेना बेस में शरण लेना पड़ा। मौजूदा प्रधानमंत्री रानिल विक्रम सिंघे का निजी आवास फूंक दिया गया। इसी तरह अभी दो महीना पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री महिन्द्रा राजपक्षे का भी यही हश्र हुआ था। आखिर इस घटना के पीछे रहस्य क्या है? 

तो कौन है इसके पीछे?

चूंकि अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियांँ राष्ट्रीय परिस्थितियों को प्रभावित करती हैं अत: श्रीलंका के राजनीतिक संकट को समझने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को भी देखना चाहिए। विश्वपूंजीवाद भयानक संकट से गुजर रहा है। अमेरिकी साम्राज्यवाद चीन की लगातार घेरेबंदी कर रहा है।

1980 के दशक में अमेरिका और रूस ने मध्यम दूरी की मिसाइलें एशिया में तैनात ना करने के लिए Intermediate-Range Nuclear Forces (INF) संधि किया था, उस संधि को अमेरिका ने चार साल पहले ही तोड़ दिया। क्योंकि अब उसे चीन की घेरेबन्दी करने के लिए एशिया में मध्यम दूरी की मिसाइलें तैनात करना है। 

चीन को घेरने हेतु मध्यम दूरी की मिसाइलें तैनात करने के लिए अमेरिका ने निम्न साजिशें रचने का काम किया-

1-भारत में अपने मनमाफिक सरकार बनवाकर लेमोआ, कामकासा, सिस्मोआ, बेका आदि संधियां किया तथा अनु.370 हटाने के नाम पर राष्ट्रपति शासन लगाकर भारी सैन्यबल लगाकर लद्दाख में मिसाइलें तैनात करवा दिया।

2- नेपाल और कई एशियाई देशों में अमेरिकापरस्त सरकारें बनवाने की कोशिशें।

3-पाकिस्तान में चीन समर्थक इमरान खान की सरकार का तख्ता पलट करवाया।

4- अफगानिस्तान में अमेरिका परस्त सरकार बनवाया हालांकि अफगानिस्तान की जनता ने लम्बे संघर्ष में अमेरिका को वहां से खदेड़ दिया।

5- जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या की घटना के पीछे भी ऐसी ही साजिशों की संभावना है।

6- दक्षिण कोरिया के साथ कई सैन्य समझौते किया।

7- सन् 2014 में यूक्रेन में रूस समर्थक विक्टर यानुकोविच की सरकार को श्रीलंका की तर्ज पर ही राष्ट्रीय झंडे के साथ भीड़ इकट्ठा करके हटवाया।

8- यूक्रेन की ही तरह श्रीलंका में भी अमेरिका ने अपने चहेते संगठनों के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में जनता को सत्ता पक्ष के खिलाफ उतार दिया है। मगर सांगठनिक पहचान छिपा कर आम जनता की शक्ल में वे आन्दोलन में शामिल हैं ताकि लोग ये न कह सकें कि यह अमुक संगठन का आन्दोलन है बल्कि लोग यह कहें कि यह जनता का आन्दोलन है।

श्रीलंका के मौजूदा संकट के लिए मुख्यत: अमेरिकी साम्राज्यवाद जिम्मेदार है। श्रीलंका में लगी साम्राज्यवादियों की विदेशी पूंजी को अमेरिका के इसारे पर ही उनके मालिकों ने अचानक खींच लिया। विश्वबैंक या अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से कर्ज भी नहीं प्राप्त करने दिया। जिससे श्री लंका की अर्थव्यवस्था अचानक लड़खड़ा गयी। अमेरिका ने इस आपदा में अवसर तलाश कर भीड़ द्वारा सरकार गिराने की साज़िश रचा।

भारत में देखिए, जेपी आन्दोलन पूरे भारत में एक झटके में फ़ैल गया, जब कि जेपी के पास कोई संगठन नहीं था। अभी एक दसक भी नहीं बीता है, अन्ना आन्दोलन एक झटके में पूरे भारत में फ़ैल गया अन्ना के पास भी कोई संगठन नहीं था। फिर इनका आन्दोलन राष्ट्रव्यापी कैसे बन गया? बिना किसी संगठन के इतना बड़ा और व्यापक आन्दोलन नहीं हो सकता। दरअसल इन दोनों महापुरुषों को सिर्फ मोहरा बनाया गया था। इन दोनों के आन्दोलन के पीछे आरएसएस की ही मुख्य भूमिका थी। जब कि झंडा तिरंगा था।

श्रीलंका के प्रदर्शनकारियों के पीछे आरएसएस जैसे किसी संगठन का हाथ ज़रूर है मगर वे राष्ट्रीय ध्वज उठाए हुए हैं इसी लिए लोग कह रहे हैं कि श्रीलंका की जनता आन्दोलन कर रही है। यदि अपने संगठन का झंडा उठा लेते तो लोग कहते कि फलां संगठन आन्दोलन कर रहा है। इससे उनका आन्दोलन कमजोर हो सकता था।

कुछ लोग उपरोक्त तथ्यों को दरकिनार करके इस प्रदर्शन को एक क्रान्तिकारी आन्दोलन बता रहे हैं मगर ऐसा नहीं है। अगर श्रीलंका का आन्दोलन क्रान्तिकारी आन्दोलन होता तो सिर्फ राष्ट्रपति भवन पर कब्जा न जमाता, यदि क्रान्तिकारी शक्तियों के साथ इतना बड़ा और व्यापक जनसमर्थन होता तो वे बड़े-बड़े पूंजीपतियों के सारे कल-कारखाने, खान-खदान, स्कूल, अस्पताल, बैंक, यातायात के संसाधन आदि पर जनता से जनता का कब्जा करवाते और सारी विदेशी पूँजी जब्त कर लेते, साथ ही साथ सारे सामंतों की जमीन जब्त करके भूमिहीन व गरीब किसानों में बांँट देते। मगर वे ऐसा करने की सोच भी नहीं पा रहे हैं।  अत: इस प्रदर्शन में क्रान्तिकारी संगठनों की भूमिका नहीं है। ये तो अमेरिकी साम्राज्यवाद श्रीलंका की जनता के आक्रोश का इस्तेमाल करके अपनी कठपुतली सरकार बनवाना चाहता है। जब कि श्रीलंका क्रान्ति के मुहाने पर खड़ा है। मगर एक क्रान्तिकारी पार्टी के अभाव में जनता की सारी कुर्बानियां व्यर्थ जा रही हैं। 

हम श्रीलंका की जनता के पक्ष में हैं। वहां की जनता मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी तथा इन तरीकों से हो रहे शोषण, दमन, उत्पीड़न आदि के खिलाफ लड़ रही है, हम उस लड़ाई में श्रीलंका की जनता के पक्ष में हैं। मगर, हम इस बात से निराश हैं कि उस प्रदर्शनकारी जनता का नेतृत्व भी शोषक वर्ग के लोग कर रहे हैं। न तो क्रान्तिकारी पार्टी है न क्रान्तिकारी नेतृत्व। इसके बिना उनकी सारी कुर्बानी उनके दुश्मनों के पक्ष में अभी तक जा रही है। श्रीलंका की तरह भारत भी क्रान्ति के मुहाने पर खड़ा है। एक क्रान्तिकारी पार्टी बनाने की बजाय जाति-धर्म की पार्टियों के पचड़े में फँसी हुई भारत की जनता के लिए यह बड़ा सबक है।

*रजनीश भारती*

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