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परिवर्तन में हमेशा यथास्थितिवादी बाधक

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी ने मुझ से कहा कि,साहित्यकार को निष्पक्ष होना चाहिए। निष्पक्ष का मतलब यथार्थ से समाज को अवगत कराना।
मै ने सीतारामजी की बात का समर्थन किया।
सीतारामजी ने कहा साहित्यकार
सत्ता परिवर्तन का नहीं व्यवस्था परिवर्तन का पक्षघर होता है।
परिवर्तन संसार का नियम है। इस नियम के क्रियान्वयन में हमेशा यथास्थितिवादी बाधक बने हैं।
यथास्थितिवादी हर क्षेत्र में परिवर्तन चाहते ही नहीं हैं।
साहित्यिक,सामाजिक, सांस्कृतिक,आर्थिक,और राजनैतिक हर क्षेत्र में जो हमारे पुरोधा रहें हैं वे सभी परिवर्तनकारी ही थे।
यदि हमारे पुरोधा हर क्षेत्र में तात्कालिक दकियानूसी, कट्टरता, रूढ़ियों,कुरीतियों,जैसे संकीर्ण सोच के विरुद्ध संघर्ष नहीं करते,तो आज हम जो कुछ प्रतिशत लोग, वैचारिक रूप से प्रगतिशील हुए हैं,वह भी नही होते।
मध्यम वर्गीय लोग प्रायः राजनीति को कोसते रहते हैं। वे जब राजनीति को कोसते हैं तब यह भूल जातें हैं कि आज जो महंगी चिकित्सा व्यवस्था,महंगी शिक्षा,मंहगाई,और रोजगार जैसी समस्याओं से जूझ रहें हैं,इन सभी समस्याओं का कारण दूषित राजनीति व्यवस्था ही है?
जो लोग राजनीति को पसंद नहीं करते है,उन लोगों को महंगाई,बेरोजगारी,और अन्य बुनियादी समस्याओं पर प्रश्न उपस्थित करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं होता है।
मूलभूत समस्याओं के विरुद्ध जो मुखर नहीं होते है,वे सहनशील नही हैं वे लोग वास्तव में उदासीन होते हैं। उदासीनता मानसिक गुलाम होने का प्रतीक है।
ऐसे उदासीन लोग साहित्यकार पर यह प्रश्न उपस्थित करते हैं,अव्वल तो इन उदासीन लोगों को सवाल करने का नैतिक अधिकार है ही नहीं,फिर भी पूछते हैं?
क्या वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था में कुछ भी अच्छा नहीं हुआ है?
हा अच्छा हुआ है,देश पर पिछले दस वर्षों में तीन गुना कर्ज बढ़ गया है। चार सौ रुपयों में एलपीजी का सिलेंडर महंगा होता था,सड़कों पर सिलेंडर लेकर नाचतें गातें विरोध किया जाता था। महगाई डायन हुआ करती थी।
आज महंगाई पर सिर्फ घर बैठ कर ही कोसा जाता है।
देश के उद्योगपतियों को अपने कर्मचारियों आर्थिक और मानसिक शोषण करने की छूट मिली है।
क्या यह सब अच्छा हो रहा है?
छोटे कल कारखाने बन्द हो रहें हैं। बहुत से निजी संस्थानों में कर्मचारियों को महीनों वेतन नहीं मिल रहा है। लेकिन समस्याओं से लोगों को अवगत मत कराओं?
हम तो अवतारवाद के सिद्धांत को मानते है। त्रेता और द्वापरयुग में जैसे भगवान अवतरित हुए थे वैसा ही कोई भगवान मनुष्य रूप में अवतार लेगा। वही हमारी सभी समस्याएं हल करेगा।
उदासीन लोगों के लिए शायर शकील बदायुनी का यह शेर मौंजू है।
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे

( बे-हिस=चेतनाशुन्य)
जो लोग सजग होते हैं। संघर्षशील होते हैं,वे शायर दुष्यंत कुमार के इस शेर को दोहराते रहते हैं।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

किसी शायर ने यह भी कहा है,
दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिल
जिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया हो

( ताज़ीम = आदर,सम्मान)

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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